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९७. पत्र: उपनिवेश-सचिवको
१४, मक्युरी लेन
 
डर्बन
 
अगस्त १८, १९००
 

सेवामें

माननीय उपनिवेश-सचिव

पीटरमैरित्सबर्ग

श्रीमन्,

डोसा देसा नामक व्यक्तिके अधिवास-प्रमाणपत्रकी अर्जीके बारेमें आपका इसी माहकी १४ ता० का कृपापत्र प्राप्त हुआ।

खेद है कि मुझे उस विषयमें फिरसे आपको कष्ट देना पड़ रहा है।

मैने प्रवासी-प्रतिबन्धक अधिकारीसे वे कारण जाननेकी कोशिश की, जिनसे सम्बद्ध नियम जारी करना जरूरी हुआ है। परन्तु मैं असफल रहा।

बिलकुल सम्भव है कि कुछ लोगोंने पहलेकी प्रथाका दुरुपयोग किया हो। और, हम मान लें कि वह दुरुपयोग अब भी होता है। ऐसी हालतमें अगर उसे भारतीयोंकी नजरमें लाया जाता, तो भले ही वह पूरी तरहसे रुकता नहीं, फिर भी कम तो हो ही जाता। अगर हलफनामे झूठे पेश किये गये हैं तो अपराधियोंको कानूनके अनुसार दण्ड दिया जा सकता है। परन्तु, निवेदन है कि, प्रश्नाधीन नियम, भले ही सख्त व बेमुरौवत न हो, वह ज्यादा गरीब लोगोंके लिए खास तौरसे भारी कठिनाई पैदा करनेवाला होगा। वर्तमान स्थितिमें भी उन्हें प्रमाणपत्र प्राप्त करने में बहुत खर्च उठाना पड़ता है, नया नियम तो बिलकुल नई ही बाधाएँ मार्गमें उत्पन्न कर देगा। व्यवहारमें यह सम्भव नहीं कि लोगोंसे भारतमें रहते हुए ही प्रमाणपत्रकी अजियाँ भेजनेकी अपेक्षा की जाये। पत्रको भारत पहुंचने में साधारणतः दिन, और अक्सर इससे ज्यादा दिन लगते हैं। और अगर हलफनामे में कोई नुक्स रह गया तो कहना मुश्किल है कि प्रमाणपत्र दिया जाने में कितना समय नहीं लग जायेगा। इसके अलावा, यह आशा कैसे की जा सकती है कि प्रवासी-अधिकारी जिन थोड़े-से भारतीयोंको इज्जतदार मानता है, वे उन लोगोंको जानते हों, जिनके लिए अधिवास-प्रमाणपत्रोंकी जरूरत हो?

इन परिस्थितियोंमें, मेरा निवेदन है कि, प्रश्नाधीन नियम बिलकुल उठा लिया जाये और अगर प्रमाणपत्र देनेकी पुरानी प्रथामें प्रवासी-अधिनियमका' कोई दुरुपयोग होता हो तो उसका मुकाबला करनेके लिए साधारण तरीके काममें लाये जायें।

यह जिक्र कर देना अनुचित न होगा कि प्रमाणपत्रके अर्जदार, मेरे मुअक्किल, डोसा देसाको प्रमाणपत्र प्राप्त करने में विलम्बके कारण बहुत असुविधा हुई है।

आपफा आज्ञाकारी सेवफ,
 
मो० क०गांधी
 

[अंग्रेजीसे]

पीटरमैरित्सबर्ग आर्काइब्ज़, सी० एस० ओ०, ६०६३/१९००।

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