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३४. प्रार्थनापत्र : श्री चेम्बरलेनको
प्रिटोरिया
 
मई १६, १८९९
 

सेवामें

परम माननीय जोजेफ़ चेम्बरलेन

सम्राज्ञीके मुख्य उपनिवेश-मन्त्री

दक्षिण आफ्रिकी गणराज्यवासी ब्रिटिश भारतीयोंके नीचे हस्ताक्षर करनेवाले

प्रतिनिधियोंका प्रार्थनापत्र

नम्र निवेदन है कि,

प्राथियोंको खेद है कि दक्षिण आफ्रिकी गणराज्यमें ब्रिटिश भारतीय जिस दुर्भाग्यमय और परेशानीकी स्थितिमें फंस गये हैं उसके कारण उन्हें सम्राज्ञी-सरकारको फिर कष्ट देना पड़ रहा है।

कुछ समय हुआ कि सरकार और सर विलियम वेडरबर्नमें हुए पत्र-व्यवहार को देखकर आपके प्राथियोंको आशा हो गई थी कि ट्रान्सवालमें ब्रिटिश भारतीयोंके कष्टोंका प्रायः अन्त हो जायेगा। परन्तु उसके तुरन्त पश्चात् दक्षिण आफ्रिकी गगराज्य सरकारकी विज्ञप्तिसे इस गणराज्यके निवासी ब्रिटिश भारतीयोंका भ्रम दूर हो गया। यह विज्ञप्ति २६ अप्रैल १८९९के स्टाट्सकूरेंट (सरकारी गजट) में प्रकाशित हुई है (उसके अनुवादकी एक प्रति इस प्रार्थनापत्रके साथ संलग्न है)। उसके कारण ही फिरसे प्रार्थनापत्र देनेकी आवश्यकता पड़ी है। उससे प्रकट है कि इस बार गणराज्यकी सरकारने १८८६ में संशोधित १८८५ के कानून ३ को लागू करनेका इरादा पक्का कर लिया है। अध्यक्षके लोकसभा ( फोक्सराट ) के उद्घाटन-भाषणमें भी इसकी चर्चा की गई है।

आपके प्रार्थी आपका ध्यान इस तथ्यकी ओर आकृष्ट करनेकी अनुमति चाहते हैं कि जबसे 'तैयब हाजी खान मुहम्मद बनाम एफ० डब्ल्यू० राइट्ज़ एन० ओ०' के मुकदमे का फैसला हुआ है तबसे इस गणराज्यमें भारतीय लोगोंको चैन नहीं है। भारतीयोंको सरसरी कार्रवाई द्वारा बस्तियोंमें हटा देनेके सम्बन्धमें कई विज्ञप्तियाँ निकल चुकी हैं। स्वभावतः इससे उनका व्यापार अस्त-व्यस्त हो गया है और उनमें बहुत बेचैनी फैल गई है।

१. यह तारीख फलोनियल ऑफ़िस रेकर्डसके अनुसार दी गई है। प्रार्थना-पत्रकी छपी प्रतिमें तारीखके स्थानपर केवल 'मई १८९९ ' दिया गया है। मई १७, १८९९ को टाइम्स ऑफ इंडिया को भेजे गये समाचारसे स्पष्ट है कि यह उस तारीखके पहले तैयार हुआ था । परन्तु वेडरबर्नके नाम मई २७, १८९९ के पत्रसे ज्ञात होता है कि यह प्रार्थना-पत्र, जो प्रिटोरिया-स्थित ब्रिटिश एजेंटके पास भेजा गया था, २७ मई तक उपनिवेश-मन्त्रीको नहीं भेजा गया।

२. यॉपर वेडरवन के जनवरी १३, १८९९ के उस पत्रका हवाला दिया गया है जो कि उन्होंने बस्तियों के नोटिस तथा चेम्बरलेनके १५ फरवरीके उत्तर के बारे में लिखा था। चेम्बरलेनके उत्तरमें कहा गया था कि ब्रिटिश उच्चायुक्त अध्यक्ष ऋगरसे बातचीतके दौरानमें भारतीय व्यापारियों के अनुकूल कोई समझौता करानेकी कोशिश करेंगे । ( इंडिया, २४-२-१८९९) । किन्तु इस सम्बन्धमें मिलनरके प्रयत्न सफल नहीं हुए, क्योंकि ब्लूमफॅटीनमें क्रूगरके साथ हुई उनकी वार्ता मताधिकारके प्रश्नपर टूट गई ।

३. देखिए "तार : भारतके वाइसरायको," अगस्त १९, १८९८ ।


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