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नेटाल भारतीय कांग्रेसकी दूसरी कार्यवाही

इसपर एक प्रार्थनापत्र' श्री चेम्बरलेनको भेजा गया। प्रार्थनापत्र के पहुँचने पर सर मंचरजी मेरवानजी भावनगरीने लोकसभामें उसपर एक प्रश्न उठाया। लंदन टाइम्सने इस मामलेपर लगभग दो कालमोंका लेख छापा । राष्ट्रीय कांग्रेसकी समिति ने भी इस मामलेको उठा लिया। प्रसंगवश यहाँ यह भी ध्यानमें रहे कि उक्त विनियमोंके प्रकाशित होनेपर यह तथ्य भी प्रकाशमें आया कि पहले बसाये गये मेलमॉथ तथा एशोवे नामक नगरोंके सम्बन्धमें भी इसी प्रकारके विनियम पास किये जा चुके थे। उपर्युक्त प्रार्थनापत्रमें इन दोनों बस्तियोंको भी शामिल कर लिया गया था। अब यह पाबन्दी हटा ली गई है। यदि श्री आदमजी मियाखौ चौकन्ने न रहते तो यह मामला कांग्रेसकी नजरसे चूक जाता, क्योंकि उन्हें ही सबसे पहले इस मामलेका पता चला और उन्होंने कांग्रेसके अवैतनिक मन्त्रीका ध्यान इस ओर खींचा था।

मई १८९६ के आसपास बहुत-सी जायदादोंका निरीक्षण तथा काफी सलाह-मशविरा करनेके बाद कांग्रेसने १०८० पौंडमें निद्धा नामक एक स्वतन्त्र भारतीय महिलाके नाम रजिस्टर की गई एक जायदाद खरीद ली। इस जायदादमें ईंटका एक मकान था और एक दूकान थी। सर्वसम्मतिसे यह निश्चय किया गया कि यह जायदाद उन ७ व्यक्तियोंके नाम रजिस्टर कराई जाये, जो कांग्रेसके न्यासियों (ट्रस्टियों) के रूपमें कांग्रेसकी ओरसे चेकोंपर हस्ताक्षर करनेका अधिकार रखते थे। इस जायदादसे करीब १० पौंड प्रतिमास किराया आता है, कर लगाने के लिए इसकी कीमत २०० पौंड ऑकी गई है और इस वर्ष निगमको इसका वार्षिक कर पौंड ९-१७-६ दिया गया है। इन इमारतोंका गाडिनर फायर एशूरेन्स सोसाइटीमें ८०० पौंडका बीमा कराया गया है। किरायेदारोंमें से अधिकतर तमिल लोग हैं। उन्हें एक गुसलखानेकी सख्त जरूरत थी। इसलिए स्वयंसेवकोंने उसका एक अस्थायी ढाँचा तैयार करके दे दिया। श्री अमद जीवाने उसके लिए मुफ्त ईंटें दीं। हिसाब लगानेसे मालूम होता है कि इससे कांग्रेसको ८ पौंडसे ज्यादाकी बचत हुई है। इस प्रकार जब अप्रैल १८९६ में कांग्रेसकी आर्थिक अवस्था अच्छी जान पड़ी और उसे श्री मूसा हाजी आदमके घरसे हटाना आवश्यक हो गया, तब यह महसूस किया गया कि अब तो कांग्रेस बखूबी एक कदम और आगे बढ़कर कोई अच्छा मकान ले सकती है। तदनुसार यह बड़ा हाल जिसमें कि अब उसका दफ्तर है, ५ पौंड मासिक किरायेपर लिया गया। पहले जो किराया दिया जाता था उससे यह ३ पौंड अधिक है।

नेटालकी संसदके १८९६ के पहले अधिवेशनके समय ज्ञात हुआ कि श्री चेम्बरलेनने नेटालके मन्त्रियोंको यह सलाह देनेका निश्चय किया है कि वे उपनिवेश की कानूनी पुस्तकसे उस अधिनियमको निकाल दें, जिसके द्वारा खास तौरसे एशियाई वंशोंके लोगोंको मतदाता- सूचीमें शामिल होनेसे रोकनेकी व्यवस्था की गई है; और उसके बदले एक सामान्य अधिनियम पास कर लें। इसपर एक ऐसा विधेयक पेश किया गया, जिससे वह कानून रद होता है और ऐसे देशोंके लोगों और उनके वंशजोंको संसदीय चुनावोंमें मतदाता बननेके अयोग्य ठहराया जाता है, जिनमें संसदीय मताधिकारपर आधारित चुनावमूलक प्रातिनिधिक संस्थाएँ न हों। कांग्रेसने अनुभव किया कि यद्यपि यह विधेयक भारतीयोंपर लागू नहीं होता' तथापि यह केवल उन्हें ही मताधिकारसे वंचित करनेके उद्देश्यसे पास' किया जा रहा है। इसलिए यह आवश्यक है कि इसका विरोध किया जाये। फलतः एक प्रार्थनापत्र तैयार किया गया। उसमें प्रमुख व्यक्तियोंके विचार दिये गये थे कि भारतमें प्रातिनिधिक संस्थाओंका अस्तित्व है। यह

१. देखिए खण्ड १, पृष्ठ ३१०-३१४ ।

२. यह निर्देश भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसकी लंदनस्थित ब्रिटिश समितिकी ओर है ।

३. इसमें स्पष्ट तौरपर भारतीयोंका उल्लेख नहीं किया गया था।

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