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दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रहका इतिहास

लेनेकी रीतिमें भी भेद था और यह भेद मेरे लिए शंका और भयका कारण बन गय। परवाने लेनेके लिए दक्षिण आफ्रिकाके विभिन्न बंदरगाहों में दफ्तर खोले गये थे। परवाने गोरोंको तो लगभग मांगते ही मिल जाते थे। किन्तु हिन्दुस्तानियोंके लिए ट्रान्सवालमें एक एशियाई विभाग खोल दिया गया था; यह विभाग एक नई ही चीज थी । हिन्दु स्तानियोंको इस विभागके बड़े अधिकारीके सामने अर्जी देनी पड़ती थी और सामान्यतः इस अर्जीके मंजूर हो जानेपर ही डर्बनसे या किसी अन्य बन्दरगाहसे उन्हें परवाना मिल सकता था।

यदि मुझे भी यह अर्जी देनी पड़ती तो परवाना श्री चेम्बरलेनके ट्रान्सवालसे जाने से पहले मिलनेकी आशा नहीं थी। ट्रान्सवालके हिन्दुस्तानी मेरे लिए यह परवाना नहीं ले सके थे। यह बात उनकी शक्तिके बाहर थी। किन्तु उन्होंने सोच लिया था कि डर्बनमें अपने पुराने परिचयके बलपर परवाना मिल जायेगा। मैं परवाना अधिकारीको तो नहीं जानता था, किन्तु डर्बनके पुलिस सुपरटेंडेंट मुझे जानते थे इसलिए मैंने उनको साथ ले जाकर उनसे अपना परिचय दिलाया और में ट्रान्सवालमें १८९३ में एक साल रह चुका हूँ, यह जानकर उसने मुझे परवाना दिया तथा मैं प्रिटोरिया पहुँच गया।

मैंने वहाँ जो वातावरण देखा वह एकदम अजीब था। मुझको स्पष्ट आभास हो गया कि एशियाई विभाग एक भयानक विभाग है और वह केवल हिन्दुस्तानियोंपर अत्याचार करनेके लिए ही बनाया गया है। उसके अधिकारी लड़ाईके दिनोंमें हिन्दुस्तानसे सेनाके साथ आये हुए वर्गमें से थे और दक्षिण आफ्रिकामें अपना भाग्य आजमानेके लिए रह गये थे । उनमें से कुछ अधिकारी घूसखोर थे और दोपर घूस लेनेके आरोप में मुकदमे भी चलाये जा चुके थे। पंचोंने तो उनको छोड़ दिया; किन्तु घूस लेनेका सन्देह रहने के कारण वे नौकरी से हटा दिये गये । पक्षपातका तो कोई पार ही न था। जिस पृथक् विभागके खोले जानेका उद्देश्य हिन्दुस्तानियोंके अधिकारोंपर अंकुश रखना ही था, अपना अस्तित्व कायम रखने और यह बतानेके लिए कि वे अपने उक्त कर्त्तव्य- का समुचित पालन करते हैं उस विभागके अधिकारियोंकी प्रवृत्ति सदा नये-नये अंकुश खोजनेकी ही हो सकती थी; उन्होंने ऐसा ही किया भी ।

मैंने देखा कि मुझे तो नये सिरेसे ही कार्य आरम्भ करना पड़ेगा। एशियाई विभागको तत्काल यह पता नहीं चला कि मैं ट्रान्सवालमें किस तरह आ गया। मुझसे पूछनेकी तो यकायक हिम्मत ही नहीं हुई। मैं मानता हूँ कि उसके अधिकारियोंको यह विश्वास तो था कि मैं यहाँ चोरी-छिपे तो नहीं आया हूँगा। उन्होंने इधर-उधरसे पूछकर यह पता लगा लिया कि मुझे परवाना किस तरह मिला। प्रिटोरियाका शिष्टमण्डल भी श्री चेम्बरलेनसे मिलनेके लिए तैयार हो गया। उसको जो अर्जी देनी थी वह मैंने तैयार कर दी; किन्तु एशियाई विभागने मुझे श्री चेम्बरलेनके सम्मुख जानेसे रोक दिया। हिन्दुस्तानी नेताओंकी राय थी कि ऐसी स्थितिमें किसीको भी श्री चेम्बरलेनके सम्मुख नहीं जाना चाहिए। किन्तु मुझे उनकी यह राय ठीक नहीं लगी। मैंने तय किया कि मुझे अपने अपमानके इस घूंटको पी जाना चाहिए। मैंने हिन्दुस्तानी समाजको सलाह दी कि उसे इसकी परवाह नहीं करनी चाहिए। अर्जी तो तैयार है

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