पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 3.pdf/१६५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१३३
नेटालके भारतीय व्यापारी

जहाँतक मैं समझता हूँ, सन् १८९७ के कानून १८ को मंजूर करनेमें सरकारको दृष्टि यह रही है कि कुछ वर्गोके लोगोंके नाम, जिन्हें आम तौरपर अवांछनीय माना जाता है, परवाने देनेपर कुछ रोक रखी जाये। और चूंकि मुझे विश्वास है कि मैं भूल नहीं कर रहा हूँ कि प्रस्तुत अर्जदार उन्हीं वर्गोमें गिना जायेगा, और चूंकि डर्बनमें व्यापार करनेका परवाना उसके पास कभी नहीं रहा है, इसलिए परवाना देनेसे इनकार करना मैंने अपना कर्तव्य समझा है।

एक परिषद-सदस्यने परवाना-अधिकारीके निर्णयका समर्थन करते हुए कहा :

कारण यह नहीं है कि अर्जदार या मकान अनुपयुक्त है, बल्कि यह है कि अर्जदार एक भारतीय है। व्यक्तिगत रूपमें मैं समझता हूँ कि उसे परवाना देनेसे इनकार करना अन्याय है। परिषदके सामने परवाना मांगनेके लिए हाजिर होनेके खयालसे अर्जदार बहुत ही उपयुक्त व्यक्ति है।

एक अन्य परिषद सदस्य कार्रवाइयोंमें भाग लेनेको तैयार नहीं थे, क्योंकि :

हमें (परिषद-सदस्योंको) जो गन्दा काम करनेको कहा गया है उससे मैं असह- मत हूँ। अगर नागरिक चाहते हैं कि ये सब परवाने देना बन्द कर दिया जाये तो इस कामको करनेका एक साफ रास्ता मौजूद है : वह है कि, विधानसभासे भार- तीय समाजको परवाने देनेके खिलाफ एक कानून पास करवा लिया जाये। परन्तु, अपील सुननेवाली अदालतका काम करते हुए, जबतक विरोधमें मजबूत कारण न हों, परवाने मंजूर किये ही जाने चाहिए।

अलबत्ता ऐसा हुआ नहीं, क्योंकि परिषदमें भारतीय-विरोधी लोगोंकी बहुत प्रबलता थी। न्यूकैसिल नगर-परिषदने १८९८ में एकबारगी ही सारेके सारे भारतीय परवाने छीन लिये। इसके बाद ही मामला सर्वोच्च न्यायालयके सामने और वहाँसे सम्राज्ञीकी न्याय-परिषदमें ले जाया गया था, जिन्होंने फैसला दिया कि अधिनियमके अनुसार नगर परिषदके निर्णयकी कोई अपील नहीं हो सकती। इस वर्ष उक्त नगर-परिषदने अधिकतर भारतीय परवाने दे दिये हैं, और उसकी प्रशंसामें इतना तो कहना ही होगा कि, जब प्रश्न सम्राज्ञीकी न्याय-परिषदके विचाराधीन था उस समय उसने भारतीयोंको अपना कारोबार करते रहने दिया। डंडी स्थानिक निकाय (लोकल बोर्ड) के अध्यक्षने इसी तरहकी एक अपीलका निबटारा करते हुए कहा कि वह अर्जदारको "कुत्तेके बराबर मौका" भी देना नहीं चाहता। इसके अलावा उसी निकायने गत वर्ष एक प्रस्ताव पास करके परवाना-अधिकारीको आदेश दिया कि वह जितने हो सके उतने भारतीय परवानोंको रद कर दे। यह नेटालके सार्वजनिक अखबारोंके लिए भी असह्य हो उठा, और एक इशारा किया गया कि निकाय बहुत ज्यादा आगे बढ़ रहा है। नतीजा एक हदतक सन्तोषजनक रहा और इस वर्ष परवाने दे दिये गये हैं, हालाँकि यह शर्त लगा दी गई है कि अगले वर्ष उन्हीं मकानोंमें कारोबार करनेके परवाने नये नहीं किये जायेंगे। एक अन्य मामलेमें, दो भारतीय व्यापारियोंने अपना कारोबार भारतीयोंको बेच दिया और परवानेको खरीदारोंके नामपर बदल देनेकी मांग की, जो नामंजूर कर दी गई। अपील करनेपर स्थानिक निकायने वह निर्णय बहाल रखा। उप- निवेशके कुछ हिस्सोंमें गत वर्ष दिये गये परवाने इस वर्ष रोक लिये गये हैं। संक्षेपमें, यह है उक्त अधिनियमका परिणाम । उपनिवेश-मन्त्रालय और नेटाल-सरकारके बीच हुए पत्र-व्यवहारके फलस्वरूप नेटाल-सरकारने विभिन्न स्थानिक संस्थाओंसे कहा है कि यदि वे अपने अधिकारोंका

Gandhi Heritage Portal