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भारतका अफाल

बहुत बदल गई है। अब, मेरी नम्र सम्मतिमें, यहाँके भारतीयोंका कर्तव्य हो गया है कि वे स्वयं तो पुनः प्रयत्न करें ही, इस मामलेको ओर उपनिवेशियोंका ध्यान भी आकृष्ट करें, जिससे कि वे भी अपने करोड़ों भूखे बन्धुजनोंकी सहायता करनेके सम्मानित अधिकारका (मैं इसे यही कहना पसन्द करता हूँ) प्रयोग कर सकें. और ये बन्धुजन भी तो उसी एक सम्राज्ञीकी प्रजा हैं जिसकी प्रजा उपनिवेशी हैं। साथ ही, इस समय इस तथ्यकी उपेक्षा करना भी बहुत अनुचित होगा कि इस उपनिवेशको युद्धके कारण बहुत कष्ट उठाना पड़ा है, और अभी और भी उठाना पड़ेगा। परन्तु मुझे यह कहने के लिए क्षमा किया जाये कि भारतके करोड़ों लोगोंकी शोचनीय दशाकी तुलनामें हमारा देश बहुत अधिक समृद्ध है। उन्हें एक ऐसे युद्ध में उलझना है जिसमें जीत तो होती ही नहीं, कोई पारितोषिक मिलता है तो शायद, सिर्फ कष्ट उठाकर और तिल- तिल करके मर जानेका । भारतके अकाल-पीड़ित प्रदेशोंमें एक पेनी एक आदमीके दिन-भरके भोजनके लिए काफी होगी। इस उपनिवेशमें ऐसा आदमी कौन है जो बिना किसी कठिनाईके एक शिलिंग न बचा सके, और इस प्रकार एक दिनमें १२ भूखोंको भोजन न करा सके ? यद्यपि यह सर्वथा सत्य है कि अकेले-अकेले बड़ी-बड़ी राशियाँ देने में समर्थ व्यक्ति बहुत नहीं है, परन्तु ऐसे तो सैकड़ों नहीं हजारों --हैं, जिनमें से हरएक कमसे-कम कुछ शिलिंग दे सकता है। युद्ध बुरा तो है ही, परन्तु नेटालके लॉर्ड बिशपने बतलाया है कि उससे एक भलाई भी हुई है। उसके कारण इस शक्तिशाली साम्राज्यके, जिसके प्रजाजन होनेका हमें गौरव है, विभिन्न अंग एक-दूसरेके अधिक निकट आ गये हैं। सम्भव है कि इसी प्रकार, भारतपर आया हुआ अकाल, प्लेग और हैजेका तिमुंहा संकट, अशुभ होते हुए भी, उस जंजीरमें एक कड़ी और जोड़ देनेका काम कर जाये, जिसने कि हम सबको एक सूत्रमें गूंथ रखा है।

अकेली सरकारको भारतमें कोई ६० लाख अकाल-पीड़ितोंकी सहायता प्रतिदिन करनी पड़ रही है। निजी दानकी उस धाराका तो कोई जिक्र ही नहीं, जिससे लाखोंके प्राण बच रहे हैं। टाइम्स आफ इंडियाके अनुसार, अकेले श्री आदमजी पीरभाई गत मईमें प्रतिदिन १६,३०० व्यक्तियोंको भोजन कराते थे। डॉ० क्लॉप्शने बतलाया है कि सहायतार्थियोंमें प्रतिदिन १०,००० की वृद्धि होती जा रही है।

अधिकतर अकाल-पीड़ित प्रदेशमें सुखदायी वर्षा हो गई है। परन्तु अभी तो उसके कारण सहायताथियोंकी संख्या बढ़ेगी ही। सरकारपर भी उसके कारण धन और जनके व्ययका बोझ बढ़ जायेगा। प्लेग अपना विनाशका कार्य गत चार वर्षसे निरन्तर कर रहा है। और अकालके दायें हाथ हैजा-राक्षसने इस विनाशकी रही-सही कमी भी पूरी कर दी है। विविध ब्रिटिश उपनि- वेशों और बस्तियोंके अतिरिक्त, अमेरिकाने भी एक कोश एकत्रित किया है और उसका वितरण करनेके लिए डॉ० क्लॉप्शको अपना विशेष प्रतिनिधि बनाकर भेजा है। जर्मनी भी सहायताके लिए आगे बढ़ आया है। भारतका संकट इतना बड़ा है कि मित्र और अमित्र सभी उसके निवारणमें समान रूपसे सहायक हो सकते हैं। नेटाल ही पीछे क्यों रहे?

अन्तमें, मैं यह घोषणा कर देनेका प्रिय कर्तव्य पालन करना चाहता हूँ कि नेटालके परमश्रेष्ठ गवर्नर, माननीय महान्यायवादी, और माननीय सर जॉन रॉबिन्सनने भी भारतके करोड़ों भूखे लोगोंके साथ भारी सहानुभूति प्रकट की है और वचन दिया है कि उनकी सहायताके लिए जो भी कोश खोला जायेगा उसके वे संरक्षक बन जायेंगे।

आपका, आदि ,
 

[अंग्रेजीसे]

मो०क०गांधी
 

नेटाल ऐडवर्टाइज़र, ३१-७-१९००

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