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प्रार्थनापत्र : नेटालके गवर्नरको
पीटरमैरित्सबर्ग
 
जून १३, १८९९
 

आपने पिछली ११ जनवरी को जो पत्र परमश्रेष्ठ गवर्नरको लिखा था, और जिसके साथ १८९७ के व्यापारी परवाना अधिनियम १८ के विषयमें बहुत-से भारतीयों द्वारा हस्ता- क्षरित एक प्रार्थनापत्र भी संलग्न था, उसके विषयमें मुझे आपको यह बतलानेका सम्मान प्राप्त हुआ है कि प्राथियोंकी शिकायतके सम्बन्धमें उपनिवेश-मन्त्री इस सरकारके साथ पत्र-व्यवहार कर रहे हैं।

सरकार द्वारा लेडीस्मिथके स्थानिक निकायके नाम लिखे गये पत्रके विषयमें नेटाल विटनेसके जुलाई ४, १८९९ के अंकमें निम्नलिखित प्रकाशित हुआ है :

मुख्य उप-सचिवकी 1ओरसे आया हुआ एक पत्र पढ़ा गया, जिसमें निकायको सलाह दी गई थी कि वह भारतीयोंको परवाने देनसे इनकार करते हुए सावधानतासे काम ले, जिससे कि जमे हुए कारोबारवालोंपर उसका असर न पड़े। यदि ऐसा न किया गया तो सरकारको ऐसा कानून बनाना पड़ेगा जिससे भारतीयोंको स्थानिक निकायके निर्णयोंके विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालयमें अपील करनेका अधिकार प्राप्त हो जाये। परन्तु यदि भार- सीयोंको परवाने देनेसे इनकार करते हुए सावधानतासे काम लिया गया तो इस प्रकारका कानून बनाना आवश्यक नहीं होगा।

निश्चय किया गया कि सरकारको सूचना दे दी जाये कि इस विषयपर पूण विचार किया जानेकी आवश्यकता है; और नगरके क्लार्कको हिदायत दी गई कि वह इस विषयको निकायके सामने पेश करे।

हम मानते है कि इसी प्रकारका पत्र उपनिवेशके प्रत्येक स्थानिक निकाय अथवा नगर- परिषदको लिखा गया होगा।

यह देखकर हमें सन्तोष हुआ कि श्री चेम्बरलेन इस बातको समझते हैं कि यदि भार- तीयोंको साम्राज्य सरकारकी बलशाली बाहुके संरक्षणमें न ले लिया गया तो उन्हें किस आपत्तिका सामना करना पड़ेगा, और प्रतीत होता है कि नेटाल सरकारको भी किसी न किसी प्रकार श्री चेम्बरलेनकी इच्छा पूरी करनेका ध्यान है। फिर भी उपर्युक्त पत्रका वास्तविक भाव भली भाँति समझ लेना बहुत ही वांछनीय है। और यह भी कि, उपनिवेश-कार्यालय' अथवा भारतीयोंके साथ सहानुभूति रखने वाले अन्य लोग ऐसा समझकर चुप न बैठ जायें कि इस पत्रसे किसी तरह भी कठिनाई हल हो जाती है, या नेटालके भारतीयोंको जो चिन्ता परेशान कर रही है वह दूर हो जाती है। नगर-परिषदों और स्थानिक निकायोंको अधिनियमके अन्तर्गत कतिपय अधिकार प्राप्त है। और उन्हें उन अधिकारोंका जैसे वे चाहें वैसे बे-रोक-टोक प्रयोग करनेकी स्वतन्त्रता है। ठीक-ठीक कहें तो यह पत्र ही अवैध है। अधिकसे अधिक, इसे एक मुफ्तकी सलाहमात्र माना जा सकता है, जिसे स्थानिक निकाय' या नगर-परिषदें मानने के लिए किसी भी प्रकार बाध्य नहीं हैं। यहाँतक कि, इसका भी कुछ ठिकाना नहीं कि आगे बढ़ी हुई कुछ नगरपालिकाएँ इस पत्रको नेटाल सरकारको अनधिकार-चेष्टा और अनुचित हस्तक्षेप बतला- कर, इसपर नाराजगी जाहिर न करने लग जायें। परन्तु इस सबको जाने दीजिए। हम तर्कके लिए यह मान लेते हैं कि सम्बद्ध नगरपालिकाएँ कुछ समयतक अपने अधिकारोंका प्रयोग इस प्रकार

१. देखिए “पत्र : प्रार्थनापत्र भेजते हुए,” पृष्ठ ५४ ।

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