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पत्र: उपनिवेश-सचिवको

मानी जाती है। यह किसी पुराने ढंगके कानूनी प्रलेखसे ही ज्यादा मिलती-जुलती है- अनेक 'चूंकि-यों' से युक्त, इसमें भारतीयोंके विरुद्ध स्वीकार किये गये कानूनोंका खूब हवाला दिया गया है और “एशियाकी आदिम जातियोंको, जिनमें तथाकथित कुली, अरब, मलायी और तुर्की साम्राज्यके मुसलमान प्रजाजन शामिल है" आदेश दिया गया है कि वे पहली जुलाईको या उसके पहले पृथक् बस्तियोंमें हट जायें। तथापि, व्यवस्था यह है कि सरकार चाहे तो लम्बी अवधिके पट्टेदारोंको अपने वर्तमान स्थानोंमें पट्टेकी अवधि बितानेका मौका दे सकती है। (देखिए, जब एक रिआयत देनेका प्रसंग है, तब कैसी अनिश्चित बात कही जाती है)।

यह अड़चनकी स्थिति है, जिसमें सम्राज्ञीके दक्षिण आफ्रिकी गणराज्यवासी भारतीय प्रजाजन पड़नेवाले हैं। उनका एकमात्र अपराध यह है कि वे कमखर्च, परिश्रमी, शराबसे परहेज़ करने- वाले और ईमानदारीके साधनोंसे अपनी जीविका कमानेके शौकीन हैं। उन्होंने हताश होकर आखिरी कोशिश की है और श्री चेम्बरलेनको फिरसे निवेदन-पत्र भेजकर उनसे अनुरोध किया है कि वे उस स्वर्ण-उत्पादक देशमें उनकी हैसियतकी स्पष्ट व्याख्या कर दें और इस रूपमें उन्हें जन्मदिवस सम्बन्धी उपहार प्रदान करें। हम सब उत्कंठाके साथ उस निवेदनपत्रके परिणामकी प्रतीक्षा कर रहे हैं। कभी न थकनेवाले उपनिवेश-मन्त्रीके प्रति न्यायकी दृष्टिसे यह स्वीकार करना ही होगा कि उन्होंने अपने पूर्वगामियोंको भूलें विरासतमें ही पाई है और इसमें कोई सन्देह नहीं कि वे खोई हुई बाजी फिरसे जीतने के लिए अपने खयालके अनुसार अधिकसे- अधिक प्रयत्न कर रहे हैं। वे अपने प्रयत्नों में सफल हों, यही दक्षिण आफ्रिकाके प्रत्येक भारतीयकी प्रार्थना है।

[अंग्रेजीसे]

टाइम्स ऑफ इंडिया (साप्ताहिक संस्करण), १७-६-१८९९ ।

३६. पत्र: उपनिवेश-सचिवको
१४, मयुरी लेन
 
डर्बन
 
मई १८, १८९९
 

श्री सी० बर्ड

माननीय उपनिवेश-सचिव

पीटरमरित्सबर्ग

श्रीमन् ,

मैं इस पत्र द्वारा, कुछ झिझकके साथ, आपका ध्यान भारतीय प्रवासी-अधिनियम संशोधन विधेयकके कतिपय पहलुओंकी ओर आकर्षित करनेकी धृष्टता करता हूँ। विधेयक इस समय विधान-सभाके विचाराधीन है।

मुझे मालूम हुआ है कि विधेयकका मसविदा गिरमिटिया भारतीयों द्वारा की जानेवाली शिकायतोंके बारेमें भारतीय प्रवासी न्यास-निकायकी शिकायतोंके जवाबमें बनाया गया है।

१. प्रार्थनापत्र : चेम्बरलेनको,' मई १६, १८९९ ।

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