पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 29.pdf/९४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
६८
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

समिति नियुक्त की । उसे राज्यके पुराने कानूनोंकी छानबीन करके उनमें से प्रजाके अधिकारोंपर अंकुश लगानेवाले अथवा ब्रिटिश संविधानको भावनाके विरुद्ध जानेवाले कानूनोंकी सूची तैयार करनी थी। इसमें स्पष्ट हिन्दुस्तानियोंकी स्वतन्त्रतापर आघात करनेवाले कानून भी आ जाते हैं। किन्तु इस समितिकी नियुक्तिमें लॉर्ड मिलनरका हेतु हिन्दुस्तानियोंके कष्टोंका निवारण करना न होकर अंग्रेजोंके कष्टोंका निवारण करना था। उनका उद्देश्य यह था कि जिन कानूनोंसे अप्रत्यक्ष रूपसे भी अंग्रेजोंको हानि पहुँचती हो उनको जल्दी से जल्दी रद कर दिया जाये। इस समितिने अपनी रिपोर्ट बहुत कम समयमें ही तैयार कर ली और हम कह सकते हैं कि छोटे-बड़े बहुतसे कानून, जो अंग्रेजोंके विरुद्ध बनाये गये थे, एक कलमसे रद कर दिये गये।

इसी समितिने हिन्दुस्तानियोंके विरुद्ध बनाये गये कानूनोंको भी इकट्ठा कर दिया और उनकी एक अलग पुस्तक प्रकाशित कर दी और फल इतना ही हुआ कि एशियाई विभाग उनका उपयोग, अथवा हम अपनी दृष्टिसे कहें तो दुरुपयोग सुगमता- से करने लग गया ।

अब हिन्दुस्तानी विरोधी कानून यदि उनके नाम देकर और विशेष रूपसे उनके विरुद्ध न बनाये गये होते बल्कि ऐसे बनाये गये होते कि वे सभीपर लागू हों और केवल उनपर अमल करना या न करना अधिकारियोंकी इच्छापर छोड़ दिया गया होता अथवा उन कानूनोंमें ही ऐसे नियन्त्रण रखे गये होते कि उनका अर्थ तो सार्व- जनिक होता, किन्तु उनका अधिक प्रभाव हिन्दुस्तानियोंपर पड़ता तो ऐसे कानूनोंसे भी कानूनके निर्माताओंका प्रयोजन पूरा हो जाता और वे सार्वजनिक भी कहे जाते । उनसे किसीका अपमान न होता और कालान्तरमें जब विरोधका भाव कम हो जाता तब कानूनोंमें कोई परिवर्तन किये बिना उनके उदार अमलसे ही जिस जातिके विरुद्ध वे बनाये गये थे, उसकी रक्षा हो जाती। मैंने जैसे इन दूसरे प्रकारके कानूनोंको सार्वजनिक कानून कहा है वैसे ही पहले प्रकारके कानून एकदेशीय अथवा एकजातीय कानून कहे जा सकते हैं। ये कानून दक्षिण आफ्रिका रंगभेदकारी कानून कहलाते हैं, क्योंकि उनमें चमड़ीका भेद रखकर काले अथवा गहुँआ वर्णकी चमड़ीके लोगोंपर गोरी चमड़ीके लोगोंकी अपेक्षा अधिक नियन्त्रण रखा जाता है; और यह नीति कलर बार', रंगभेद अथवा रंगद्वेष कही जाती है ।

इसका एक उदाहरण उस समयतक बने हुए कानूनोंमें से ही लें। पाठकोंको याद होगा कि नेटालमें मताधिकारका जो पहला कानून बनाया गया था और जो बादमें रद कर दिया गया था उसकी एक धारा यही थी कि भविष्यमें किसी भी एशियाईको मतदानका अधिकार न रहेगा। अब यदि ऐसे कानूनमें परिवर्तन करवाना हो तो लोकमत इतना अधिक प्रशिक्षित किया जाना चाहिए कि बहुसंख्यक लोग एशि- याइयोंसे द्वेष न करें; बल्कि उनके प्रति मित्रभाव रखें। ऐसा सुअवसर आनेपर ही नया कानून बनाकर रंगभेदके इस कलंकको दूर किया जा सकता है। यह एकदेशीय अथवा रंगभेदकारी कानूनका एक उदाहरण है। अब उक्त कानूनको रद करके उसकी जगह जो दूसरा कानून बनाया गया है, उससे भी लगभग मूल अभिप्रायकी रक्षा

Gandhi Heritage Portal