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नेटालमें भारतीय आहत-सहायक दल

रॉबर्ट्स, जो सेनाओंके प्रमुख थे और सर जॉर्ज व्हाइट, जिन्होंने इतनी वीरताके साथ लेडी- स्मिथकी घेराबन्दीका मुकाबला किया, काफी लम्बे समयतक भारतमें प्रधान सेनापति रहे हैं। अगर भारतीय इन दोनों सेनापतियोंके पराक्रमकी सफलतापर अपनी भावनाओंको प्रकाशित न करते तो वे अपने प्रति ही अपने कर्तव्यसे च्युत हो जाते। मुझे आशा है, आप मेरे इस कथनपर विश्वास करेंगे कि घटना-चक्रको सही-सही और दिलचस्पीके साथ समझने में अंग्रेजी भाषाके ज्ञानके अभावसे भारतीयोंको कोई रुकावट नहीं हुई। आज भारतीय ज्यादासे-ज्यादा गौरवके साथ शेखी मार रहे हैं कि वे ब्रिटिश प्रजा है। अगर न होते, तो दक्षिण आफ्रिकामें वे अपने पैर न जमा सकते।

[अंग्रेजीसे]

नेटाल मर्युरी, १५-३-१९००

नेटाल ऐडवर्टाइज़र, १५-३-१९००

७७. नेटालमें भारतीय आहत-सहायक दल'
[डर्बन
 
मार्च १४, १९०० के बाद]
 

बताया गया है कि सर विलियम ऑलफर्टसने कहा है :

दक्षिण आफ्रिकामें लड़नेवाली हमारी सेनाओंकी वीरताके बारे में जो आनन्दोत्साह प्रकट किया जा रहा है उसमें मैं पूरी तरह शामिल हूँ, किन्तु मेरा खयाल है कि डोली- वाहकोंकी निष्ठाकी ओर काफी ध्यान नहीं दिया गया। वे अपना दयाका काम रणभूमि- पर कर रहे हैं, गोलियोंको घोरतम झड़ियोंके नीचे वे घायलोंको खोजते घूमते हैं और यद्यपि उनके पास रक्षाका कोई साधन नहीं है, फिर भी किसी चीजसे डरते नहीं। हमारे ये भारतीय बन्धु-प्रजाजन नेटालमें वह काम कर रहे हैं जिसके लिए सैनिकोंके साहससे भी ज्यादा साहसकी जरूरत है।

पिछला लेख भेजने के बाद अबतक मैं मोर्चेपर दो बार हो आया हूँ; और यद्यपि जनरल ऑलफने डोली-वाहकोंके बारेमें जो कुछ कहा है, वह सारेके-सारे भारतीय आहत- सहायक दलके सम्बन्धमें नहीं कहा जा सकता, फिर भी मुझे जरा भी सन्देह नहीं कि दलने एक ऐसा कार्य किया है जो कि बिलकुल जरूरी था। और, वह कार्य संसारके किसी भी आहत-सहायक दलके लिए श्रेयास्पद होगा। मैंने अपने २७ अक्टूबरके पत्रमें डर्बनके अंग्रेजी बोलने वाले भारतीयोंके उस प्रस्तावका उल्लेख किया था जिसमें उन्होंने बिना वेतन और बिना किसी शर्तके रणभूमिमें सेवा करनेकी इच्छा प्रकट की थी। तबसे घटनाएँ ऐसी घटी हैं, जिनके फलस्वरूप प्रस्ताव मंजूर कर लिया गया है। इसका अनुमान पहले ही लगा लिया गया था कि कोलेजोका युद्ध कम प्राणोंका बलिदान नहीं लेगा, और ज्यादा घायल सैनिकोंको सलामतीके साथ ले जाने का काम एक भयानक समस्या उपस्थित करेगा; क्योंकि यूरोपीय डोली-वाहकोंकी सीमित संख्या उतनी मेहनत बरदाश्त नहीं कर सकेगी, जितनी जरूरी होगी। इसलिए जनरल बुलरने नेटाल सरकारको लिखा कि वह एक भारतीय आहत-सहायक दल तैयार करे, जिससे

१. देखिए पादटिप्पणी, पृष्ठ ६३ ।

२. देखिए "नेटालके भारतीय व्यापारी," नवम्बर १८, १८९९ ।


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