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प्रार्थनापत्र : श्री चेम्बरलेनको

हीरक - जयन्ती मनानेके लिए जब उपनिवेशोंके प्रधानमन्त्री लन्दनमें एकत्र हुए थे तब उनके सामने भाषण करते हुए आपने भारतीयोंका जिक्र बहुत प्रशंसापूर्ण शब्दोंमें किया था। अब क्या आपके प्रार्थी यह आशा करें कि उस भाषणमें आपने जो विचार प्रकट किये थे वे दक्षिण आफ्रिकी गणराज्यके ब्रिटिश भारतीयोंपर भी क्रियात्मक रूपमें लागू किये जायेंगे? ऊपर जिन शब्दोंकी चर्चा हुई है उनसे होनेवाले ब्रिटिश भारतीयोंके अपमानका यदि निवारण कर दिया गया और यदि उनकी स्थितिको १८५७२ की दयालुतापूर्ण घोषणाके शब्दों और भावनाके अनुसार स्पष्ट कर दिया गया तो दक्षिण आफ्रिकाके ब्रिटिश भारतीय इसे सम्राज्ञीके जन्म-दिनपर किया गया अपना परम सम्मान मानेंगे।

दक्षिण आफ्रिकी गणराज्यकी सरकारको 'अधिकार है कि वह उन्हें (कुलियों, अरबों आदि को) सफ़ाईके प्रयोजनसे, किन्हीं निश्चित गलियों, मुहल्लों और बस्तियोंमें बसनेके लिए कह सकती है,' अर्थात् विभिन्न नगरोंमें ही उसे यह अधिकार नहीं है कि वह 'जिस स्थानका उपयोग शहरका कूड़ा-करकट इकट्ठा करनेके लिए होता है और जहाँ शहर और बस्तीके बीचके नालेमें झिरझिरकर जानेवाले पानीके सिवा दूसरा पानी है ही नहीं, उसपर बसी हुई छोटी-सी बस्तीमें लोगोंको ठूस दे,' जिसका ‘अनिवार्य परिणाम यह होगा कि उनके बीच भयानक किस्मके बुखार और दूसरे रोग फैल जायेंगे। इससे उनके प्राण और शहरमें रहनेवाले लोगोंका स्वास्थ्य भी खतरेमें पड़ जायेगा।' और यदि भारतीय लोगोंको यूरोपीयोंसे पृथक् करना आव- श्यक ही हो तो भी यह समझमें नहीं आता कि उन्हें ऐसे स्थानपर क्यों ढकेला जाये जहाँ वे न तो व्यापार कर सकते हैं, न सफाईकी सुविधाएँ हैं और न पानी पहुंचनेका प्रबन्ध ही है। आपके प्रार्थी सादर निवेदन करते हैं कि यदि भारतीयोंको हटानेका कारण सफाईके अतिरिक्त और कुछ नहीं है तो नगरोंमें ही उनके लिए समान सुविधाओंसे सम्पन्न गलियों और मुहल्लोंका चुनाव अधिक सुगमतासे किया जा सकता है।

अन्तमें, आपके प्रार्थी आपका ध्यान इस तथ्यकी ओर खींचना चाहते हैं कि भारतीय व्यापारियोंको हटानेकी इस प्रस्तावित कार्रवाईके कारण उनके अति मूल्यवान स्वार्थ संकटापन्न हो गये हैं और उनकी भारी हानि हो जायेगी। आपके प्रार्थियोंको पूर्ण आशा है कि यह मामला सम्राज्ञीकी सरकारके हाथोंमें सौंप देनेसे उस कठिनाईका कोई निश्चित और सन्तोषजनक हल निकल आयेगा, जिसमें कि वे इस समय फँस गये हैं।

और दया तथा न्यायके इस कार्यके लिए आपके प्रार्थी, अपना कर्तव्य समझकर, सदा दुआ करेंगे।

(ह०) तैयब हाजी खान मुहम्मद
 
और अन्य
 

१.देखिए खण्ड २, पृष्ठ ३९७ ।

२. यह या तो छपी प्रतिमें गलत छपा है या मूल प्रतिमें ही गलत लिखा गया है। घोषणा १८५८ में की गई थी।


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