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किया गया है। कारण यह है कि यदि इसे अपनाया गया तो यहाँ कई प्रकारके भ्रम फैल जायेंगे। यह कल्पना निराधार नहीं है। यहाँ सबकी धारणा यह है कि जबतक युद्ध समाप्त न हो जाये और उसके कारण उत्पन्न हुए झगड़ोंका अन्त न हो जाये, तबतक ऐसे किसी प्रश्नको नहीं उठाना चाहिए, या उसपर चर्चा नहीं करनी चाहिए, जिसका सम्बन्ध युद्धसे ही न हो। यह भी सम्भव है कि इस समय यूरोपीय और भारतीय लोगोंमें अच्छे सम्बन्ध दीखते हैं उनमें, इस प्रार्थनापत्रके कारण, गड़बड़ी उत्पन्न हो जाये।

आज यह बतलाना बहुत ही कठिन है कि भविष्यमें क्या होनेवाला है, अथवा शान्तिको पुनः स्थापना होते ही पुरानी कटुता फिर तो नहीं जाग उठेगी। यह सन्देह निराधार नहीं है कि यूरो- पीयोंका पुराना रुख बदलेगा नहीं। कुछ ही दिन हुए, नेटाल विटनेसने एक अग्रलेखमें लिखा था कि स्थानीय भारतीयोंने आहत-सहायकोंके रूपमें और अन्य प्रकारसे जो सेवाएँ की हैं, उनके कारण उपनिवेशवासियोंको भारतीय प्रश्नपर सदा तीखी नजर रखनेकी आवश्यकताकी ओरसे, अपनी आंखें मींच नहीं लेनी चाहिए। साथ ही उन्हें ध्यान रखना चाहिए कि सम्भव है, लॉर्ड रॉबर्ट्स अपने भारतीय सम्बन्धोंके कारण भारत-पक्षपाती विचार रखते हों। इसलिए कहीं ऐसा न हो कि उनके सेनापतित्वमें नेटालको जिस अस्थायी सैनिक-शासनमें रहना पड़ा है वह उस स्थितिमें भी हस्तक्षेप करने लगे जो कि नेटालने अबतक भारतीयोंके यहाँ प्रवेश और व्यापार करनेके सम्बन्धमें सफलतापूर्वक स्थिर रखी है। भारतीयोंने जो सेवाएँ की है वे उन्होंने इस सम्बन्धमें नेटालकी नीतिको न्यायपूर्ण मानकर ही की हैं, अपनी शिकायतोंको उचित माननेके बावजूद नहीं ।

भारतीयोंने १,००० से ऊपर स्वयंसेवकोंका एक डोली-वाहक दल (वालंटियर स्ट्रेचर बेयरर कोर) संगठित किया था। उसके प्रत्येक स्वयंसेवकको प्रति सप्ताह १ पौंड मिलता था, जो कि यूरोपीय वाहकोंके पारिश्रमिकके आधे-से कुछ ही अधिक था। ३० से अधिक नायक उनकी सहा- यता बिना कोई पारिश्रमिक लिये करते थे। ये समाजके अत्यन्त प्रतिष्ठित व्यक्ति थे, और केवल सम्राज्ञीकी सेवा करनेके लिए अपना व्यापार तथा अन्य काम-काज छोड़कर स्वयंसेवक बने थे। इन्होंने वैसा करते हुए स्पष्ट कह दिया था कि हम शिकायतोंके होते हुए भी, इस समय घरेलू झगड़ोंको भुला देना अपना कर्तव्य समझते हैं। भारतीय व्यापारी यद्यपि स्वयंसेवक-दलमें सम्मि- लित नहीं हो सके, फिर भी उन्होंने नायकोंको आवश्यक सामान देकर और उनमें से जिनके परि- वारोंको सहायताको आवश्यकता थी उनके निर्वाहका भार उठाकर, इस कार्य में योग दिया। इस दलने कोलेंज़ो, स्पियानकोप और वालक्रांजकी भाग्य- निर्णायक लड़ाइयोंमें सेवाका कार्य किया। इसके कामकी बहुत प्रशंसा हुई है। नेटालके प्रथम प्रधानमंत्री सर जॉन रॉबिन्सनने इसके विषयमें कहा है:

इस संकटमें भारतीय लोगोंने जो योग दिया उसके विषयमें मैं इतना ही कह सकता हूँ कि वह आप सबके यश और देशभक्तिका द्योतक है। ऐसे कारण मौजूद थे और उन्हें आप भली भांति समझ सकते हैं --जिनसे रण-क्षेत्रमें ब्रिटिश सैनिकोंके अतिरिक्त अन्य सैनिकोंका प्रयोग नहीं किया जा सकता था। परन्तु आपके राजभक्तिपूर्ण उत्साहका जो कुछ उपयोग किया जा सकता था और आपको साम्राज्यके पक्षमें कुछ कर दिखानेकी इच्छा तथा उत्सुकताको पूर्तिके लिए जो अवसर दिया जा सकता था, उसके लिए अधिकारी प्रसन्नतापूर्वक तुरन्त तैयार हो गये। यद्यपि आपको मैदानमें लड़ने नहीं दिया गया, फिर भी आपने घायलोंकी शुश्रूषा करके बहुत अच्छा काम किया। आपके सुयोग्य देशवासी श्री गांधीने, ठीक समयपर, रण-क्षेत्रसे घायल सैनिकोंको लानेके लिए


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