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पत्र: विलियम पामरको

बुराईको दूर करा देना चाहिए- इसके पहले कि, बहुत देर हो जाये और नेटालके भारतीय सिर्फ दमनके कारण भारतमें अपनी आवाजको सुनवाई कराने में भी समर्थ न रहें।

[अंग्रेजीसे]

टाइम्स ऑफ इंडिया (साप्ताहिक संस्करण), ६-१-१९०० ।

६०. पत्र: विलियम पामरको

१४, मक्युरी लेन
 
डर्बन
 
नवम्बर २४, १८९९
 

सेवामें

श्री विलियम पामर

कोशाध्यक्ष

डर्बन विमन्स पैट्रिऑटिक लीग

डर्बन

प्रियवर,

डर्बन महिला देशभक्त संघ (डर्बन विमन्स पैट्रिऑटिक लीग) के कोशमें दान देनेवाले भारतीयोंने हमसे इस पत्रके साथ संलग्न चेकें आपको भेज देनेका अनुरोध किया है। ये चेकें डर्बनके भारतीय व्यापारियों और दूकानदारोंने इस कोशके लिए जो विशेष चन्दा दिया है उसके हिसाबकी हैं।

हम अनुभव करते हैं कि हमने इस कोशमें पर्याप्त चन्दा नहीं दिया, परन्तु इस समय कई कारणोंसे हमारा आर्थिक सामर्थ्य पंगु हो गया है। जिन भारतीयोंने बोअर युद्धके स्वयंसेवकोंमें नाम लिखा लिया है उनको यदि सेवाके लिए बुला लिया गया तो उनके परिवारोंके निर्वाहका व्यय हमें उठाना पड़ेगा। उसके लिए हमने चन्दा इकट्ठा किया है। इस समय ट्रान्सवालसे और शत्रु द्वारा अधिकृत नेटालके अन्दरूनी जिलोंसे हजारों भारतीय शरणार्थी यहाँ आ गये हैं। उनको खिलाने-पिलाने और बसानेके व्ययका हमपर बहुत भारी बोझ पड़ रहा है। तिसपर, इस समय हमारा कारोबार प्रायः खत्म हो गया है। तथापि, हम जानते हैं कि जिन स्वयंसेवकोंने अपना जीवन इस उपनिवेश और साम्राज्यकी सेवाके लिए अर्पित कर दिया है और जिनको वे अपने पीछे यहाँ छोड़ गये हैं उन्होंने आत्मत्यागका एक ऐसा काम किया है, जिसकी तुलनामें हमने जो कुछ भी किया है, वह सब तुच्छ सिद्ध होता है। इसलिए, हम जो छोटी-सी रकम इस पत्रके साथ भेज सके हैं वह हम सबके हेतु लड़नेवाले वीरोंके लिए हमारी हार्दिक सहानुभूति और सराहनाकी निशानी-मात्र है।

आपफा, आदि,
 

दफ्तरी अंग्रेजी प्रतिकी फोटो-नकल (एस० एन० ३३२५-६) व इंडिया, २६-१-९९ से ।

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