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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

लेडिस्मियको स्वतंत्र करनेके लिए किये गये जनरल बुलरके आक्रमणके पूरा होनेपर दो महीने के भीतर-भीतर हमारी और गोरोंकी टुकड़ीको छुट्टी दे दी गई । लड़ाई उसके बाद भी बहुत दिनतक चलती रही। हम तो लड़ाईमें आनेके लिए सदा ही तैयार थे और जब हमको घर जानेका हुक्म दिया गलेडिस्मिको या था तब यह कह दिया गया था कि यदि कोई बड़ी जंगी कार्रवाई की जायेगी तो सरकार अवश्य ही हमारा उपयोग फिर करेगी।

दक्षिण आफ्रिका के हिन्दुस्तानियोंने इस युद्धमें जो भाग लिया वह छोटा ही कहा जा सकता है । कह सकते हैं कि इसमें जानकी जोखिम भी कुछ नहीं थी । किन्तु फिर भी शुद्ध इच्छाका प्रभाव तो हुए बिना नहीं रहता । फिर यदि यह इच्छा अप्रत्याशित हो तो उसका मूल्य दूना आँका जाता है । और युद्धकालमें इसीलिए हिन्दुस्तानियोंके सम्बन्धमें गोरोंका खयाल बहुत अच्छा रहा।

इस प्रकरणको समाप्त करनेसे पहले मुझे एक जानने योग्य घटनाका उल्लेख करना ही चाहिए। लेडीस्मिथमें घिरे हुए लोगोंमें अंग्रेज और वहाँ रहनेवाले इक्के-दुक्के हिन्दुस्तानी भी थे । हिन्दुस्तानियोंमें व्यापारी और गिरमिटिये दोनों ही थे । गिरमिटिये या तो रेल विभागमें काम करते थे या सम्भ्रान्त गोरोंके यहाँ नौकर थे । इन गिरमिटियों में एक का नाम प्रभुसिंह था । प्रमुख अधिकारी घिरे हुए लोगोंको कोई-न-कोई काम तो सौंपता ही । उसने एक बहुत ही जोखिम भरा और उतना ही महत्त्वपूर्ण काम कुली माने जानेवाले प्रभुसिंहको दिया । लेडीस्मिथके पासकी एक पहाड़ीपर बोअर लोगोंकी पोम पोम नामकी तोप लगी थी। इस तोपके गोलोंसे बहुत-से मकान नष्ट हो गये थे और कुछ लोग भी मारे गये थे । तोपसे गोला छूटने और निशानेतक पहुँचने में एक-दो मिनट तो लगते ही हैं । यदि घिरे हुए लोगोंको जरा पहले सावधान कर दिया जाये तो वे गोला गिरनेसे पहले किसी-न-किसी आश्रय स्थानमें छुप जायें और अपनी जान बचा सकेंगे। इस विचारसे प्रभुसिंहको एक पेड़पर बैठनेका आदेश दिया गया। जबसे तोप चलनी शुरू होती और जबतक चलती रहती वह तबतक वहीं बैठा रहता। उसका काम यह था कि वह तोपवाली पहाड़ीकी ओर देखता रहे और जब वहाँ गोलेकी चमक देखे तब तुरन्त घंटा बजा दे । जैसे बिल्लीको देखकर चूहे बिलमें घुस जाते हैं वैसे ही शहरके लोग प्राणघाती गोलेके छूटनेपर घंटेकी आवाज सुनकर किसी आश्रय स्थानमें छुप जाते थे और अपनी जान बचा लेते थे ।

प्रभुसिंहकी इस अमूल्य सेवाकी प्रशंसा करते हुए लेडीस्मिथके अधिकारीने कहा था कि प्रभुसिंहने अपना काम अत्यन्त निष्ठासे किया और वह एक बार भी. घंटा बजाने- से नहीं चूका। शायद यह बताना जरूरी नहीं है कि प्रभुसिंहको तो स्वयं सदा जोखिम में ही रहना पड़ता था । इस बातकी चर्चा नेटालमें ही नहीं हुई, लॉर्ड कर्जनके सामने भी यह बात आई और उन्होंने प्रभुसिंहको भेंट करनेके लिए एक कश्मीरी चोगा भेजा और नेटाल सरकारको लिखा कि वह इस चोगेको सार्वजनिक समारोह करके यथा- सम्भव धूमधाम से प्रभुसिंहको भेंट करे । चोगेको भेंट करनेका काम डर्बनके मेयरको सौंपा गया और उन्होंने डर्बनके नगरपालिका भवनके कौंसिल चेम्बर में सार्वजनिक सभा

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