पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 3.pdf/१४३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१११
नेटाल भारतीय कांग्रेसकी दूसरी कार्यवाही

उपयोग अपनी यात्रा तथा उक्त कार्यसे सम्बन्धित छपाई और अन्य जेब-खर्च में कर सकें। कांग्रेसने उन्हें एक मानपत्र तथा एक स्वर्ण पदक प्रदान किया। कांग्रेसके तमिल सदस्योंने एक विशेष बैठक बुलाई और उन्हें एक और मानपत्र भेंट किया। अवैतनिक मन्त्रीने सभी मानपत्रोंका उत्तर देते हुए कहा कि वे भेंट समयसे पूर्व ही दे दी गई हैं। अभीतक काम समाप्त नहीं हुआ। फिर भी उन्होंने मानपत्रों तथा भेंटोंको प्रेमकी निशानीके रूपमें स्वीकार किया और कहा कि यदि वे भावनाएँ, जो लोगोंने व्यक्त की है, सच्ची हैं तो मेरे वापस आनेके पहले सदस्य ऐसा काम करें कि कांग्रेसके कोश में बची हुई १९४ पौंडकी रकम चन्दा तथा दानसे बढ़कर १,१९४ पौंडकी बन जाये -उसमें १,००० पौंड और जुड़ जायें। दक्षिण आफ्रिकी अखबारोंमें इन भेंटोंकी विस्तारसे चर्चा हुई, और सर्वथा अमित्र-भावनासे नहीं। जून ५, १८९६ को अवैतनिक मन्त्रीने पोंगोला जहाजसे भारतकी यात्रा आरम्भ की।

उनकी अनुपस्थितिमें आदमजी मियाखाँको कार्यवाहक अवैतनिक मन्त्री नियुक्त किया गया। भारत पहुँचने के तुरन्त बाद ही अवैतनिक मन्त्रीने दक्षिण आफ्रिकावासी बिटिश भारतीयोंकी कष्ट-गाथा : भारतीय जनतासे अपील' नामक एक पुस्तिका प्रकाशित की। उसकी चार हजार प्रतियाँ छापी गई, जिन्हें दूर-दूरतक वितरित किया गया। टाइम्स ऑफ इंडियाने उसपर सबसे पहले विचार व्यक्त किये और एक सहानुभूतिपूर्ण अग्रलेखमें सार्वजनिक जाँचकी मांग की। भारतके प्रायः सभी प्रमुख पत्रोंने इस प्रश्नको उठाया। पायोनियरने शिकायतोंको स्वीकार तो किया, लेकिन कहा कि प्रश्न बहुत ही उलझा हुआ है, स्वशासित उपनिवेशोंको किसी खास नीतिपर चलने का आदेश नहीं दिया जा सकता और वर्तमान परिस्थितियोंमें दक्षिण आफ्रिका एक ऐसा देश है जिससे उच्च वर्गके भारतीयोंको दूर ही रहना चाहिए। लंदन टाइम्सके शिमला- संवाददाताने पुस्तिकाका सारांश तथा पुस्तिकापर टाइम्स ऑफ इंडिया और पायोनियरके विचार तार द्वारा भेजे । पुस्तिका प्रकाशित होनेके बाद अवैतनिक मन्त्री बम्बईके प्रमुख व्यक्तियोंसे मिले। उन दिनों कांग्रेसके पूर्व अध्यक्ष श्री अब्दुल हाजी भी बम्बईमें थे। वे भी इन मुलाकातोंमें उनके साथ जाते थे।

माननीय श्री फीरोजशाह मेहता के सुझाव पर २६ सितम्बरको फ्रामजी कावसजी इन्स्टिट्यूटके सभाभवनमें एक सार्वजनिक सभा की गई। श्री मेहताने अध्यक्षता की। सभाभवन खचाखच भरा हुआ था। अवैतनिक मन्त्रीके अपना भाषण पढ़ चुकने के बाद दक्षिण आफ्रिकी भारतीयोंके प्रति सहानुभूति प्रकट करनेके लिए सर्वसम्मतिसे एक प्रस्ताव पास किया गया और अध्यक्षको अधिकार दिया गया कि वे इस सम्बन्धमें एक प्रार्थनापत्र तैयार करके सम्राज्ञीके मुख्य भारत- मन्त्रीको भेजे । माननीय श्री झवेरीलाल याज्ञिक, माननीय श्री सयानी और चम्पियनके सम्पादक श्री चेम्बर्स प्रस्तावपर बोले । बैठककी पूरी कार्यवाही दैनिक पत्रोंमें प्रकाशित हुई और प्रेसीडेन्सी असोसिएशनने कार्यवाहीका सारांश तार द्वारा लंदन भेजा।

इसके बाद अवैतनिक मन्त्री मद्रास गये और वहाँके प्रमुख व्यक्तियोंसे मिले। मद्रास महा- जन सभाके तत्त्वावधानमें पच्चैयप्पा-भवनमें एक सार्वजनिक सभा करने के लिए एक परिपत्र तैयार किया गया। उस परिपत्रपर मद्रासके विभिन्न सम्प्रदायोंके लगभग ४० प्रतिनिधि सदस्योंने हस्ताक्षर

१. देखिए खण्ड २, पृष्ठ १५०-१६६ -“भारतमें प्रतिनिधित्व : वास्तविक खर्चका हिसाब"

२. देखिए खण्ड २, पृष्ठ ३८९-९० ।

३. देखिए खण्ड २, पृष्ठ १-५७ ।

४. देखिए खण्ड १, पृष्ठ ३९५ ।

५.देखिए खण्ड २, पृष्ठ ७५-९० ।

Gandhi Heritage Portal