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भारतोयोंका सहायता-प्रस्ताव

हम शस्त्र चलाना नहीं जानते । इसमें दोष हमारा नहीं। यह तो हमारा दुर्भाग्य है। परन्तु सम्भव है कि लड़ाईके मैदानमें अन्य भी अनेक ऐसे कर्तव्य हों जिनका महत्त्व शस्त्र-चालनसे कुछ कम न हो। वे कर्तव्य किसी भी प्रकारके क्यों न हों, हम उनका पालन करने के लिए बुलाये जानेमें अपना सम्मान समझेंगे, और सरकार जब कभी हमें बुलायेगी हम तभी आनेके लिए तैयार रहेंगे। यदि अडिग कर्तव्यनिष्ठा और अपनी सम्राज्ञीकी सेवाकी चरम उत्कंठाके कारण, रण- क्षेत्रमें हमारा कुछ भी उपयोग हो सकता हो तो हमें निश्चय है कि हम चूकेंगे नहीं। हमसे और कोई काम न भी निकल सकता हो तो भी हम रण-क्षेत्रके चिकित्सालयों और रसद- विभागमें तो कुछ काम आ ही सकेंगे।

सेवाके इस विनम्र प्रस्तावका उद्देश्य यह सिद्ध करनेका प्रयत्न है कि, सम्राज्ञी दक्षिण आफ्रिका-निवासी अन्य प्रजाओंके समान भारतीय भी रण-भूमिपर सम्राज्ञीके प्रति कर्त्तव्य-पालन करनेको तैयार हैं। इसके द्वारा भारतीय अपनी राजनिष्ठाका आश्वासन देना चाहते हैं।

हम जितने आदमी, अधिकारियोंकी सेवामें पेश कर रहे हैं उनकी संख्या थोड़ी भले ही दिखाई दे, परन्तु उनमें डबंनके खासे-अच्छे अंग्रेजी-शिक्षित भारतीयोंमें से शायद पच्चीस प्रतिशत शामिल है।

भारतीयोंका व्यापारी वर्ग भी राजभक्तिपूर्वक सेवा करनेके लिए आगे बढ़ आया है और अगर ये लोग मैदानमें जाकर कोई सेवा नहीं कर सकते, तो इन्होंने उन स्वयंसेवकोंके आश्रितोंके निर्वाहके लिए धन-दान किया है, जिन्हें अपनी परिस्थितियोंके कारण सहायता लेनेकी आवश्यकता पड़ेगी।

मुझे निश्चय है कि हमारी प्रार्थना मान ली जायेगी। इस कृपाके लिए प्रार्थी लोग सदा कृतज्ञ रहेंगे; और मेरी नम्र सम्मतिमें, जिस शक्तिशाली साम्राज्यपर हम इतना अभिमान करते हैं उसके विभिन्न भागोंको घनिष्ठ बन्धनमें बाँधनेके लिए यह सूत्रका काम देगी।'

आपका आशाकारी सेवक,
 
मो० क० गांधी
 
सूची : उन भारतीय स्वयंसेवकोंके नामोंकी जिन्होंने नेटाल-सरकार

या साम्राज्य-अधिकारियोंको अपनी सेवाएँ अर्पित

करनेका प्रस्ताव किया है

गांधी, मो० क०; पॉल, एच० एल० ; पीटर्स, ए० एच०; खान, आर० के०, धनजी शाह, पी०; कूपर, पी० सी०; गॉडफ्रे, जे० डब्ल्यू; बागवान, आर० ; पीटर, पी०; ढुंडे, एन० पी० ; लॉरेन्स, वी०; गैब्रियल, एल०, हैरी, जी० डी०; गोविन्दू, आर० ; शाद्रक, एस०; रामटहल ; होर्न, जे० डी०; नाजर, एम० एच०; नायडू, पी० के०; सिंह, के०; रिचर्ड्स, एस० एन०; लछमन पाँडे, एम० एस०; रायप्पन, जे०; क्रिस्टोफर, जे०; स्टीवेन्स, सी०; राबर्ट्स, जे० एल०; जैपी, एच० जे०; डन, जे० एस०; गैब्रियल, बी०; रायप्पन, एम०; लाजरस, एफ०; मुडले, आर० ।

[अंग्रेजीसे]

गांधीजीके हस्ताक्षरोंमें पेन्सिलसे लिखे कच्चे मसविदे तथा टाइप की हुई दफ्तरी प्रतिकी फोटो नकलों (एस० एन० ३३०१-२) और नेटाल मक्युरी, ता०२५-१०-१८९९ से।

१. अपने अक्टूबर २३ के उत्तरमें मुख्य उप-सचिवने गांधीजीको लिखा था : “सम्राज्ञीके डवनवासी राजभक्त ब्रिटिश प्रजाजनोंने अपनी जो सेवाएँ अर्पित करनेका प्रस्ताव किया है उससे सरकार बहुत प्रभावित हुई है और अवसर आया तो सरकार प्रसन्नताके साथ उन सेवाओंका लाभ उठायेगी। कृपया सम्बद्ध व्यक्तियोंको उनके प्रस्तावके प्रति सरकारकी सराहना सूचित करने दें।"


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