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४८. 'स्टार'के प्रतिनिधिको भेंट
[ जुलाई २७, १८९९ से पूर्व]
 

स्टार' के प्रतिनिधिके पूछनेपर श्री गांधीने कहा कि प्रिटोरियामें राज्यके न्यायवादीने भार- तीयोंको तबतक बगैर परवाने के व्यापार करने की इजाजत दी है, जबतक कि पानीके नल न लगा दिये जायें। अब चूंकि यह काम पूरा हो गया है, अधिकारियोंका यह आग्रह होगा कि एशियाई अब बस्तियोंमें रहने के लिए चले जायें। जोहानिसबर्ग के अधिकारी अभी कोई सक्रिय कदम नहीं उठाना चाहते । वाटरवालकी बस्ती हर दृष्टिसे पूर्णतया अनुपयुक्त है । फेरीवाले रोज सुबह-शाम इतनी दूर चलकर जायें-आयें यह हो ही नहीं सकता। और व्यापारियोंके बारेमें पूछिए तो उन्हें तो अपना कारोबार एक जगहसे दूसरी जगह हटाने के लिए कहना मानो अपना रोजगार ही पूरी तरह बन्द करने को कहना है। क्योंकि, कुछ अन्य रंगदार जातियोंको छोड़ दें तो, आस- पास दो-दो मीलतक कोई बस्ती ही नहीं है। फिर, शहरका कूड़ा-करकट जहाँ डाला जाता है उसके बिलकुल पास वह जगह है। और अभीतक वहाँ सफाईका कोई प्रबन्ध नहीं किया गया है। भारतीय यह सिद्ध करने को तैयार है कि सफाईकी दृष्टिसे उन्हें वहाँसे हटाने के लिए सरकारके पास कोई कारण नहीं है। और अगर कहीं यहाँ-वहाँ गन्दगी दिखाई भी दे तो नियमानुसार उसका उपाय किया जा सकता है। अधिकारियोंने कोई अमली कार्रवाई नहीं की इसका मुख्य कारण बहुत करके तो यह है कि बहुतसे बाड़ों (स्टैंड्स) और इमारतोंके मालिक भारतीय हैं और इनसे ये जायदादें छीनी नहीं जा सकतीं। ट्रान्सवालकी सरकार और साम्राज्य सरकार इस विषयमें किसी सन्तोषजनक व्यवस्थापर क्यों नहीं पहुँच सकतीं, इसका कोई कारण श्री गांधीकी समझमें नहीं आया।

[अंग्रेजीसे]

नेटाल मयुरी, २७-७-१८९९

४९. प्रार्थनापत्र : नेटालके गवर्नरको
डर्बन
 
जुलाई ३१, १८९९
 

सेवामें

परमश्रेष्ठ गवर्नर महोदय

नेटाल

श्रीमन्,

गत जनवरीमें हमने नेटालके विक्रेता-परवाना अधिनियमके सम्बन्धमें परम माननीय उप- निवेश-मन्त्रीके नाम लिखा हुआ एक प्रार्थनापत्र आपको भेजा था। निम्नलिखितसे प्रतीत होता है कि श्री चेम्बरलेन इस कानूनके सम्बन्धमें नेटाल सरकारसे पत्र-व्यवहार कर रहे हैं :

१. स्टारमें छपी भेंटकी रिपोर्ट उपलब्ध नहीं है।


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