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नेटालमें भारतीय आहत-सहायक दल

भारतीय व्यापारियोंने घायलोंके लिए बड़ी मात्रामें सिगरेट, चुरुट, पाइप तथा तम्बाकू- सभी चीजें नायकोंको भेजी थीं और ये सब घायलोंमें खुले हाथों बाँटी गई थीं। और, बेशक, इन चीजोंका खूब स्वागत किया गया, विशेषकर इसलिए कि शिविरमें या शिविरके आसपास सिग- रेट आदि कोई भी चीज नहीं मिल सकती थी। नायक और डोली-वाहक घायलोंको उनके लक्ष्यपर भली भाँति सुरक्षित पहुँचा देनेसे ही सन्तुष्ट नहीं थे, बल्कि लम्बे मार्गपर जहाँ भी वे ठहरते, खुद अपने आरामकी परवाह न करके भी, घायलोंकी आवश्यकताओंकी पूर्तिके लिए कुछ भी उठा नहीं रखते थे। उदाहरणके लिए, वे उन्हें चाय पीने और फल खाने में मदद देते --प्रायः अपने ही पैसों या अपनी ही राशनसे । भारतीय समाजने युद्धमें केवल यही भाग अदा नहीं किया। सभी नायक, जो बिना वेतनके गये थे, अपनी अनुपस्थितिमें अपने आश्रितोंका निर्वाह करने में समर्थ नहीं थे। इसलिए भारतीय व्यापारियोंने एक निधि खोली जिससे उन नायकोंके परिवारोंको सहायता दी गई, जिन्हें इसकी आवश्यकता थी। और स्वयंसेवकोंको उपकरणोंसे लैस करने में भी उन्होंने कम खर्च नहीं किया। देशभक्तिकी लहरके साथ अधिक प्रभावपूर्ण ढंगसे ऐक्य स्थापित करने तथा यह दिखाने के लिए कि आम खतरेके समय वे अपने मतभेदोंको भुला देनेमें समर्थ है, उन्होंने एक स्थानिक संगठन डर्बन महिला देशभक्त संघ (डर्बन विमेन्स पैट्रिऑटिक लीग) को, जो कि घायल सैनिकों तथा स्वयंसेवकोंको चिकित्सा सुविधाएँ देनेके लिए बनाया गया था, ६५ पौंडकी एक भारी राशि चन्देमें दी। इन स्वयंसेवकोंमें से कुछ तो अत्यन्त उग्र भारतीय-विरोधी उपनिवेशी हैं। कुछ भारतीय महिलाएं भी आगे आई। उन्होंने भी इसी उद्देश्यसे भारतीय व्यापारियों द्वारा दिये गये कपड़े के तकियेके गिलाफ तथा रूमाल तैयार किये। नेटाल मयुरीने चन्देके बारेमें इस प्रकार लिखा है :

स्त्रियोंकी देशभक्त-निधिमें धनके इस दानसे जो, विशेष रूपसे, रणभूमिपर बीमार और घायल स्वयंसेवकोंकी सेवाके लिए दिया गया है, भारतीयोंकी भावनाओंकी बहुत ही स्वागतके योग्य और मुखर अभिव्यक्ति हुई है। उनके विचारसे भारतीय शरणार्थियोंके विशाल समूहको ही सहायता दे देना-- -जैसा कि वे खुले हाथों कर रहे हैं -- काफी नहीं है। बल्कि उन्हें, हमारा खयाल है, सम्राज्ञीके प्रति और जिस देशमें आकर वे रह रहे हैं उसके प्रति अपनी भक्तिके प्रतीकके रूपमें यह अतिरिक्त दान देना जरूरी मालूम हुआ है। हमारी आबादीका यह अंश जिसकी ओरसे अक्सर बहुत कम बोला जाता है जिस सच्ची भावनासे उत्प्राणित है, उसे ऐसे राजभक्ति-प्रदर्शनसे ज्यादा भली भांति और कोई भी बात व्यक्त नहीं कर सकती।

भारतीयोंने हजारों भारतीय शरणार्थियोंके निर्वाहका भार पूरी तरह अपने कन्धोंपर ले लिया है। ये शरणार्थी न केवल ट्रान्सवालके हैं बल्कि नेटालके उन ऊपरी जिलोंके भी हैं जो कि अस्थायी तौरसे दुश्मनके हाथमें है। इस तथ्यने उपनिवेशके मस्तिष्कको इस तरह प्रभावित किया है कि डर्बनके मेयरने उसे निम्न शब्दोंमें सार्वजनिक रूपसे स्वीकार किया है :

हम सब भली भाँति जानते हैं कि भारतीय राष्ट्र के लोगोंमें से अनेकको मजबूरन अपने स्थान छोड़कर शरणाथियोंके रूपमें यहाँ आना पड़ा है। वे बड़ी संख्यामें आये हैं, और भारतीयोंने स्वयं ही उनका खर्च उठाया है। उसके लिए मैं उन्हें हृदयसे धन्यवाद देता हूँ।

इस अवसरपर इसका अपना एक विशेष महत्त्व है। लंदनकी केन्द्रीय समितिने तार दिया है कि उसने समर्थ शरीरवाले यूरोपीय शरणार्थियोंको सहायता देना बन्द कर दिया है और उसे केवल महिलाओं तथा अपंगोंतक ही सीमित रखा है। यह मामला डर्बनकी शरणार्थी सहायता


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