पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 3.pdf/२१२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१७४
सम्पूर्ण गांधी वाड्मय

बीतनेके साथ दृढ़से दृढ़तर होता गया है। इस सबका परिणाम व्यवहारमें यह है कि सम्पन्न लोगोंके अतिरिक्त सब लोगोंके लिए उपनिवेशमें आने के द्वार बन्द हो गये है। इस सम्बन्धमें, सरकारकी ओरसे सफाई यह दी जाती है कि जो लोग अधिवासका प्रमाणपत्र लेना चाहते हैं उनके लिए, उपनिवेशसे बाहर जाने से पूर्व, अपने हस्ताक्षरोंसे प्रार्थनापत्र देना कुछ कठिन नहीं होना चाहिए। यह सफाई सर्वथा संगत हो जाती, यदि नई पाबन्दी केवल उन लोगोंपर लगाई जाती जो कि अबके बाद उपनिवेशसे बाहर जानेवाले होते। जो पहलेसे उपनिवेशके बाहर है उनकी इसके कारण अवश्य ही भारी हानि हो जायेगी। भारतमें बैठा हुआ कोई व्यक्ति यदि यह प्रमाण- पत्र लेना चाहे, तो उसे एक वर्षतक भी राह देखनी पड़ सकती है। भारत और दक्षिण- आफ्रिकाके बीचमें डाकका आना-जाना जितना हो सकता है उतना अनियमित है। तिसपर इस बातका कोई निश्चय नहीं कि प्रवासी-अधिकारीके पास प्रार्थनापत्र पहुँच जानेपर अधि- वासका प्रमाणपत्र मिल ही जायेगा; क्योंकि यह असम्भव नहीं है --ऐसा पहले कई बार हो चुका है कि प्रार्थनापत्रको कोई वास्तविक अथवा कल्पित भूलें सुधारने के लिए बार-बार भारत लौटाया जाता रहे। कहने को तो, जिन नोटिसोंके पीछे कानूनकी ताकत नहीं, उनकी जहाजी कम्पनियाँ अवज्ञा कर सकती है, और जो भारतीय उपनिवेशमें आना चाहते हैं वे ऐसे अधिवास-प्रमाणपत्र लेने से इनकार कर सकते हैं, जिनका कानूनमें विधान नहीं है। परन्तु व्यव- हारमें जहाजी कम्पनियाँ उक्त प्रमाणपत्र देखे बिना यात्राका टिकट देनेसे इतनी दृढ़तापूर्वक इनकार कर देती है कि जो लोग अंग्रेजीमें प्रार्थनापत्र लिखनेकी योग्यताके बलपर टिकट खरीद सकते है उनको भी उक्त प्रमाणपत्र दिखलाये बिना टिकट नहीं दिया जाता; कम्पनियाँ कानूनकी इस शर्तपर कोई ध्यान नहीं देतीं कि ऐसे व्यक्तियोंके लिए अधिवास-प्रमाणपत्र लेनेकी आवश्यकता नहीं। इन लम्बे-चौड़े प्रतिबन्धोंको लगानेका कारण यह बतलाया जाता है कि कोई कानूनसे बचकर न निकल जाये । इस प्रकार बच-निकलनेके कुछ मामले हुए अवश्य है, परन्तु इस सम्बन्धमें निवेदन है कि उनका उपयोग, स्वभावतः कठोर कानूनको अनुचित रूपसे और भी कठोर बनानेके लिए और ब्रिटिश संविधानके आधारभूत सिद्धान्तोंका उल्लंघन करनेके लिए, नहीं किया जाना चाहिए। कानूनको बरकानेकी खुल्लम-खुल्ला निन्दा करनी चाहिए। आवश्यकता हो तो उसके लिए दण्ड भी देना चाहिए। अधिनियममें ही इसके लिए पर्याप्त व्यवस्था कर दी गई है। दुर्भाग्यवश, इस व्यवस्थाका लाभ नहीं उठाया गया। इसका परिणाम यह है कि उन थोड़े-से अपराधी व्यक्तियोंके दोषके कारण निरपराधियोंको परेशान होना पड़ रहा है। कानूनकी कठोरतामें कमी कराने के उद्देश्यसे स्थानीय अधिकारियोंको प्रेरित करने के लिए जो कुछ किया जा सकता है वह सब किया गया है, और किया जा रहा है। और यहाँ इस बातका जिक्र न करना अनुचित होगा कि अधिकारियोंने भारतीयोंकी इच्छा पूरी करनेका प्रयत्न एक हदतक किया भी है। परन्तु उपनिवेश-कार्यालयके दबावसे, इससे अधिक बहुत-कुछ किया जा सकता है अभी नहीं तो युद्धकी समाप्तिके पश्चात् । हमने देखा है कि सरकारने भूतकालमें उपनिवेश-कार्यालयकी बात मानी भी है।

इस कानूनका एक और परिणाम यह है कि जो लोग इस उपनिवेशसे गुजरना या यहाँ कुछ समय रहकर जाना चाहते है, उनपर कष्टदायक प्रतिबन्ध लगाये जा रहे हैं। यद्यपि ये दोनों ही काम कानून द्वारा निषिद्ध नहीं हैं। परन्तु सरकारने भारतीयोंका कानूनसे बचकर उपनिवेशमें बसना रोकने के लिए दो प्रकारके परवाने चला दिये हैं। एकको आगमन-पत्र (विज़िटिंग पास) और दूसरेको प्रस्थान-पत्र (एम्बार्केशन पास) कहा जाता है। यह शायद उसने ठीक ही किया है। इस कारण आपत्ति इन परवानोंपर इतनी नहीं है, जितनी इन्हें जारी करनेकी शर्तोपर


Gandhi Heritage Portal