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नेटाल भारतीय कांग्रेसकी दूसरी कार्यवाही

मन्त्रीपर भीड़का आक्रमण, भारतीय पुलिस सिपाहीके वेश में उनका बाल-बाल बच निकलना, पुलिस सुपरिटेंडेंट अलेक्जेंडर तथा उनके दल द्वारा दी गई प्रशंसनीय सहायता, पत्रोंकी आवाजमें सहसा परिवर्तन, प्रदर्शन-समितिकी कार्रवाईपर दिया गया उनका कठोर निर्णय, भारतीय समाजका पुलिस द्वारा की गई सेवाओंको मान्यता देना, संकटके पूरे इतिहासपर प्रकाश डालते हुए प्रदर्शनके सम्बन्ध में श्री चेम्बरलेनको पृष्ठ का प्रार्थनापत्र भेजना ये सभी घटनाएँ कांग्रेसी सदस्योंके मनमें ताजी है। इस संकटकालमें भारतीय चरित्रकी दो विशेषताएँ प्रमुख रूपसे प्रकट हुईं। दो अभागे जहाजोंके पीड़ितोंकी सहायताके लिए सूतक-कोशकी स्थापना एक ऐसा कार्य था जिसमें भारतीय उदारताका अत्यन्त हितकर रूप प्रकट हुआ तथा अतिशय सन्तापके समयमें भी उनके शान्त व्यवहार और मौन समर्पणने उन लोगोंसे भी प्रशंसा प्राप्त की जिनसे हमारे लोगोंके गुणोंकी ओर ध्यान देने की कमसे-कम सम्भावना मानी जाती थी।

इसके बाद संसदका जो अधिवेशन हुआ उसमें सरकारने प्रदर्शन-समितिको दिये गये अपने वादेके अनुसार चार एशियाई-विरोधी विधेयक -- अर्थात्, सूतक, प्रवासी-प्रतिबन्धक, विक्रेता-परवाना और गैरगिरमिटिया भारतीय-संरक्षण विधेयक पेश किये। इनके विरुद्ध दोनों सदनोंको प्रार्थनापत्र भेजे गये, किन्तु सब व्यर्थ । विधेयक स्वीकार हो गये। इसलिए एक प्रार्थनापत्र उपनिवेश-मन्त्री को भेजा गया। उसका जो उत्तर मिला वह सर्वथा सन्तोषजनक नहीं है। फिर भी श्री चेम्बरलेनने हमारे साथ सहानुभूति व्यक्त की है, और उन्होंने भारतीय- संरक्षण अधिनियम सम्बन्धी हमारी प्रार्थना स्वीकार कर ली है। इस कानूनके बारेमें सरसरी तौरपर कहा जा सकता है कि इससे एशियाई प्रश्नका एक हिस्सा तय हो चुका है और मालूम पड़ता है कि कुछ हदतक यह हमारे पक्षमें ही हुआ है। जबसे हमारी संस्थाको स्था- पना हुई है, हम रंग-भेदके कानूनोंके -- भारतीयोंपर विशेष निर्योग्यताएँ लादनेवाले कानूनोंके -खिलाफ लड़ते आये हैं। वह सिद्धान्त स्पष्ट रूपसे स्वीकार कर लिया गया है। अलबत्ता, इसका मतलब यह नहीं कि हमें आगे कुछ नहीं करना है या जो हल हुआ है वह सन्तोष- जनक है। उलटे, हमें अब और भी अधिक धूर्ततापूर्ण विरोधसे लोहा लेना है, क्योंकि वह अप्रत्यक्ष है। यद्यपि उक्त कानून नाम-मात्रके लिए सबपर लागू होता है, तथापि व्यवहारमें उसका उपयोग केवल भारतीयोंके विरुद्ध किया जाता है। इसलिए हमें न केवल कानूनको रद करवाने या बदलवानेकी दिशामें प्रयत्न करना है, बल्कि यह चौकसी भी रखनी है कि विभिन्न अधिनियम कैसे अमलमें आते हैं। जहाँतक सम्भव है, हमें अधिकारियोंको इसके लिए भी तैयार करना है कि वे इन अधिनियमोंके अमलको अनुचित रूपसे कठोर एवं कष्टदायक न बनायें। इसके लिए हमें केवल निरन्तर प्रयत्न, सतत जागरूकता, परस्पर अटूट एकता, विशाल परिमाणमें आत्म- त्याग तथा राष्ट्रको ऊँचा उठाने वाले अन्य' सब गुणोंकी आवश्यकता है। और तब अवश्य ही विजय हमारी होगी, क्योंकि सभी जानते हैं कि हमारा उद्देश्य न्यायपूर्ण है, हमारे तरीके नरम तथा अनिन्दनीय हैं।

इस प्रसंगमें यह उचित होगा कि कांग्रेसके खिलाफ जो एक शिकायत की जाती है उस- पर विचार कर उसे निबटा दिया जाये। इस शिकायतका कारण पिछली घटनाओंकी जानकारी न होता है। कहा जाता है कि यदि हम अपनी शिकायतें दूर करवानेका आन्दोलन न छेड़ते तो हमारी स्थिति इतनी खराब न होती, जितनी कि अब है। किन्तु ऐसा तर्क करनेवाले लोग

१.देखिए खण्ड २, पृष्ठ १९७-३२० ।

२. देखिए खण्ड २, पृष्ठ ३२३ और ३३० ।

३. देखिए खण्ड २, पृष्ठ ३६१ ।

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