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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

प्रार्थनापत्र विधानसभाको दिया गया था। इससे विधानसभाके कुछ सदस्योंने विधेयकका इतना अधिक विरोध किया कि एक समय तो ऐसा लगने लगा था कि विधेयक नामंजूर ही हो जायेगा। तब सर जान रॉबिन्सनने श्री चेम्बरलेनको एक तार भेजकर उनसे संस्थाओंके पूर्व 'संसदीय मताधिकारपर आधारित यह वाक्यखंड जोड़नेकी अनुमति प्राप्त कर ली। इस परिवर्धनसे विरोधी पक्ष बहुत कमजोर पड़ गया और विधानपरिषदमें हमारे प्रार्थनापत्रके पेश होनेपर भी दोनों सदनोंने इस विधेयकको पास कर दिया। इस वादविवादके समय श्री लॉटनने नेटाल ऐडवर्टाइज़रको एक पत्र लिखकर अपना मत प्रकट किया कि उक्त परिवर्धनके बावजूद विधेयक, जहाँतक' भारतीयोंका सम्बन्ध है, बेकार ही रहेगा। विधेयक गवर्नरको अधिकार देता है कि वह इसके अन्तर्गत आनेवालोंको विशेष छूट देना चाहे तो दे सकता है। इस विधेयकका विरोध करते हुए एक प्रार्थनापत्र उपनिवेशमन्त्रीको भेजा गया, किन्तु इसपर शाही स्वीकृतिकी मुहर लग चुकी है और अब यह देशका कानून बन गया है। इसके लिए हमें पूरा अधिकार है कि हम किसी भी समय परीक्षात्मक मुकदमा दायर कर यह जान सकेंगे कि जिस तरहकी संस्थाएँ विधेयकमें बताई गई हैं वैसी भारतमें हैं या नहीं। साथ ही हम विशेष छूटके लिए गवर्नरसे प्रार्थना भी कर सकेंगे। अभीतक इन दोनोंमें से किसीकी भी आवश्यकता नहीं पड़ी। हम सदैवसे प्रतिवाद करते आ रहे हैं कि हम राजनीतिक सत्ता नहीं चाहते, बल्कि उस अपमानपर क्षोभ अनुभव करते हैं जो कि पहले विधेयकमें भरा हुआ था। स्पष्ट है कि सम्राज्ञीकी सरकारने हमारी इस आपत्तिको मान लिया है।

मार्च १८९६ में श्री अब्दुल कादिरके घर पुत्र-जन्मका उल्लेख एक विशेष अनुच्छेदके लायक है। जन्म-समारोह कांग्रेसके सभाभवनमें मनाया गया। उसमें ५०० से भी अधिक लोग जमा हुए थे। सभाभवनमें खूब रोशनी की गई थी। श्री अब्दुल कादिरने कांग्रेसको ७ पौंड दान दिये। इसका अनुसरण और लोगोंने भी किया। उस अवसरपर जो दान दिया गया उसकी रकम ५८ पौंड तक पहुंच गई।

श्री अब्दुल्ला हाजी आदमकी अध्यक्षताके कालमें इस आशयका प्रस्ताव पास किया गया था कि जो सदस्य कांग्रेसके लिए २५ पौंड या इससे अधिक रकम जमा करे, उसे चाँदीका पदक भेंट किया जाये। पदकोंकी प्रथा शुरू करनेपर बहुत-से सदस्योंने अप्रैल १८९६ से पहले ही अपनेको इस सम्मानका अधिकारी बना लिया था। इस सम्बन्धमें श्री दाऊद मुहम्मद सबसे आगे थे। और सबकी इच्छा थी कि उनके कार्यके सम्बन्धमें यह प्रस्ताव अमलमें लाया जाये। फलतः एक विशेष बैठक बुलाई गई और एक प्रमाणपत्रके साथ उन्हें चाँदीका पदक भेंट किया गया। पदकमें उपयुक्त शब्द खुदे हुए थे।

इस समयतक घरेलू कारणोंसे अवैतनिक मन्त्रीका कुछ समयके लिए भारत जाना जरूरी हो गया। कांग्रेसने निर्णय किया कि वे अपनी भारत-यात्राका लाभ उठाकर दक्षिण आफ्रिकी ब्रिटिश भारतीयोंकी शिकायतोंको भारतीय जनताके सामने रखें। फलतः उन्हें प्रतिनिधि नियुक्त किये जानेका एक पत्र दिया गया और साथमें ७५ पौंडकी एक हुंडी भी दी गई, ताकि वे इसका

१. देखिए खण्ड १, पृष्ठ ३१९-३२८ ।

२. देखिए खण्ड १, पृष्ठ ३३३ ।

३. प्रार्थनापत्र विधानसभाको भेजा गया था। देखिए खण्ड १, पृष्ठ ३१९-३८ ।

४. देखिए खण्ड १, पृष्ठ ३३१-५४ ।

५. देखिए खण्ड २, पृष्ठ ५८-५९ ।

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