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दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रहका इतिहास

उत्पन्न हुई और उसका पहला सामूहिक प्रयोग किस प्रकार किया गया, इस बातको देशके सब लोग जानें, समझें और उसे ठीक मानकर यथाशक्ति व्यवहारमें लायें ।

अब हम अपने पिछले वस्तु-विषयको लें। हम यह देख चुके हैं कि अंग्रेज अधि- कारियोंने यह निश्चय कर लिया था कि ट्रान्सवालमें नये हिन्दुस्तानियोंको आनेसे रोका जाये और पुराने हिन्दुस्तानियोंकी स्थिति ऐसी कठिन बना दी जाये जिससे वे भयभीत होकर ट्रान्सवालसे चले जायें और यदि न जायें तो लगभग मजदूर बनकर ही रहें। दक्षिण आफ्रिकाके महान् माने जानेवाले अनेक राजनीतिज्ञोंने कई बार कहा है कि इस देशमें हिन्दुस्तानी केवल लकड़हारे और कांवरिये [पनिहारे] के रूपमें ही खप सकते हैं। मैंने जिस एशियाई विभागका जिक्र ऊपर किया है उसमें श्री लायनल कर्टिस नामके एक अधिकारी भी थे। वे हिन्दुस्तानमें रह चुके थे तथा द्वैध शासन पद्धतिके आविष्कारक और प्रचारकके रूपमें प्रसिद्ध थे। वे एक ऊँचे परिवार में उत्पन्न युवक हैं और उस समय १९०५-६ में वह युवक ही थे। वे लॉर्ड मिलनरके बड़े विश्वासपात्र थे। उनका दावा था कि वे समस्त कार्य शास्त्रीय विधिसे ही करते हैं; किन्तु बहुत बड़ी-बड़ी भूलें भी उनसे हुईं। उनकी एक ऐसी ही भारी भूलसे जोहानिसबर्ग नगर- पालिकाको १४,००० पौंडका नुकसान उठाना पड़ा था। उन्होंने ट्रान्सवालमें नये हिन्दु- स्तानियोंका प्रवेश रोकनेके लिए एक नई योजना सोची। उन्होंने इसके लिए पहला कदम यह सुझाया कि पुराने हिन्दुस्तानियोंका पंजीयन इस प्रकार किया जाये जिससे एकके बदले दूसरा न आ पाये और यदि आ जाये तो तुरन्त पकड़ा जाये । अंग्रेजी शासनकी स्थापनाके बाद जो परवाने दिये जाते थे उनमें परवाना लेनेवाले हिन्दुस्तानि- योंको अपने हस्ताक्षर और हस्ताक्षर न कर सकें तो अँगूठेके निशान करने होते थे । फिर किसी अधिकारीने यह सुझाव दिया कि हिन्दुस्तानियोंके फोटो भी माँगे जाने चाहिए। इस तरह फोटो, अँगूठेका निशान और हस्ताक्षर इन तीनोंकी प्रथा चल पड़ी। इसके लिए कोई कानून बनानेकी जरूरत तो थी नहीं। इसलिए हिन्दुस्तानी नेताओंको तुरन्त इसका पता नहीं लग सकता था। धीरे-धीरे इन नई बातोंका पता चला । कौमकी ओरसे सत्ताधिकारियोंके पास प्रार्थनापत्र भेजे गये और शिष्टमण्डल भी भेजे गये । सत्ताधारियोंका तर्क यह था कि कोई भी आदमी किसी भी रीतिसे यहाँ आ जाये, यह हमें सह्य नहीं है। इसलिए सब हिन्दुस्तानियोंके पास एक ही तरहके निवासके परवाने होने चाहिए और उनमें इतना पूरा विवरण होना चाहिए कि उनको लेकर जिनके परवाने हैं केवल वे ही यहाँ आ सकें, उनके सिवा दूसरा कोई भी आदमी न आ सके। मैंने यह सलाह दी कि यद्यपि हम कानूनके मुताबिक ऐसे परवाने लेनेके. लिए बंधे तो नहीं हैं, फिर भी जबतक शान्ति रक्षा अध्यादेश अस्तित्वमें है तबतक हमसे उसके अनुसार परवाने अवश्य ही माँग जा सकते हैं। जैसे हिन्दुस्तानमें भारत रक्षा अधिनियम था वैसे ही दक्षिण आफ्रिकामें शान्ति रक्षा अध्यादेश था और जैसे हिन्दुस्तान में केवल लोगोंको सतानेके लिए ही भारत रक्षा अधिनियम चलता रहा है वैसे ही हिन्दुस्तानियोंको सतानेके लिए शान्ति रक्षा अध्यादेश चलता था । कह सकते हैं, उसका प्रयोग सामान्यतः गोरोंके विरुद्ध बिलकुल नहीं किया जाता था। अब यदि

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