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सम्पूर्ण गांधी वाङमय

भारतीय व्यापारी पूर्ववत् भयंकर दुविधाको अवस्थामें पड़े रहेंगे। ऊपर जिस पत्रका जिक्र हुआ है उसमें सुझाया हुआ परिवर्तन, मेरी नम्र सम्मतिमें, है तो न्यायका एक छोटा-सा कार्य, परन्तु जिन भारतीय लोगोंका कारोबार उपनिवेशमें जम चुका है उनके लाभको दृष्टिसे यह अत्यन्त अभीष्ट है।

निवेदन है कि इस पत्रकी बातोंको आप परम माननीय उपनिवेश-मंत्रीतक पहुँचा देनेकी कृपा करें।

दूसरा पत्र:

मैंने इसी महीनेको ६ तारीखको विक्रेता-परवाना अधिनियमके विषयमें जो पत्र लिखा था, उसमें एक भूल रह गई थी। उसे मैं ठीक कर देना चाहता हूँ।

जिस प्रकारको कठिनाइयाँ होनेको मैंने अपने पत्रमें चर्चा की है उस प्रकारको कठिनाइयोंका पोर्ट शेप्स्टोनमें केवल एक मामला हुआ है। दूसरा मामला परवाना- अधिकारीतक पहुंचा ही नहीं, क्योंकि जिस वकीलको ये दोनों मामले सौंपे गये थे उसने पहले मामलेके दुर्भाग्यपूर्ण परिणामके कारण अपने दूसरे मुअक्किलको आगे न बढ़नेको सलाह दे दी। अब दूसरी अर्जी भी पेश करनेकी तैयारी की जा रही है।

पोर्ट शेप्स्टोनके विषय में इतना और बतला देना आवश्यक है कि वहाँ परवाना देनेसे इनकार, नेटालकी विधान-सभामें उस जिलेके एक सदस्य द्वारा इस आशयका प्रश्न पूछा जानेके बाद तुरन्त ही किया गया था कि क्या इन जिलों में भारतीयोंको परवाने बिना सोचे-समझे दिये जा रहे हैं। सरकारने इसका जवाब यह दिया था कि इन जिलोंमें जिला मजिस्ट्रेट ही परवाना-अधिकारी भी हैं, और उन्हें बतला दिया गया है कि आपको अपनी समझके अनुसार चलनेका अधिकार है। स्पष्ट है कि पोर्ट शेप्स्टोनके मजिस्ट्रेटने इशारा ले लिया और उसने परवाना देनेसे इनकार कर दिया। यह बात, नेटाल विटनेस में लेडीस्मिथ स्थानिक निकायके नाम उपर्युक्त सरकारी पत्र प्रकाशित होनेसे कुछ दिन पहलेकी है।

इस प्रसंगमें यह तो बतलाने की आवश्यकता ही नहीं कि कठिनाइयोंके उदाहरण केवल वही नहीं हैं जो कि किसी न किसी प्रकार अधिकारियोंतक पहुंचा दिये जाते हैं। इस अधिनियमका निरोधक प्रभाव बहुत भयंकर हुआ है। इसके कारण बहुत-से गरीब व्यापारियोंने तो निराशाके मारे अपने परवाने फिर जारी करवानेकी अजियाँ ही नहीं दीं। और ऐसे व्यापारियोंकी संख्या इनसे भी अधिक है जिन्होंने परवाना-अधिकारी द्वारा अपना प्रार्थनापत्र अस्वीकृत कर दिया जानेपर, नगरपालिका या परवाना-निकाय आदि अपील सुननेवाली किसी भी संस्थाके सामने अपील नहीं की। पोर्ट शेप्स्टोनका दूसरा मामला इसी प्रकारका है।

इस अधिनियम के कारण भारतीय जितनी कठिनाईका अनुभव कर रहे हैं उतनी वे अन्य किसी बातसे नहीं करते। कारण यह है कि इसका प्रभाव नीचेसे लेकर ऊपरतक सैकड़ों परिश्रमी और शान्त भारतीयोंकी दाल-रोटीपर पड़ रहा है। इसका कुछ निश्चय नहीं कि चूंकि हममें से सबसे अच्छे व्यापारियोंको इस वर्ष परवाना मिल गया है, इसलिए उन्हें अगले वर्ष भी मिल ही जायेगा। अरक्षाकी इस अवस्थामें स्वभावतः कारोबार बन्द हो जाता है और हमारा मन बेचैन हो उठता है। अब तो आशा यही रह गई है कि इस सम्बन्धमें साम्राज्य सरकार कुछ करेगी या करवायेगी ।


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