कृपया उन आत्मत्यागी महिलाओंको आश्वासन दिलाइए कि सहानुभूतिके अभावके कारण कोई भारतीय मदद करनेसे इनकार नहीं कर सकता था। हम सबको एक ही भावना प्रचालित कर रही है- अर्थात्, साम्राज्यनिष्ठाकी भावना। और हम सब जानते हैं कि स्वयं- सेवकोंने, और वे जिन्हें अपने पीछे छोड़ गये हैं उन्होंने, क्या आत्मत्याग किया है। कुछ स्वार्थी लोगोंके अस्तित्वसे. - अगर ऐसा अस्तित्व हो तो -मेरे नम्र मतानुसार, वे जिस वर्गके हों उस पूरे वर्गके बारेमें हमें अनुदारतासे नहीं सोचना चाहिए। और, आखिर, कुली भी तो उतने ही भारतीय हैं, जितने कि अरब ।
दफ्तरी अंग्रेजी प्रतिकी फोटो-नकल (एस० एन० ३३२३) से।
गांधीजीने अपने हायते लिखा हुआ नीचेका पर्चा लोगोंमें बुमाया था और चन्देकी माँग की थी।
हम, नीचे हस्ताक्षर करनेवाले, डर्बन महिला देशभक्त संघ (डर्बन विमेन्स पैट्रिऑटिक लीग) की निधिमें इसके द्वारा निम्नलिखित चन्दा देते हैं :
ई० अबूबकर अमद ऐंड ब्रदर्स
एस० पी० मुहम्मद ऐंड कम्पनी
पारसी रुस्तमजी
मो० क० गांधी
[ यहाँ बयालीस अन्य हस्ताक्षर और हस्ताक्षरकर्ताओंके चन्देकी रकम दी गई है । ]
चन्देकी मूल अंग्रेजी सूचीकी फोटो-नकल (एस० एन० ३३२६) से।
दक्षिण आफ्रिकाके ब्रिटिश भारतीयोंकी स्थितिपर अबतक मैंने जो-कुछ लिखा है उसमें से कुछ भी उतना ध्यान देने योग्य नहीं हैं, जितना कि इस पत्रमें मैं जो-कुछ लिखनेवाला हूँ उसपर दिया जाना चाहिए। नेटाल विधानमंडलने १८९७ में अशोभनीय हड़बड़ीमें और ऐसे समयपर, जब कि डर्बनकी भीड़का क्रोध शान्त भी नहीं हुआ था, चार अधिनियम पास किये थे। उनमें से एक वह था, जो विक्रेता परवाना अधिनियम (डीलर्स लाइसेंसेज़ ऐक्ट) के नामसे प्रसिद्ध है। इस अधिनियमसे, इसके अन्तर्गत नियुक्त परवाना-अधिकारीको पूरा अधिकार मिल
१.देखिए पादटिप्पणी, पृष्ठ ६३ ।
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