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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

इस तरह मेरा चलना जारी ही था कि तबतक डर्बनके पुलिस सुपरिंटेंडेंटकी पत्नी सामनेसे गुजरी। हम एक-दूसरेको अच्छी तरह जानते थे । वह साहसी स्त्री थी। बादल छाये हुए थे और सूरज भी अब छुपनेवाला था । उस महिला ने मेरा बचाव करनेके लिए अपनी छत्री खोलकर मेरे सिरपर लगा दी और मेरी बगलमें चलने लगी । स्त्रीका अपमान और वह भी डर्बनके बहुत पुराने और लोकप्रिय सुपर- टेंडेंटकी पत्नीका अपमान, गोरे लोग कर ही नहीं सकते थे। वे उसे चोट भी नहीं पहुँचा सकते थे । इसलिए वे उसको बचाते हुए मुझपर जो प्रहार करते थे वह हलका ही होता था । तबतक पुलिस सुपरिंटेंडेंटको हमलेकी खबर मिल गई और उन्होंने पुलिस- की एक टुकड़ी भेज दी जिसने आकर मुझे अपने घेरेमें ले लिया। हमारा रास्ता पुलिस चौकी के पाससे ही जाता था। जब हम वहाँ पहुँचे तो हमें सुपरिटेंडेंट राह देखते खड़े मिले। उन्होंने मुझको पुलिस चौकीमें चलनेकी सलाह दी। मैंने उनका उपकार माना, किन्तु चौकीमें जाने से इनकार कर दिया। मैंने कहा, “मुझे तो अपनी जगह ही पहुँचना है । मुझे डर्बनके लोगोंकी न्यायवृत्तिपर और अपनी सत्यनिष्ठापर विश्वास है । आपने पुलिस भेजी, इसके लिए मैं आभारी हूँ । इसके अतिरिक्त श्रीमती अलेक्जेंडरने भी मेरी रक्षा की है।"

मैं सही-सलामत रुस्तमजीके घर पहुँच गया । वहाँ पहुँचते-पहुँचते मुझे लगभग शाम हो गई थी । 'कूरलैंड ' के डाक्टर दाजी बरजोर उस समय रुस्तमजीके घरपर ही थे। उन्होंने मेरा उपचार किया। मेरे घाव जाँचे । घाव अधिक तो नहीं आये थे किन्तु एक भीतरी चोट थी जिसमें बहुत दर्द हो रहा था । किन्तु मुझे अभीतक शान्तिसे बैठने की गुंजाइश नहीं मिल पाई थी । रुस्तमजी सेठके घरके आगे हजारों गोरे इकट्ठे हो गये थे। रात हो जानेके कारण लुच्चे-लफंगे भी उनमें आ मिले थे। इन लोगोंने रुस्तमजी सेठको यह धमकी दी कि “यदि आप गांधीको हमारे हवाले नहीं करेंगे तो हम गांधी के साथ आपको और आपकी दुकानको भी जला देंगे।" रुस्तमजी किसीके डरानेसे डरनेवाले हिन्दुस्तानी नहीं थे । इसकी ख़बर सुपरिंटेंडेंट अलेक्जेंडरको मिल गई। इसलिए वे अपनी खुफिया पुलिसको लेकर चुपकेसे इस भीड़में घुस गये और एक चौकी मँगाकर उसपर खड़े हो गये। इस प्रकार उन्होंने लोगोंसे बातचीत करनेके बहाने पारसी रुस्तमजीके घरके दरवाजेपर कब्जा कर लिया, ताकि कोई उसे तोड़- कर घरमें न घुस सके। उन्होंने उचित स्थानोंपर गुप्त पुलिस तो रख ही दी थी। उन्होंने साथ ही एक अधिकारीको कहा कि वह हिन्दुस्तानी पोशाक पहनकर अपना मुँह रंगकर हिन्दुस्तानी व्यापारीका भेस बना ले और मेरे पास आकर मुझसे कह दे : 'यदि आप अपने मित्र पारसी रुस्तमजीकी, उनके अतिथियोंकी, उनकी सम्पत्तिकी और अपने परिवारकी रक्षा करना चाहते हों तो आप हिन्दुस्तानी सिपाहीका भेष बनाकर रुस्तमजीके गोदामसे निकलकर इसी भीड़में होकर मेरे आदमीके साथ चुपकेसे पुलिस चौकीपर पहुँच जायें। आपके लिए इस गलीके कोनेपर गाड़ी खड़ी कर रखी है। आपको और दूसरे लोगोंको बचानेका मेरे पास यही एक रास्ता है। भीड़

१. भार० सी० अलेक्जेंडर; देखिए खण्ड २, पृष्ठ १७८ ।

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