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५३. भारतीय शरणार्थियोंकी सहायता'
डर्बन
 
अक्टूबर १४, १८९९
 

श्रीमन्,

लगभग एक मास पूर्व ट्रान्सवालके ब्रिटिश भारतीयोंकी ओरसे प्रिटोरिया-स्थित माननीय ब्रिटिश एजेंटको भेजे गये एक पत्रकी नकल प्रेषित करते हुए मुझे जोहानिसबर्गसे 'आये भारतीय शरणार्थियोंकी मदद करनेसे नेटाल-सरकारकी इनकारीकी कुछ कटु आलोचना' करनेका क्लेशमय कर्तव्य निभाना पड़ा था। प्रवासी प्रतिबन्धक अधिनियम उन लोगोंके प्रवेशका निषेध करता है, जो पहले नेटालके निवासी नहीं रहे और कोई एक भी यूरोपीय भाषा नहीं जानते । सरकारने उक्त कानूनके अन्तर्गत कुछ नियम मंजूर किये हैं, जिनके अनुसार भार- तीय अर्जदारोंको दस-दस पौंडकी रकम जमा करानेपर अस्थायी अनुमति मिल सकती है। सरकारसे मांग की गई थी कि तनातनीके समयमें रकम जमा कराना स्थगित कर दिया जाये। सरकारने उसे कृपापूर्वक स्थगित कर दिया और ऐसा माननेके कारण मौजूद है कि उसने यह ब्रिटिश एजेंटके दबावमें आकर किया। परन्तु इसी बीच एक और कठिनाई आ खड़ी हुई। जोहानिसबर्गसे आनेवाले अधिकतर शरणार्थी जोहानिसबर्ग-डर्बन रेल-मार्गका लाभ उठाते थे। पिछले कुछ दिनोंसे वह मार्ग कट गया है और शरणार्थियोंके लिए डेलागोआ-बे जाकर वहाँसे डर्बन आना जरूरी हो गया है। यूरोपीय हजारोंकी संख्यामें डेलागोआ-बेसे यहाँ आते रहते हैं, परन्तु चूंकि जहाजी कम्पनियाँ सरकारी हिदायतोंके फल-स्वरूप किन्हीं भी भारतीय यात्रियोंको नहीं लेती है, इसलिए इस मौकेपर भी उन्हें लेने को राजी नहीं है। अतएव सरकारसे राहत देनेका निवेदन किया गया था। उसने जहाजी कम्पनियोंको यह सूचना दे देनेकी कृपा कर दी है कि वे भारतीय शरणार्थियोंको इस शर्तपर डेलागोआ-बेसे ला सकती है कि वे यहाँ उतरनेपर अस्थायी परवाने बनवा लेंगे । नेटाल-सरकारके प्रति यह कर्तव्य माना गया कि जितने जोरोंसे उसकी इनकारीकी बात आपकी नजरोंमें लाई गई थी उतने ही जोरोंसे यह बात भी ला दी जाये। इससे हमें एक बार फिर यह अनुभव हुआ है कि नेटालमें रहते हुए भी हम मिटिश प्रजा ही है, और, कुछ हो, आपत्तिके समयके लिए तो इन जादू-भरे शब्दोंने अपना कोई जादू खोया नहीं है । इस संकट-कालमें नेटालकी सरकारने जो रुख अपनाया है वह इस समय नेटाल और दक्षिण आफ्रिकाके अन्य भागोंमें हमारे सिरपर छाये हुए काले बादलोंमें एक आशाका चिह्न है। आशा है कि जिस भावनासे इस संकट-कालमें नेटाल-सरकारने भारतीयोंके साथ व्यवहार किया है वह इस कालके बीत जानेपर भी स्थिर रहेगी, और सब देशोंके ब्रिटिश प्रजाजनोंको इसी प्रकार शान्तिपूर्वक और परस्पर मेल-मिलापसे यहाँ रहने दिया जायेगा।

१. यह एक परिपत्र है, जो कुछ चुने हुए. व्यक्तियोंको भेजा गया था। उन्हें पहले एक विशेष पत्र भेजा जा चुका था (जो अब उपलब्ध नहीं है)। उसके साथ निटिश एजेंटके नाम गांधीजीका २१ जुलाई, १८९९ का वा पत्र भी संलग्न था, जिसमें यहाँ उल्लिखित "कड आलोचना की गई थी। उपर्युक्त सामान्य परिपत्र सितम्बर १६, १८९९ का था।


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