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भारतीय शरणार्थियों की सहायता

यद्यपि भारतीय सेनाएँ अभीतक डर्बनमें नहीं उतरीं, परन्तु वहाँकी सेनाओंके साथ संलग्न भारतीय, यूरोपीयोंतकसे अपनी प्रच्छन्न प्रशंसा करवा लेने में असफल नहीं रहे।

आपका आज्ञाकारी,
 
ह०) मो० क० गांधी
 

पत्रमें उल्लिखित टिप्पणी यह थी:

'ट्रान्सवालमें बसे हुए लोग उसे यथासम्भव शीघ्र खाली करते जा रहे हैं। गत कुछ दिनोंमें जो लोग वहाँसे गये हैं उनकी संख्या २६,००० से कम नहीं है। एटलोंडर्स कौंसिल (डचेतर यूरोपियोंकी परिषद) के प्रमुख सदस्य, जोहानिसबर्गके अंग्रेजी पत्रोंके सम्पादक भी, वहाँसे जा चुके हैं । जोहानिसबर्गकी बड़ीसे-बड़ी पेढ़ियोंने अपना कारोबार बन्द कर दिया और अपने क्लार्को तथा बही-खातोंको सीमा-पार भेज दिया है। ऐसे समय यदि भारतीय भी ट्रान्सवाल छोड़कर जाना चाहें तो किसीको आश्चर्य नहीं करना चाहिए। स्वभावतः वे डेलागोआ-बे नहीं जा सकते, क्योंकि वहाँकी हवामें मलेरिया हो जाता है। वे केप भी बड़ी संख्यामें नहीं जा सकते, क्योंकि एक तो वह स्थान दूर बहुत है, इसलिए वहाँ जाने में खर्च बहुत बैठता है; दूसरे, वहाँ भारतीय आबादी थोड़ी है, वहाँ उनके रहने के लिए कोई सार्वजनिक स्थान नहीं है, उन्हें अपने मित्रों-नातेदारोंका ही आश्रित होकर रहना पड़ेगा, और वे केवल नेटालमें ही मिल सकते हैं। उन्होंने नेटाल-सरकारसे प्रार्थना की है कि संकट-कालमें प्रवासी-प्रतिबन्धक कानूनपर अमल स्थगित कर दिया जाये। इसका उत्तर इस सप्ताह यह प्राप्त हुआ है कि सरकारको इस कानूनके अन्तर्गत ऐसा करनेका अधिकार नहीं है। पर यह सत्य नहीं हो सकता, क्योंकि एक और पत्रके उत्तरमें सरकारकी तरफसे लिखा गया है: प्रवासी-प्रतिबन्धक कानूनपर अमल करने-न-करनेका निश्चय सरकार मानवताके विचारसे करेगी, और यदि लड़ाई छिड़ गई तो वह अपने अधिकारोंका प्रयोग निष्कारण और कठोरतापूर्वक नहीं करेगी।" जहाँतक इस उत्तरका सम्बन्ध है, यह अच्छा है; परन्तु इससे अभीष्ट सहायता नहीं मिलती। सचमुच लड़ाई छिड़ चुकनेपर अपनी जगहसे हिलना असम्भव हो जायेगा। सरकारसे पुनः प्रार्थना की गई है और देखना है कि वह क्या करती है। मैं यह सब, यह बतलानेके लिए लिख रहा हूँ कि दक्षिण आफ्रिकामें हमारी अवस्था कितनी भयंकर है। यह देखकर हृदय सचमुच फटा जाता है कि ब्रिटिश प्रजाजन खतरेसे बचने के लिए ब्रिटिश भूमिपर ही आश्रय नहीं ले सकते । ब्रिटिश । न्याय और “ब्रिटिश प्रजा" शब्दोंकी जादू-भरी शक्तिमें बेचारे भारतीयोंका विश्वास डिगानेके लिए नेटाल-सरकार अपनी शक्ति-भर जो कर सकती थी वह उसने कर लिया दीखता है। सौभाग्य इतना ही है कि वह सरकार सारे ब्रिटिश साम्राज्यकी प्रतिनिधि नहीं है। यह बात विचित्र तो अवश्य लगती है, परन्तु आज ही एक तार प्रकाशित हुआ है कि नेटाल-सरकारके बार-बार प्रार्थना करनेपर साम्राज्य सरकारने नेटालकी रक्षाके लिए भारतसे १०,००० सैनिक भेजे जानेकी आज्ञा दे दी है उसी नेटालकी रक्षा करने के लिए जो ट्रान्सवालके भारतीयोंको अस्थायी शरण तक देनेसे इनकार कर रहा है। इससे अधिक टिप्पणी करना व्यर्थ है।"

छपी हुई मूल अंग्रेजी प्रतिको फोटो-नकल (एस० एन० ३२९९) से ।


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