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नेटाल भारतीय कांग्रेसकी दूसरी कार्यवाही

नेटाल भारतीय शिक्षा-संघ (नेटाल इंडियन एजुकेशनल असोसिएशन) ने डॉ० श्रीमती बूथकी देख-रेखमें कांग्रेस-भवनमें दो नाटक सहायतार्थ खेले। तुरन्त एक रंगमंच तैयार किया गया और सदस्योंने कुछ गैर-सदस्योंकी सहायतासे 'अलीबाबा चालीस चोर' का अभिनय किया। दोनों अवसरोंपर भवन खचाखच भरा हुआ था। ४० पौंडकी प्राप्ति हुई। लंदन टाइम्सके विशेष संवाददाता कैप्टन यंगहस्बैड डर्बन गये। वे अपने कार्यपर कुछ समयतक भारतमें भी रह चुके थे। दक्षिण आफ्रिकी भारतीयोंके प्रश्नका भारतीय पक्ष उनके सामने रखा गया। दादा अब्दुल्ला ऐंड कम्पनीने कांग्रेस-भवनमें उन्हें एक भोज दिया और प्रमुख भारतीयोंको भी आमन्त्रित किया। उन्होंने दक्षिण आफ्रिका-सम्बन्धी अपनी पुस्तकमें हमारे प्रश्नपर एक विशेष अध्याय लिखा। यद्यपि उसमें उन्होंने यूरोपीयोंके रुखके प्रति अनुकूलता दिखाई है, फिर भी भारतीय पक्षको भी अच्छी तरह पेश किया है।

हीरक जयंती समारोहमें भी कांग्रेस पीछे नहीं रही। नेटाली भारतीयोंकी ओरसे सम्राज्ञीको पानके आकारकी एक चाँदीकी तश्तरीमें खुदा मानपत्र भेंट किया गया। तश्तरीके पीछे मोटा, मुलायम रेशम मढ़ा था और उसे नेटालकी पीली लकड़ीके फ्रेममें जड़ दिया गया था। इस मानपत्रको भेंट करनेके लिए हमारे प्रमुख व्यक्तियोंका एक शिष्टमंडल परमश्रेष्ठ गवर्नरकी सेवामें विशेष रूपसे उपस्थित हुआ। इसी प्रकारकी भाषामें एक मानपत्र ट्रान्सवालके भारतीयोंकी ओरसे भी भेजा गया।

हीरक जयंतीके दिन नेटाल भारतीय शिक्षा-संघके तत्त्वावधान हीरक जयन्ती पुस्तकालय (डायमण्ड जुबिली लायब्रेरी) खोला गया, जिसका उद्घाटन डर्बनके तत्कालीन मजिस्ट्रेट श्री वॉलरने किया। उद्घाटन समारोहके अवसरपर डर्बनके मेयर, श्री लॉटन, डर्बन पुस्तकालयके ग्रन्थपाल श्री ऑस्बर्न, डॉ० बूथ और कुछ अन्य यूरोपीय' उपस्थित थे। जो लोग उपस्थित नहीं हो सके उनके पाससे सहानुभूतिके पत्र प्राप्त हुए। ऐसे लोगोंमें माननीय श्री जेमिसन तथा उप- महापौर (डिप्टी मेयर) श्री कॉलिन्स भी थे। इस अवसरपर कांग्रेस-भवनमें खूब रोशनी की गई थी। उद्घाटन समारोहकी सफलता तथा सजावटका सारा श्रेय श्री ब्रायन गैब्रियलके प्रयत्नोंको है, हालाँकि यहाँ यह बता देना न्याय्य ही होगा कि सजावटके आखिर-आखिरमें अन्य कार्यकर्ताओंने भी उनकी सहायता की थी। खेदके साथ कहना पड़ता है कि जिस सफलताके साथ पुस्तकालयका उद्घाटन हुआ था उस सफलताके साथ वह चला नहीं। वहाँ उपस्थिति शून्य ही रही। पुस्तकालयके खर्च के लिए शिक्षा संघके सदस्योंने आपसमें चन्दा किया और उतनी ही रकम कांग्रेसने भी मंजूर की।

जैसा कि पहले कहा जा चुका है, जून १८९६ तथा जून १८९७ के बीच कांग्रेसके अवैतनिक-मन्त्रीका कार्य-भार श्री आदमजी मियाखाँने सँभाला। अब वे भी भारत जानेवाले थे। इसलिए उन्होंने अपना कार्य-भार अवैतनिक-मन्त्रीको वापस दे दिया। श्री आदमजी मियाखाँने कठिन समयमें कांग्रेसकी सेवा की थी। उनकी सेवाकी सराहनाके रूप में उन्हें सम्मा- नित करनेके औचित्यपर विचार करनेके लिए कांग्रेसकी एक बैठक बुलाई गई। श्री आदमजीने जिस आत्मत्याग, उत्साह, योग्यता तथा कौशलसे कांग्रेसकी सेवा की उसकी तो सभी सदस्योंने प्रशंसा की, लेकिन इसपर मतभेद हो गया कि उन्हें मानपत्र दिया जाये या नहीं। कुछ बहस- मुबाहसेके बाद उनको मानपत्र देने का प्रस्ताव थोड़े-से बहुमतसे पास हो गया। किन्तु विरोध इतना जबरदस्त था कि बहुमत-पक्षने मानपत्र न देनेका निश्चय किया, क्योंकि ऐसे मामलोंमें

१. इसकी स्थापना १८९४ में हुई थी।


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