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सम्पूर्ण गांधी वाङमय

गोलीबारकी सीमाके अन्दर काम नहीं लिया जायेगा। सरकारने विभिन्न खेतों और बागोंके मालिकों (जिनके नियन्त्रणमें बहुतसे भारतीय मजदूर हैं) तथा भारतीय समाजके नेताओंको लिखा, और प्रतिक्रिया तुरन्त हुई। तीन दिनसे भी कम समयमें १,००० से भी अधिक भारतीयोंका एक डोली- वाहक दल तैयार कर लिया गया। इन डोली-वाहकोंका पुरस्कार २० शिलिंग प्रति सप्ताह तय किया गया, जबकि यूरोपीय डोली-वाहकोंको ३५ शिलिंग प्रति सप्ताह मिलता था। यह उल्ले- खनीय है कि नायकोंके शक्तिशाली दलने अत्यन्त शुभ परिस्थितियोंमें अपना कार्य प्रारम्भ किया। स्व० श्री एस्कम्बने, जो किसी समय नेटालके प्रधानमन्त्री थे तथा जिन्होंने हीरक जयंतीके अवसरपर हुए उपनिवेशीय प्रधानमन्त्रियोंके सम्मेलनमें उपनिवेशका प्रतिनिधित्व किया था, अपने घरमें स्वयंसेवकोंका स्वागत किया। इस अवसरपर डर्बनके मेयर, जोहानिसबर्ग लीडरके श्री पेकमैन तथा अन्य गण्य-मान्य स्त्री-पुरुष निमन्त्रित किये गये थे। श्री एस्कम्बने अपने भाषणमें - जो कि उनका अन्तिम सार्वजनिक भाषण था -- उनके प्रति प्रोत्साहक शब्द कहे और खुले हृदयसे अपने उद्गार व्यक्त किये कि भारतीय समाज अपने ढंगसे वफादारीके साथ उपनिवेश तथा साम्राज्यकी जो सेवा कर रहा है, उसे नेटाल भुला नहीं सकता। मेयरने भी अपने भाषणमें इसी आशयकी बातें कहीं। बादमें, उसी सन्ध्याको, डर्बनके श्री रुस्तमजीने मोर्चेपर जानेवाले नायकोंके सम्मानमें एक भोज दिया। इस अवसरपर विभिन्न वर्गोका प्रतिनिधित्व करनेवाले सभी प्रमुख भारतीयोंने एक ही मेजपर भोजन किया। यह आहत-सहायक दल १५ दिसम्बरको ३.३० बजे शामको खियेवेली पहुँचा। जैसे ही ये लोग वहाँ गाड़ीसे उतरे, डोली-वाहकोंको रेडक्रासके चिह्न दे दिये गये और उन्हें हुक्म मिला कि वे मोर्चेके अस्पतालको कूच करें। अस्पताल वहाँसे ६ मीलसे भी अधिक दूर था। जिन अवस्थाओंमें इस दलने काम किया वे सम्भवतः साधारणसे कुछ अधिक खतरेकी थीं। जहाँ वे जाते, उन्हें आवश्यकताके अनुसार महीने या पखवारे भरकी भोजन-सामग्री अपने साथ ले जानी पड़ती। इसमें जलानेकी लकड़ी भी शामिल थी। इसके लिए पहले-पहल सामान-गाड़ी या पानीकी गाड़ी कुछ भी उपलब्ध नहीं थी। खियेवेली जिला अत्यन्त सूखा प्रदेश है और वहाँ आसानीसे पानी नहीं मिलता। नेटाल भरमें सड़कें ऊबड़-खाबड़ तथा कम-ज्यादा पहाड़ी है। मोर्चेके अस्पतालमें पहुँचने पर हमने कोलेंज़ोके युद्धके बारे में सुना। हमने देखा कि बीमारोंको ले जाने वाली गाड़ियाँ तथा यूरोपीय डोली-वाहक मोर्चेसे घायलोंको उठाकर मोर्चेके अस्पतालमें ला रहे हैं। इस सबसे दलके स्वयंसेवकों तथा नायकोंको स्थितिकी पूरी जानकारी हो गई। इससे पहले कि तम्बू डाले जा सकें (मेरा मतलब है, नायकोंके लिए -- डोली-वाहकोंको तो जैसे भी बने, खुलेमें सोना पड़ता था, और कुछके पास तो कम्बल भी नहीं थे), या लोग कुछ खा-पी सके, चिकित्सा अधिकारीने चाहा कि ५० घायलोंको खियेवेली स्टेशन पहुँचा दिया जाये। ११ बजे राततक सभी घायल, जिन्हें कि चिकित्सा अधिकारी तैयार कर सका, आदेशानुसार खियेवेली पहुँचा दिये गये। उसके बाद ही दलको भोजन मिल सका। इसके बाद दलके अधीक्षकने चिकित्सा अधिकारीके पास जाकर और डोलियाँ ले जानेका प्रस्ताव रखा, किन्तु उसे धन्यवाद देकर कहा गया कि सुबह ६ बजे आदमियोंको तैयार रखा जाये । उस समयसे लेकर दोपहरतक आदमियोंने १०० डोलियाँ ढोई। अपने कामको लौटते समय उन्हें आदेश मिला कि वे तम्बू उठाकर तुरन्त खियेवेली स्टेशन चले जायें और वहाँसे एस्टकोर्ट की गाड़ी पकड़ें । बेशक, यह पीछे हटना था। देखकर आश्चर्य होता था कि किस प्रकार घड़ीकी नियमितताके साथ १५,००० से भी अधिक व्यक्तियोंने अपना शिविर उठाकर भारी तोपों तथा परिवहनके साथ प्रस्थान किया। उनके पीछे टूटे कनस्तरों तथा खाली बक्सोंके अलावा और कोई चीजें नहीं छूटी। कूचके लिए वह दिन बेहद गर्म था । नेटालका यह भाग पेड़ और पानी दोनोंसे खाली है। इस प्रकारकी

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