पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 3.pdf/१६४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१३२
सम्पूर्ण गांधी वाङमय

लिए एक यूरोपीय हिसाबनवीसको नियुक्त कर लिया है और अपनी इज्जतदारी और ईमानदारीके बारेमें ऐसे तीन सुप्रसिद्ध यूरोपीय व्यापारियोंके प्रमाणपत्र भी पेश किये, जिनके साथ उसका कारोबार चलता था। परन्तु परवाना-अधिकारीने परवाना देनेसे इनकार कर दिया। मामलेकी अपील डर्बन नगर-परिषदके सामने की गई और अर्जदारके न्यायवादीने परवाना-अधिकारीसे इनकारीके कारण बतानेके लिए कहा। परवाना-अधिकारीने कारण बतानेसे इनकार कर दिया। नगरपरिषदने परवाना-अधिकारीका फैसला बहाल रखा और वह उसे कारण बतानेके लिए बाध्य करनेको भी राजी नहीं हुई। जब कि मुकदमेकी सुनवाई हो ही रही थी, अदालत (अर्थात् -नगरपरिषद), परवाना-अधिकारी (जो प्रतिवादी था) और नगर-सॉलिसिटर सलाह-मशविरेके लिए एक निजी कमरेमें चले गये, और लौटने पर, यह भूलकर कि वकीलकी दलीलें अभी सुनी जानेको है, परिषदने अपना यह फैसला सुना दिया कि परवाना-अधिकारीका निर्णय बहाल रखा जाता है। अर्जदारके वकीलने इस अनियमितताकी ओर ध्यान खींचा और अदालतके सामने, जिसने पहलेसे ही अपना विचार बाँध लिया था, दलीलें करनेका स्वाँग होने दिया गया। नतीजा जरा भी बेहतर नहीं हुआ।

आग्रही अर्जदार अपने मामलेको सर्वोच्च न्यायालयके सामने ले गया। सर्वोच्च न्यायालयने, अधिनियमके अन्तर्गत हस्तक्षेप करनेका अधिकार न होनेके कारण, परिषदके फैसले में हस्तक्षेप करनेसे तो इनकार किया, परन्तु सारी कार्रवाईको रद करके मामलेको इस निर्देशके साथ फिरसे सुनवाई करनेके लिए वापस भेज दिया कि अर्जदारको इनकारीके कारण जाननेका अधिकार है। स्थानापन्न मुख्य न्यायाधीशने कहा :

मालूम होता है ... कि इस मामले में परिषदकी कार्रवाई अत्याचारपूर्ण है। ... मेरा खयाल है कि दोनों मांगें [लेखाको नकल देने और कारण बतानेकी] नामंजूर करनेकी कार्रवाई अन्यायपूर्ण और अनुचित है। प्रथम उपन्यायाधीश मेसनने ----

माना कि जिस मामलेकी अपील की गई है, उसकी कार्रवाई नगर-परिषदके लिए लज्जाजनक है। और उन्होंने इस कड़ी भाषाका प्रयोग करने में कोई संकोच नहीं किया। इस परिस्थितिमें उनका खयाल था, यह कहना कि नगर-परिषदके सामने कोई अपील हुई थी, शब्दोंका दुरुपयोग करना है।

इस तरह, नगर-परिषदने फिरसे अपीलकी सुनवाई की और परवाना-अधिकारीसे इनकारीके कारण दिलावाये, जो येथे: "डर्बनमें अर्जदारका किसी भी प्रकारका कोई हक नहीं है, क्योंकि वह जिस किस्मका व्यापार करता है, उसकी नगरमें काफी व्यवस्था है।" निर्णय वही रहा जो पहले मौकेपर दिया गया था, और वह अभागा आदमी बिना परवानेके पड़ा है। मुझे मालूम हुआ है कि अब वह गरीब हो गया है, क्योंकि उसे अपनी पूंजीपर गुजर करनी पड़ी है। साफ शब्दोंमें, परवाना अधिकारीका दिया हुआ कारण बिलकुल झूठा था, क्योंकि उसके बाद बहुतसे यूरोपीयोंको परवाने दिये गये हैं, और अर्जदारने एक ऐसी जगहके लिए अर्जी दी थी, जिसे एक भारतीय दूकानदार छोड़ कर डर्बनसे चला गया था। एक दूसरे भारतीयने भी परवानेके लिए अर्जी दी थी। उसके बारेमें यह साबित हो चुका था कि वह पन्द्रह वर्षोंसे उपनिवेशमें रह रहा है, उसका रहन-सहन शरीफाना है, उपनिवेशके कई हिस्सोंमें उसका भारी व्यापार चलता है और अनेक यूरोपीय पेढ़ियोंमें उसकी अच्छी साख है। उसकी अर्जीका भी वही नतीजा रहा - इनकारी। सच्चा कारण पहली बार उसकी अपीलकी सुनवाईमें जबरदस्ती निकलवाया गया। परवाना अधिकारीने कहा:

Gandhi Heritage Portal