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नेटाल भारतीय कांग्रेसकी दूसरी कार्यवाही

भारतीय अस्पताल डॉ० बूथकी सलाह, सहायता तथा नियन्त्रणके अन्तर्गत डॉ. लिलियन रॉबिन्सनके प्रयत्नोंसे १८९८ में भारतीय अस्पतालकी स्थापना की गई। उसकी सहायताके लिए कांग्रेस-सदस्योंने चन्दा एकत्र किया और दो वर्षमें १६० पौंड या प्रतिमास ६ पौंड १३ शिलिंग ४ पेंस किराया देते रहना पक्का कर दिया। रस्मी तौरपर अस्पतालका उद्घाटन १४ सितम्बर १८९८ को किया गया।

जहाँतक कांग्रेसके अन्दरूनी कामका सम्बन्ध है, आज नजारा मनहूस है। १८९५-९६में जो उत्साह प्रदर्शित किया गया था उसका आधा भी अब सदस्योंमें नहीं रहा। बाहरके सभी जिलोंसे काफी समयसे चन्दा वसूल नहीं हुआ। फिर भी यह मानना कि कांग्रेसके कार्यके प्रति वह प्रत्यक्ष उपेक्षा सदस्यों द्वारा जानबूझकर की गई लापरवाहीके कारण हो रही है, सरासर अन्याय होगा। भारतीय समाजको न केवल भयानक राजनीतिक संकटसे गुजरना पड़ा है, और गुजरना पड़ रहा है बल्कि, दूसरी जातियोंके साथ-साथ, युद्धके कारण भी भारी कष्ट उठाने पड़े हैं। इन दोनोंने मिलकर स्वभावतः उसमें निराशाकी भावना भर दी है। लेकिन आशा है कि यह निराशा अस्थायी होगी और, स्थितिका शान्त होकर पर्यवेक्षण करनेके बाद, पुराना उत्साह दुगने वेगसे पुनरुज्जीवित हो जायेगा। पहले कही बातोंसे स्पष्ट मालूम हो जायेगा कि इस स्थितिमें भी कुछ उज्ज्वल स्थल तो है ही।

कांग्रेसके नियमोंको एक नया रूप देनेकी आवश्यकता है। अब यह जरूरी लगता है कि उनके पालनमें कठोरतासे काम लिया जाये। जिन लोगोंने चन्दा नहीं दिया उन्हें अबतक सदस्य बने रहने दिया गया है और कांग्रेसके कामोंमें बोलनेका अधिकार भी रहा है। लेकिन यह प्रथा बहुत अवांछनीय है।

एशियाइयोंसे सम्बन्धित ट्रान्सवाल कानूनको व्याख्या करनेके लिए परीक्षात्मक मुकदमेकी सुनवाई हो गई है। दक्षिण आफ्रिकाके हमारे भाइयोंने सबसे अच्छे वकीलोंकी सेवाएँ ली और अपनी ओर से कुछ उठा नहीं रखा। किन्तु न्यायाधीशोंने हमारे खिलाफ निर्णय दिया। केवल जस्टिस जॉरिसेनने उनके साथ अपनी असहमति जाहिर की। इस निर्णयका क्या परिणाम होगा, इसके बारेमें भविष्यवाणी करना अभी बहुत जल्दी है । रोडेशियाई भारतीयोंके मामलेको लंदनकी मेसर्स जेरेमिया लॉयन ऐंड कम्पनीने अपने हाथमें लिया है। वे उत्साहके साथ काम कर रहे हैं और आशा करते हैं कि वे सफल हो जायेंगे। उन्होंने डर्बनके व्यापारियोंमें गश्तीपत्र तथा कागजात वितरित किये हैं।

[अंग्रेजीसे]

साबरमती संग्रहालय, एस० एन० २०९।




१. यह उल्लेख बोअर-युद्ध के बारेमें है।

२. देखिए पृष्ठ १ तथा पृष्ठ १४ ।

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