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३५. ट्रान्सवालके भारतीय'
डबेन
 
मई १७, [१८९९]
 

इस पत्रमें मैं उन भारी गलतियोंके सिलसिलेका विहगावलोकन कराना चाहता हूँ जो, सम्राज्ञीके नामपर एकके बाद दूसरे उपनिवेश-मन्त्रीने बरपा की है। जिनके द्वारा उपनिवेश-मन्त्रीने दक्षिण आफ्रिकी गणराज्यमें रहनेवाले ब्रिटिश भारतीयोंके मामलेका चुटकी-चुटकी करके परित्याग किया है। और जिनका अन्त अब उस गणराज्य द्वारा निकाली गई एक भारी-भरकम सूचनामें हुआ है, जिसमें भारतीयोंको आदेश दिया गया है कि वे पृथक् बस्तियोंमें चले जायें, अन्यथा उनके परवाने छीन लिये जायेंगे। टाइम्स (लंदन) में "भारतीय मामलात" (इंडियन अफ़ेयर्स) शीर्षक लेख-मालाके प्रतिष्ठित लेखकने इन बस्तियोंको “यहूदी बाड़ा" कहा है और सम्राज्ञीके एक प्रिटोरिया-स्थित प्रतिनिधिने इनका बखान यों किया है : “जिस स्थानका उपयोग शहरका कूड़ा-करकट इकट्ठा करनेके लिए होता है और जहाँ शहर और बस्तीके बीचके नालेमें झिर- झिर कर जानेवाले गन्दे पानीके सिवा दूसरा पानी है ही नहीं। समाचारपत्रके इस एक-अकेले लेखमें मुझे संक्षेपमें ही लिखना होगा और परिस्थितिका संक्षिप्त वर्णन करनेमें मैं लम्बे-लम्बे उद्धरण नहीं दे सकता । कुतूहली लोगों और उनके लिए, जो इस प्रश्नका पूरा इतिहास जाननेके इच्छुक हों, मुझे इस प्रश्नपर १८९५ में प्रकाशित एक सरकारी रिपोर्ट (पेपर्स रिलेटिंग टु द ग्रीवान्सेज़ आफ़ हर मैजेस्टीज़ इण्डियन सब्जेक्ट्स इन द साउथ आफ्रिकन रिपब्लिक-सी० ७९११, १८९५) और ट्रान्सवाल-सरकारकी, १८९४ में प्रकाशित दो हरी किताबें पढ़नेकी सलाह देनी होगी। इन पुस्तकों और हालके अन्य साहित्यसे मैंने निम्नलिखित सारांश निकाला है :

आजसे वर्षों पहले, सन् १८८४ की बात है, जबकि गणराज्य में भारतीय व्यापारियोंकी संख्या अच्छी-खासी हो चुकी थी। इतनी संख्यामें उनकी उपस्थितिसे आम जनताका ध्यान उनकी ओर खिचा और उनकी सफलताने उनके यूरोपीय प्रतिस्पर्धियोंकी ईर्ष्या जागृत की। कुछ स्वार्थी व्यापारियोंने अपने स्वार्थोंको सिद्ध करनेके उद्देश्यसे बिना विचारे सीधे-सादे भारतीयोंकी आदतों और चारित्र्यके बारेमें ऐसी बातें कहीं जिन्हें, बखूबी, जानबूझ कर की गई गलतबया- नियाँ कहा जा सकता है। (यूरोपीयोंने ऑरेंज फी स्टेटकी संसदको एक अपमानकारी प्रार्थनापत्र दिया था और प्रिटोरियाके व्यापार-संघने उसे स्वीकार करते हुए ट्रान्सवालकी संसदको भेजा था। उसके इन अंशोंसे अपर्युक्त बात प्रमाणित हो जाती है : “सारे समाजपर इन लोगोंकी गन्दी आदतों और अनैतिक आचारसे उत्पन्न कोढ़, उपदंश तथा इसी प्रकारके अन्य घृणित रोगोंके फैलनेका जो खतरा आ खड़ा हुआ है. चूंकि ये लोग पत्नियों या स्त्री-रिश्तेदारोंके बिना राज्यमें आते हैं, नतीजा साफ है। इनका धर्म सब स्त्रियोंको आत्मारहित और ईसाइयोंको स्वाभाविक शिकार मानना सिखाता है")। उस समय ट्रान्सवाल-सरकारने उन थोड़ेसे स्वार्थी व्यापा- रियोंकी चीख-पुकार सुनकर भारतीयोंको ट्रान्सवालके बाहर खदेड़ देनेका विचार किया था। इसका तरीका यह तय किया गया था कि हरएक नये प्रवासीपर २५ पौंडका व्यक्ति-कर लगाया जाये और जो लोग ऐसी हालतोंमें भी बने रहें उन्हें, तथा पुराने निवासियोंको भी, पृथक् बस्तियोंमें रहने और व्यापार करनेके लिए बाध्य किया जाये। साफ़ शब्दोंमें, इसका

१. देखिप पादटिप्पणी, पृष्ठ ६३ ।


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