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सम्पूर्ण गांधी वाङमय

है कि निम्नतम वर्गके भारतीय निम्नतम वर्गके यूरोपीयोंकी तुलनामें बहुत अच्छे उतरते हैं। अर्थात्, निम्नतम वर्गके भारतीय निम्नतम वर्गके यूरोपीयोंकी अपेक्षा ज्यादा अच्छे ढंगसे, ज्यादा अच्छे मकानोंमें और सफाईकी व्यवस्थाका ज्यादा खयाल करके रहते हैं। मेरे खयालसे, आम तौरपर भारतीयोंके विरुद्ध सफाईके आधारपर आपत्ति करना असम्भव है। शर्त हमेशा यह है कि, सफाई-अधिकारियोंका निरीक्षण भारतीयोंके यहाँ उतना ही सख्त और नियमित हो, जितना कि यूरोपीयोंके यहाँ होता है।

जोहानिसबर्गके डॉ० स्पिकने लिखा था कि “पत्रवाहकोंके निवास स्थान स्वच्छ और स्वा- स्थ्यप्रद अवस्थामें है और इतने अच्छे हैं कि उनमें चाहे तो कोई यूरोपीय भी रह सकता है। उसी नगरके डॉ० नामेचरने लिखा था:

मुझे अपने धंधेके सिलसिलेमें जोहानिसबर्गके उच्चतर भारतीय वर्ग (बम्बईसे आये हुए व्यापारियों आदि) के घरोंमें जानेके मौके अक्सर मिलते हैं। इस आधारपर मैं यह मत देता हूँ कि वे अपनी आदतों और घरेलू जीवनमें अपने समकक्ष यूरोपीयोंके बराबर ही स्वच्छ हैं।

जोहानिसबर्गकी तीससे अधिक यूरोपीय पेढ़ियोंने कहा था :

उक्त भारतीय व्यापारी, जिनमें से अधिकतर बम्बईसे आये हैं, अपने व्यापारके स्थानों और मकानोंको स्वच्छ और समुचित आरोग्यजनक हालतमें-- वास्तवमें, ठीक यूरोपीयोंके बराबर ही अच्छी हालतमें-- रखते हैं।

जो बात १८९५ में सत्य थी वह १८९९ में कुछ कम सत्य नहीं हो गई। जहाँतक आपके प्रार्थियोंको पता है, हालके प्लेग-सम्बन्धी आतंकके समय भी, उनके विरुद्ध किसी गम्भीर शिकायतका मौका नहीं आया था। आपके प्रार्थियोंका अभिप्राय यह नहीं कि ट्रान्सवालमें एक भी भारतीय ऐसा नहीं है जिसकी स्वास्थ्यको दृष्टिसे निगरानी करनेकी आवश्यकता न हो; परन्तु वे, बिना किसी प्रतिवादके भयके, इतना निवेदन अवश्य करते हैं कि उनपर ऐसा कोई आक्षेप नहीं किया जा सकता जिससे कि सभी भारतीयोंको एक साथ बस्तियोंमें हटा देनेका औचित्य प्रतिपादित होता हो। आपके प्राथियोंका निवेदन है कि गन्दगीके एक-आध मामलेमें भुगतान सफाईके नियमोंके अनुसार सफलतापूर्वक किया जा सकता है; और यदि इन नियमोंको और भी कठोर बना दिया जाये तो आपके प्रार्थी कोई आपत्ति नहीं कर सकते।

आपके प्रार्थी सदा सादर यह आग्रह करते आये हैं कि यह कानून उच्च वर्गके भारतीयों- पर लागू नहीं होता, और व्यापारी लोग सब उसी वर्गके हैं, और यह सारा आन्दोलन भी वस्तुतः उनके ही विरुद्ध किया जा रहा है। तो क्या सम्राज्ञीकी सरकारसे यह प्रार्थना करने में भी कोई ज्यादती है कि दक्षिण आफ्रिकी गणराज्यकी सरकारको इस कानूनके शब्दोंकी सीमामें ही रहनेको कह दिया जाये? यह कानून “एशियाकी मूल जातियोंपर " लागू होता है, “जिनमें कुली कहानेवालों, अरबों, मलाइयों और तुर्की साम्राज्यके मुस्लिम प्रजाजनोंकी गिनती होती है।" आपके प्रार्थियोंके लिए 'कुली' शब्दका प्रयोग किया जाता है। इसपर प्रार्थी सादर किन्तु दृढ़तापूर्वक विरोध प्रकट करते हैं। वे हर्गिज अरब नहीं हैं, न मलायी या तुर्की साम्राज्यके प्रजाजन ही हैं। उनका दावा है कि वे महामहिम परम कृपालु सम्राज्ञीके राजभक्त, शान्ति-प्रिय और विनम्र प्रजाजन हैं, और व्यापारिक ईर्ष्याके विरुद्ध अपने संघर्षमें उन्हें उन्हीके संरक्षणका भरोसा है; उनका विश्वास है कि यह संरक्षण उनको दिया जायेगा। सम्राज्ञीके शासनकी



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