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८८. तार : गवर्नरके सचिवको
[डर्वन]
 
जुलाई २६, १९००
 

सेवामें

परमश्रेष्ठ गवर्नरके निजी सचिव

पीटरमैरित्सबर्ग

तार मिला। आपसे प्रतिकूल खबर मिली तो मैं अगले शुक्रवारको प्रातः १०-३० बजे परमश्रेष्ठकी सेवामें उपस्थित हूँगा।

गांधी
 

दफ्तरी अंग्रेजी प्रतिकी फोटो-नकल (एस० एन० ३४७४) से।

८९. भारतका अकाल
डर्बन
 
जुलाई ३०, १९००
 

सेवामें

नेटाल ऐडवर्टाइज़र

सम्पादक

महोदय,

भारतमें इस समय भयंकर अकाल फैल रहा है। उससे पीड़ित लोगोंके सहायतार्थ धन एकत्र करनेकी अपीलके पत्रक कलकत्ताके नेटाल-प्रवास-प्रतिनिधिने यहाँ भारतीय प्रवासियोंके संरक्षकके पास भेजे हैं कि वे उन्हें यहाँके गिरमिटिया तथा स्वतन्त्र भारतीयोंमें बाँट दें। मेरी सम्मतिमें इस अपीलका अर्थ भयानक है। इससे संकटकी तीव्रताका परिचय मिलता है। यह भी मालूम होता है कि एक विशाल साम्राज्यके साधनोंके रहते हुए भी गरीब भारतीयोंतक से उनका अंश-दान मांग लेना जरूरी समझा गया है।

यह स्मरणीय है कि जब १८९६ में भारतमें दूर-दूरतक अकाल फैल गया था तब सीधे दक्षिण आफ्रिकाके मेयरसे एक अपील की गई थी, और उसका इस महाद्वीपके सभी भागोंने तुरन्त ही अच्छा उत्तर दिया था। इस बार वैसी सीधी अपील नहीं की गई। उसका कारण स्पष्ट है। हम स्वयं ही कठिनाईमें हुए है। यही कारण है कि नेटालके भारतीयोंने भी वैसी कोई अपील सब उपनिवेशवासियोंसे नहीं की। वे अबतक केवल अपना चन्दा भारतके शाखा-कार्यालयको सीधा भेजकर सन्तोष मानते रहे। उनको भारतके हालातकी जानकारी भी बहुत कम थी। परन्तु अब भारतके वाइसरायने लन्दनके लॉर्ड-मेयरके पास एक नई और करुणा- भरी अपील भेजी है। उसमें विशाल साम्राज्यके प्रत्येक भागसे सहायतार्थ आगे बढ़ने के लिए कहा गया है। उस अपीलकी प्रतियाँ और कलकत्ताके पत्रक यहाँ एक साथ ही पहुंचे हैं। इससे स्थिति

१. देखिए खण्ड २, पृष्ठ १८९-९० ।


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