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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

इन वर्षों में लगभग २०,००० पुस्तिकाएँ, प्रार्थनापत्रोंकी प्रतियाँ तथा पत्र लिखे और वितरित किये गये हैं।

अध्यक्ष
 

श्री अब्दुल करीम हाजी आदम झवेरीने १८९६ में, जब कि उनके भाई स्वदेश लौटे, कांग्रेसका अध्यक्ष-पद सँभाला । तबसे वे इस पदपर अत्यन्त श्रेयके साथ आसीन रहे। कांग्रेसके सभी सदस्य उनसे सन्तुष्ट थे। अगस्त १८९८ में उन्होंने त्यागपत्र दे दिया। उनसे प्रार्थना की गई कि वे अपने निर्णयपर फिरसे विचार करें। किन्तु उन्होंने कहा कि मैं ऐसा नहीं कर सकता। उनके स्थानपर श्री कासिम जीवा अध्यक्ष चुने गये। इस वर्षके मार्चतक वे इस पदपर आसीन रहे। इसके बाद उन्होंने भी त्यागपत्र दे दिया क्योंकि वे उपनिवेशसे जाना चाहते थे। उनके स्थानपर सर्वसम्मितिसे श्री अब्दुल कादिर अध्यक्ष चुन लिये गये और वे समाजके मुखियाके पदको अब भी सँभाले हुए हैं। बड़े दुःखके साथ लिखना पड़ता है कि गत मईमें कलकत्तासे रंगून जाते समय श्री कासिम जीवा डूबकर मर गये। उनके शोक-पीड़ित पिताके प्रति बहुत सहानुभूति प्रकट की गई और कांग्रेसके अध्यक्षको अधिकार दिया गया कि वे उनके पिताको समवेदनाका पत्र भेजें।

अतिथि
 

ग्रैट मेडिकल कॉलेज के स्नातक और स्वर्णपदक विजेता तथा मिडिल टेम्पल, लंदनके बैरिस्टर डा० मेहता डर्बन आये। वे ईडर राज्यमें कुछ समयतक मुख्य चिकित्सा अधिकारी भी रह चुके हैं। समाजने उनका हार्दिक स्वागत किया और कांग्रेसके प्रमुख सदस्योंने उन्हें भोज दिया।

श्री रुस्तमजीने' उदारतापूर्वक कांग्रेसको २२ पौंड १० शिलिंग तथा १ सके मूल्यका फर्श (लिनोलियम), कांग्रेसका नाम खुदी हुई पीतलकी एक कीमती पट्टी, लैम्प, तथा अन्य छोटी-मोटी वस्तुएँ प्रदान की।

विविध
 

श्री अब्दुल करीमके अध्यक्षता-कालके प्रारम्भमें यह नियम बनाया गया कि कांग्रेसकी बैठकोंमें विलम्बसे आनेके लिए जुर्माना किया जाये। बहुतसे सदस्योंने प्रत्येक बार विलम्बसे उपस्थित होनेके लिए ५ शिलिंग जुर्माना दिया। अब इस नियमका पालन नहीं होता। हम भी अपने प्रथम प्रेमसे इतने विमुख हो गये हैं कि कांग्रेसकी बैठकोंमें ९ बजेसे पहले, अर्थात् नियत समयसे डेढ़ घण्टे बादतक, कोरम भी मुश्किलसे पूरा होता है। श्री अब्दुल करीमके विशेष प्रयत्नोंसे यह निर्णय किया गया था कि प्रत्येक व्यापारी आयात किये हुए प्रत्येक पैकेटपर एक फादिंग कांग्रेसको दे। नमकके ४ पैकेटोंका एक पैकेट गिना जाता था। इस प्रकार कांग्रेसने १९५ पौंड प्राप्त किये। किन्तु यह रकम उस रकमका दसवाँ अंश भी नहीं जो कि प्रत्येक व्यापारीके अपनी देय रकम कांग्रेसको दे देने से प्राप्त होती।

यह स्मरण होगा कि दानकी छोटी-छोटी रकमें एकत्र करने के लिए कार्यकर्ताओंको टिकट बाँटे गये थे, ताकि उन्हें रसीद काटनेकी जरूरत न पड़े। यह योजना प्रायः असफल ही रही। केवल श्री मदनजीत स्टजर जिलेसे लगभग १० पौंड एकत्र करके लाये हैं।

१. बम्बईका एक चिकित्साशास्त्र-महाविद्यालय ।

२. देखिए खण्ड १, पृष्ट ३९५।

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