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दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रहका इतिहास

काम नहीं करना है। इसका अर्थ यह था कि युद्धक्षेत्रमें जो सिपाही घायल हों उनको सेनाकी स्थायी सार-सँभाल करनेवाली टुकड़ी उठाकर लायेगी और सेनाके पिछले भागमें पहुँचा देगी । गोरोंकी और हमारी तात्कालिक टुकड़ियाँ तैयार करनेका कारण यह था कि जनरल बुलर लेडीस्मिथमें घिरे हुए जनरल व्हाइटको निकालनेका एक जबरदस्त प्रयत्न करनेवाले थे और उसमें स्थायी टुकड़ीकी शक्तिसे ज्यादा सैनिकोंके जख्मी होनेका डर था । यह युद्ध ऐसे अंचलमें चल रहा था जहाँ युद्धक्षेत्र और मुख्य चिकित्सा केन्द्रके बीच पक्की सड़कें नहीं थीं। इसलिए घोड़ा-गाड़ी आदि सवारियोंसे घायल सैनिकोंको वहां पहुँचाना अशक्य था । मुख्य चिकित्सा केन्द्र प्रायः किसी रेलवे स्टेशनके पास और युद्धक्षेत्रसे ७, ८ मीलसे लेकर २५ मीलतक दूर होता था ।

हमको तुरन्त ही काम दे दिया गया। काम जितना हमने सोचा उससे ज्यादा सख्त निकला। घायलोंको ७-८ मीलतक उठाकर ले जाना आसान था, किन्तु हमें तो २५ मीलतक भयंकर रूपसे घायल सिपाहियों और अफसरोंको उठाकर पड़ता था । मार्गमें उनको दवा भी देनी होती थी । कूच सुबह ८ बजे शुरू होती और शामको ५ बजेतक लौटकर चिकित्सा केन्द्रमें पहुँचना होता था। यह काम बहुत कठिन था। घायलोंको उठाकर २५ मील ले जानेका अवसर तो एक ही बार आया, किन्तु आरम्भमें अंग्रेजोंकी हारपर-हार हुई और घायलोंकी संख्या इतनी बढ़ गई कि अधिकारियोंने मजबूर होकर हमें गोलाबारीकी मारकी हृदमें न भेजनेका विचार त्याग दिया। मुझे यह बता देना चाहिए कि जब ऐसा प्रसंग आया तब उन्होंने यह कहा, “आपके साथ जो शर्त हुई है उसके अनुसार हम आपको गोलोंकी मारके भीतर नहीं भेज सकते, इसलिए यदि आप जोखिममें न पड़ना चाहें तो जनरल बुलरका इरादा आपको उसके लिए बाध्य करनेका तनिक भी नहीं है। किन्तु यदि आप यह जोखिम अपने ऊपर लें तो सरकार आपकी कृतज्ञ होगी।' हम तो इस जोखिममें पड़ना ही चाहते थे । जोखिमसे बाहर रहना हमको पसन्द नहीं था । इस कारण सभीने इस अवसरका स्वागत किया; किन्तु इसमें न तो कोई हिन्दुस्तानी गोला लगनेसे घायल हुआ और न अन्य प्रकारसे क्षतिग्रस्त ।

इस टुकड़ीके बहुतसे दिलचस्प अनुभव हैं; किन्तु वे सब यहाँ नहीं दिये जा सकते। फिर भी इतना तो कहना ही चाहिए कि हमारी टुकड़ीको, जिसमें अशिक्षित माने जानेवाले गिरमिटिये भी थे, यूरोपीयोंकी तात्कालिक टुकड़ीसे और काली सेनाके गोरे अफसरोंसे अनेक बार सम्पर्कमें आना पड़ा, फिर भी हममें से किसीको यह अनुभव नहीं हुआ कि गोरे हमसे अशिष्टताका बर्ताव करते हैं अथवा हमारा तिरस्कार करते हैं। गोरोंकी तात्कालिक टुकड़ीमें तो दक्षिण आफ्रिकावासी गोरे ही थे। उनमें वे लोग भी थे जिन्होंने युद्धसे पहले हिन्दुस्तानियोंके विरुद्ध आन्दोलनोंमें भाग लिया था। किन्तु इस संकटके समय हिन्दुस्तानी अपने निजी कष्टोंको भूलकर हमारी सहायता करनेके लिए आये हैं, यह जानकर और देखकर उस समय उन लोगोंके हृदय कोमल हो गये थे। जनरल बुलरके खरीतोंमें हमारी सेवाकी सराहना की गई थी, यह बात पहले कही जा चुकी है। इसके अलावा उक्त संतीसों मुखियोंको लड़ाईके तमगे भी दिये गये थे।

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