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प्रार्थनापत्र : श्री चेम्बरलेनको

यह प्रश्न आपके प्राथियोंके लिए बहुत महत्त्वका है और वे इस दुःखदायी अनिश्चित स्थितिको चलते रहने देनेकी अपेक्षा इसका शीघ्र ही कोई अन्तिम निर्णय हो जानेका स्वागत करेंगे। वे सादर निवेदन करते हैं कि उन्होंने अपने गत प्रार्थनापत्रमें ऊपर निर्दिष्ट मकदमेमें न्यायालयके जिस बहुमत-निर्णयका प्रश्न उठाया था उसके अतिरिक्त भी जिस कानून और विज्ञप्तिके विषयमें यह प्रार्थनापत्र दिया जा रहा है उनसे ऐसे कई प्रश्न खड़े हो गये हैं कि उनके कारण सम्राज्ञीकी सरकार द्वारा उनमें कारगर हस्तक्षेप किया जाना उचित होगा।

अपनी पहली विज्ञप्तियोंमें ट्रान्सवाल-सरकार १८८५ के कानून ३ का बारीकीसे अनुसरण नहीं किया करती थी। इसके विपरीत, अपनी वर्तमान विज्ञप्तिमें उसने उस कानूनका बारीकीसे अनुसरण किया है। विज्ञप्तिकी प्रस्तावनाका प्रथम भाग यह है :

चूंकि १८८५ के कानून ३ के अनुच्छेद ३ (घ) ने सरकारको अधिकार दिया है कि वह स्वास्थ्य-रक्षाके प्रयोजनसे, एशियाको मूल जातियोंमें से किसी भी व्यक्तियोंको बसनेके लिए, कुछ खास गलियाँ, मुहल्ले और बस्तियाँ बतला सकती है। और इन जातियोंमें कुली कहानेवाले लोग अरब, मलायी और ती साम्राज्यके मुस्लिम प्रजाजन भी शामिल हैं।

सम्राज्ञीकी सरकार इस कानूनको स्वीकृत कर चुकी है। दक्षिण आफ्रिकी गणराज्यके न्यायालयोंने निवास (हैबिटेशन) शब्दकी व्याख्या यह की है कि उसमें रहने के स्थानके अतिरिक्त काम-काजका स्थान भी आ जाता है। इसलिए यहाँतक तो आपके प्रार्थियोंको अनिवार्यताके सामने सिर झुकाना पड़ रहा है। परन्तु वे यह बतलानेकी स्वतंत्रता चाहते हैं-जैसा कि उन्होंने पहले भी किया है--कि कानूनने सरकारको यह अधिकार कुछ खास अवस्थाओंमें और कुछ खास व्यक्तियोंके लिए ही दिया है। उसे सिद्ध करना चाहिए, और ऐसा सिद्ध करना चाहिए कि सम्राज्ञीकी सरकारको विश्वास हो जाये कि, जिन लोगोंपर कानूनक है उन्हें हटानेके लिए स्वास्थ्य-रक्षाके प्रयोजन सचमुच विद्यमान हैं। उन्हें एकदम बस्तियोंमें हटाते हए वह उन्हीं. और एकमात्र उन्हीं. प्रयोजनोंसे प्रेरित हो रही है। यह भी निवेदन है कि उसे यह भी सिद्ध करना चाहिए कि कानूनमें निर्दिष्ट व्यक्ति आपके प्रार्थी ही हैं।

आपके प्राथियोंका जो प्रार्थनापत्र' १८९५ की सरकारी रिपोर्ट (ब्लू बुक) सी० ७९११ के पृ० ३५-४४ पर छपा है उसमें उन्होंने दिखलानेका प्रयत्न किया है कि भारतीयोंको बस्तियोंमें हटानेके लिए सफाईका कोई भी आधार विद्यमान नहीं है, और वस्तुतः भारतीयोंको उनकी तथाकथित अस्वच्छ आदतोंके कारण नहीं, बल्कि व्यापारिक ईर्ष्याके कारण हटाया जा रहा है। ज्यके भारतीय लोगोंपर मैली आदतोंका जो आक्षेप किया गया है उसे मिथ्या सिद्ध करने के लिए आपके प्रार्थियोंने उस समय जो प्रमाण उद्धृत किया था उसे ही पुनः उद्धृत कर देनेके लिए वे क्षमा याचना नहीं करते। प्रिटोरियाके डॉ० वीलने, जो बहुतसे भारतीयोंकी चिकित्सा करते हैं, १८९५में कहा था :

मैंने उनके शरीरोंको आम तौरसे स्वच्छ और उन लोगोंको गन्दगी तथा लापरवाहीसे उत्पन्न होनेवाले रोगोंसे मुक्त पाया है। उनके मकान साधारणतः साफ रहते हैं और सफाईका काम वे राजी-खुशीसे करते हैं। वर्गकी दृष्टिसे विचार किया जाये तो मेरा यह मत

१.देखिए पादटिप्पणी पृष्ठ १४ ।

२. देखिए खण्ड १, पृष्ठ १८९-२११ ।

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