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सम्पूर्ण गांधी वाङमय

१८. जबतक यह मामला तय हो तबतक भारतीय व्यापारियोंको तुरन्त और अस्थायी सहायता देनेके प्रयोजनसे यह बहुत आवश्यक है कि या तो समयकी मियाद बढ़ा दी जाये जिससे कि वे अस्थायी परवाने बनवा सकें, या उन्हें ऐसा आश्वासन दे दिया जाये कि इस बीच उनके व्यापारमें हस्तक्षेप नहीं किया जायेगा।

१९. यहाँ मैं यह भी लिख दूं कि ट्रान्सवाल-सरकारने इस प्रकारकी सहायता जोहानिस- बर्गमें दी है, दीख ऐसा पड़ता है। मैं यह भी बतला दूं कि गणराज्यकी सरकारने 'कुली बस्ती' में कच्ची दूकानोंके मालिकोंको निम्न नोटिस दिया है; इसपर २३ मई १८९९ की तारीख पड़ी है :

आपको, २६ अप्रैल १८९९ के स्टाट्सकूरैटमें प्रकाशित सरकारी सूचना २०८ के अनुसार, चेतावनी दी जाती है कि इस वर्षकी तारीख ३० जूनके पश्चात् केवल आपको और आपके परिवारको आपकी कच्ची दूकानमें रहने दिया जायेगा।

(ह.) ए. स्मिथर्स
 

२०. मालूम होता है, इस सूचनाके विरुद्ध एक प्रार्थनापत्र ब्रिटिश वाइस-कॉन्सलकी सेवामें पहले ही भेजा जा चुका है। सूचनाका प्रयोजन स्पष्ट है। निवेदन है कि १८८५ के कानून ३ और उसके संशोधनमें इस प्रकारकी पाबन्दी लगानेका कोई अधिकार सरकारको नहीं दिया गया।

२१. आशा है कि ट्रान्सवाल-सरकारको ऐसा कोई अधिकार नहीं है और वह भारतीय बस्तीकी वर्तमान आबादीके अधिकारोंमें गड़बड़ी करनेकी हठ नहीं करेगी।

२२. परन्तु यदि नगरकी सारी अथवा थोड़ी आबादीको किसी बस्तीमें हटाना ही हो तो यह स्पष्ट है कि बस्तीके लिए एक और जमीनकी आवश्यकता पड़ेगी।

२३. नगर-परिषद्ने ट्रान्सवाल-सरकारकी अनुमतिसे, बस्तियोंके सम्बन्धमें कुछ नियम बनाये हैं, जो १८८५ के कानून ३ और उसके संशोधनकी सीमासे बहुत बाहर निकल गये है। उन नियमोंकी एक प्रति इसके साथ संलग्न है और उसपर 'घ' अंकित है।

२४. बहुत डर है कि ट्रान्सवाल-सरकार नगर-निवासी भारतीयोंको हटानेके लिए जो नये स्थान और चुनेगी उनपर भी इन नियमोंको लागू कर देगी। इसके साथ संलग्न परिशिष्ट ‘ग' से यह बिलकुल स्पष्ट हो जाता है।

२५. इसलिए, फेरीवाले या अन्य भारतीयोंको हटानेकी कोई भी योजना सन्तोषजनक तभी हो सकती है जब कि उसके अनुसार भारतीयोंको बस्ती में भी स्वामित्वके वही अधि- कार दिये जायें जो साधारणतया नगरमें इतर लोगोंको दिये जाते हैं।

२६. ऊपर निर्दिष्ट कानूनमें भारतीयोंके लिए बस्तियों में भूमिका स्वामी बनने अथवा उसका वे जो और जैसे चाहें वैसे व्यवहार करनेका निषेध नहीं किया गया। फेरीवालोंसे तो यह आशा की ही नहीं जा सकती कि वे बस्तियों में जमीन खरीदेंगे और उसपर अपने मकान बनायेंगे। सादर निवेदन है कि यदि भारतीय बस्तियोंमें भूमिके स्वामित्व और उसपर मकान बनानेके अधिकार भारतीयोंके सिवा किन्हीं दूसरे लोगोंको दिये गये तो यह भारी अन्याय होगा।


१ और २. ये उपलब्ध नहीं हैं।


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