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नेटालमें भारतीय आहत-सहायफ दल

कठिन परिस्थितियोंमें दलने दोपहरको कूच शुरू किया। ३ बजेके लगभग स्टेशन पहुँचनेपर स्टेशन मास्टरने अधीक्षकको सूचना दी कि वह निश्चयपूर्वक नहीं बता सकता कि कब वाहन उनको मुहय्या कर सकेगा। वाहनसे मेरा मतलब खुले ठेलोंसे है, जिनमें आदमी ढूंस-ठूस कर भरे जानेको थे। यूरोपीय आहत-सहायक दलके आदमियों तथा भारतीयोंको ८ बजे शामतक स्टेशनके अहातेके आसपास रुकना पड़ा। बादमें, यूरोपीयोंको एस्टकोर्ट के लिए गाड़ीमें बिठा दिया गया और भारतीयोंसे कहा गया कि वे रातके लिए खुले मैदानमें चले जायें और उसका जितना उत्तम उपयोग हो सके, करें। थके-माँदे, भूखे और प्यासे (स्टेशनपर अस्पतालके बीमारों और स्टेशनके अमलेको छोड़कर और किसीके लिए भी पानी उपलब्ध नहीं था) आदमियोंको अपनी भूख-प्यास बुझाने तथा थोड़ी देर आराम करने के लिए साधन ढूंढ़ने थे। स्टेशनसे करीब आधा मील दूर एक तालाबसे वे गन्दा पानी ले आये और आधी रात होते-होते उन्होंने चावल पकाये। इस तरह जो-कुछ मिला उसे ही उन परिस्थितियोंमें सर्वोत्तम भोजन समझकर खानेके बाद वे सोना चाहते थे। परन्तु रातको जनरल बुलरकी लगभग सारी ही घुड़सवार सेना वहाँसे गुजरी, इसलिए उन लोगोंको बहुत कम आराम मिला। दूसरे दिन वे ठसाठस खुले डिब्बोंमें लाद दिये गये और ५ घंटेतक प्रतीक्षा करने के बाद गाड़ी एस्टकोर्ट के लिए रवाना हुई। वहाँ दलको भयानक आँधी-पानीमें, धूप तथा हवाकी मार झेलते हुए, बिना किसी छायाके, दो दिनतक पड़े रहना पड़ा। इसके बाद आदेश मिला कि इस दलको अस्थायी तौरपर भंग कर दिया जाये। दलने जो सेवाएँ की थीं उन्हें जनरल वुल्फ-मरेने अधिकृत रूपसे मान्यता प्रदान की थी।

जनवरी ७ को दलका पुनर्गठन हुआ और उसने एस्टकोर्टकी ओर कूच किया। इस बार उसने कुछ अच्छी परिस्थितियोंमें प्रस्थान किया था, क्योंकि इस दलके नौ सौसे ऊपर डोली-वाहकोंको भी तम्बू दिये गये। किन्तु उनका असली काम पूरा पखवारा बीत जानेके बाद शुरू हुआ। इस बीच स्वयंसेवक और नायक अथक परिश्रमी डॉ० बूथकी देखरेख में काम करनेका अभ्यास करते रहे । डॉ० बूथ भी नायकोंकी जैसी शर्तोंपर (अर्थात् बिना किसी पारिश्रमिकके) स्वेच्छया चिकित्सा- अधिकारीकी हैसियतसे इस दलके साथ आये थे। अभ्यासमें डोली-वाहकोंको सिखाया जाता था कि घायलोंको किस प्रकार उठाना तथा डोलीमें रखना और ले जाना चाहिए। उन्हें अत्यन्त ऊबड़- खाबड़ भूमिपर दूर-दूरतक ले जाया जाता था। यह प्रशिक्षण अत्यन्त लाभदायक सिद्ध हुआ। इसमें बहुत सख्त भी कुछ नहीं था। चूंकि यह दल न्यूनाधिक रूपमें सैनिक अनुशासनके लिए इस प्रकार तैयार कर लिया गया था, इसलिए जब उसे २ बजे रातको आदेश मिला कि वह ६ बजे फ्रीयर जाने के लिए गाड़ी पकड़े और ३ घंटोंके अन्दर डेरा उठाये, सामान दो डिब्बोंमें लाद दे तथा स्टेशनकी ओर कूच कर दे, तब उसे कोई कठिनाई अनुभव नहीं हुई। स्पीयरमैन छावनीके सदर मुकामपर पहुँचने से पहले फीयरसे २५ मीलका सफर पैदल तय करना था। इस सफरके अनुभवों और कठिनाइयोंके बारेमें मैं नेटाल विटनेसके विशेष संवाददाताके शब्द ही उद्धृत करूँगा :

तीसरे पहरके प्रारम्भमें क्षितिजपर घने बादल घिरने लगे थे और ३.३० बजे ऐसा लगा कि आँधी अभी आई। इसी बीच गाड़ियाँ आ गई और उनमें सामान लाद दिया गया। प्रस्थान शुभ नहीं हुआ। स्टेशन तथा हमारे शिविरके बीचके पहले ही उतारमें हमारी आगेकी गाड़ी गहरी धंस गई। उसे वहाँसे निकालनेमें पूरा आधा घंटा खर्च हुआ। उसी समय भयानक आँधी आ गई। लगता था कि वह हमारी ओर आते हुए तूफानको हमसे दूर दक्षिणको ओर उड़ा रही है। ... पौन घंटेसे भी कम समयमें हवाने अचानक अपना रुख बदला और वह भयानक वेगसे तूफानको, और साथ-साथ ओलोंको, वापस ले आई। .. कुछ देरके बाद ओले तो जरूर बन्द हो गये, लेकिन

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