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सम्पूर्ण गांधी वाङमय

सर्वसम्मतिका होना आवश्यक समझा गया। और श्री आदमजी मियाखाँ मानपत्र तथा धन्य- वाद प्राप्त किये बिना ही भारतके लिए रवाना हो गये।

कांग्रेसने जो भूलें की हैं उनमें से यह भी एक थी। इससे मालूम पड़ता है कि हमारी संस्था भी तो आखिर मनुष्योंकी है, और उसका भी दूसरी संस्थाओंके समान भूल करना स्वाभाविक ही है। ऐसी स्थितिमें अवैतनिक-मन्त्रीने अपने घरपर श्री आदमजीके सम्मानमें एक भोज दिया। छपे हुए निमन्त्रणपत्र भेजे गये और सभी प्रमुख भारतीय उसमें शामिल हुए। वहाँ श्री आदमजीकी प्रशंसामें भाषण दिये गये, जिनका उन्होंने उपयुक्त उत्तर दिया। कांग्रेसके अध्यक्ष, अवैतनिक-मन्त्री तथा दूसरे सदस्य उन्हें विदा करनेके लिए जहाज घाटपर गये। कांग्रेसने श्री आदमजी मियाखाँको जो उत्तरदायित्व सौंपा था उसके लिए वे योग्य सिद्ध हुए। अपने कार्यकालमें उन्होंने नियमित रूपसे बैठकें बुलाई, ठीक तरहसे किरायेकी उगाही की और सारे खर्चेका हिसाब भी सही रखा। इसमें सन्देह नहीं कि उन्होंने आम तौरपर कांग्रेसके सभी सदस्योंके साथ अच्छा सम्बन्ध कायम किया। इस पदको सँभालनेवाले व्यक्तिमें सबसे बढ़कर गुण यह होना चाहिए कि भीतर और बाहरसे होनेवाली सभी तरहकी उत्तेजनाओंमें उसका मन शान्त रहे और विभिन्न स्वभाववाले सदस्योंका निभाव करनेकी उसमें योग्यता हो। ये गुण उन्होंने पर्याप्त मात्रामें प्रकट किये। श्री आदमजी मियाखाँने जितनी लगन और तत्परता जयन्ती-मानपत्रको समयपर तैयार करने में दिखाई, उतनी यदि वे न दिखाते तो मानपत्र कभी भी भेजा न जा सकता। उन्होंने दिखा दिया है कि कांग्रेस चलती रह सकती है और स्थानीय लोग उसका कार्य भली भाँति कर सकते हैं।

हीरक जयंती दिवसके दो मास पहले जब पत्रोंमें यह घोषणा की गई कि श्री चेम्बरलेन इस उठाकर विभिन्न उपनिवेशोंके प्रधानमन्त्रियोंसे मिलेंगे और ब्रिटिश साम्राज्यपर असर डालने वाले कुछ प्रश्नोंपर उनसे बातचीत करेंगे और उन प्रश्नोंमें भारतीय प्रश्न भी शामिल होगा, तब यह उचित समझा गया कि भारतीय हितोंपर चौकसी रखनेके लिए किसी व्यक्तिको लंदन भेजा जाये। इस कार्यके लिए लंदनकी नाज़र ब्रदर्स पेढ़ीके श्री मनसुखलाल हीरालाल नाज़र सर्वसम्मतिसे प्रतिनिधि चुने गये और वे उचित अधिकारों के साथ इंग्लैंड गये। श्री नाजर स्टॉकहोम ओरियंटल कांग्रेसके सदस्य और भूतपूर्व न्यायमूर्ति नानाभाई हरिदासके भतीजे हैं। श्री नाज़र दिसम्बर १८९६ में नेटाल आये थे। उन्होंने प्रदर्शन-संकटके अवसरपर समाजकी बहुमूल्य सेवा की थी। उन्हें इंग्लैंड जाते समय उनकी सेवाओंके लिए कोई पारिश्रमिक नहीं दिया गया। कांग्रेसको उन्हें केवल जेब-खर्च देना पड़ा। लंदनमें उन्हें इस कार्यके लिए अपेक्षासे अधिक समयतक रहना पड़ा। ऐसा उन्होंने उन सज्जनोंकी सलाहपर किया जिनसे हर काममें सलाह लेने तथा जिनकी सलाहपर चलनेकी उनसे विशेष प्रार्थना की गई थी। लंदनमें हमारे साथ सहानुभूति रखनेवालोंसे उन्हें बहुत सहायता मिली। वे हमारी ओरसे पूर्व भारत-संघ (ईस्ट इंडिया असोसिएशन) से कार्य करवाने में सफल हो गये और उस प्रभावशाली संस्थाने एक सशक्त प्रार्थनापत्र लॉर्ड जॉर्ज हैमिल्टनको भेजा है। उसने भारतीय सरकारसे भी सीधे लिखा-पढ़ी की है। श्री नाज़रके पास बहुतसे प्रतिष्ठित अंग्रेजोंके पत्र है जिनमें हमारे उद्देश्यके प्रति सहानुभूति प्रकट की गई है। सर मंचरजी मेरवानजी भावनगरीने हमें लिखे एक पत्रमें उनके कार्यकी बड़ी सराहना की है। इस सम्बन्धमें उपनिवेशमें जन्मे कुछ भारतीयोंके असाधारण आत्मत्यागका उल्लेख किये बिना रहा नहीं जा सकता। उन्होंने एक ही सायंकालीन बैठकमें ३५ पौंडसे भी अधिक चन्दा जमा किया, वह भी बहुत कम वेतन पानेवाले १५ नव-

१. देखिए खण्ड २, पृष्ठ ३५३ ।

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