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१०८. प्रार्थनापत्र : नेटालके गवर्नरको
डर्बन
 
दिसम्बर २४, १९०० के पूर्व
 

सेवामें

परमश्रेष्ठ, माननीय

सर वाल्टर फ्रान्सिस हेली-हचिन्सन

सेंट माइकेल और सेंट जॉर्जके परम प्रतिष्ठित संघके नाइट

ग्रैंडक्रॉस, गवर्नर, प्रधान सेनापति तथा उपनौ-सेनापति, नेटाल

और देशी आबादीके सर्वोच्च अधिकारी

डर्बनवासी ब्रिटिश भारतीयोंके निम्नहस्ताक्षरकर्ता प्रतिनिधियोंका नम्र प्रार्थनापत्र नम्र निवेदन है कि,

प्रार्थी परमश्रेष्ठका ध्यान संलग्न उपनियमकी ओर आकृष्ट करना चाहते हैं। इसे हाल ही में नगर-परिषदने स्वीकार किया है और परमश्रेष्ठने अनुमति प्रदान की है।

जब उक्त उपनियम प्रकाशित करनेका विचार किया जा रहा था उस समय भारतीय, जो आम तौरसे रिक्शोंका उपयोग करते हैं, भयभीत हो उठे थे। परन्तु उस समय यह आशा की गई थी कि उस उपनियमका प्रयोग बिना भेदके सब गैर-यूरोपीयोंपर नहीं किया जायेगा।

आपके प्रार्थियोंने सोचा था कि अगर यूरोपीय समाजके लोग नहीं चाहते कि भारतीय उन्हीं रिक्शोंपर बैठें, जिनपर यूरोपीय बैठते हैं, तो जबतक काफी संख्यामें ऐसे रिक्शे बाकी हैं, जिन्हें किसी खास समाजके लिए बैठनेके लिए अलग नहीं कर दिया गया, तबतक भारतीय, अपने स्वाभिमानके अनुरूप, ऐसे रुखपर आपत्ति नहीं कर सकते ।

परन्तु अभी उपनियमको अमलमें लाये जाते थोड़ा ही समय हुआ है; और इतनेमें व्याव- हारिक रूपमें यह देखा गया है कि "सिर्फ यूरोपीयोंके लिए" की तख्तीके बिना कोई रिक्शा पाना बहुत कठिन है। कुछ समयतक-- और सिर्फ कुछ ही समयतक- कोई खास कठिनाई महसूस नहीं की गई थी, क्योंकि उक्त तख्तीके बिना बहुत-से रिक्शे थे और जो रिक्शेवाले साफ कपड़े पहने हुए लोगोंको ले जाते थे उन्हें पुलिस बेकार छेड़ती नहीं थी। परन्तु, बादमें नगर- परिषदने पुलिसको निश्चित निर्देश दिये कि उक्त उपनियमका पालन सख्तीसे होना चाहिए। इससे स्थिति शीघ्र ही बदल गई और नतीजा यह हुआ कि बहुत बड़ी संख्यामें ऐसे भारतीय, जिन्हें प्रार्थी स्वच्छ वस्त्रधारी कहनेकी धृष्टता करते हैं, अकस्मात् उपर्युक्त सवारियोंके उपयोगसे वंचित हो गये और यह उनके लिए बहुत असुविधा और सन्तापका कारण बना।

नगर-परिषदसे इस बारेमें फरियाद की गई। उद्देश्य यह नहीं था कि उक्त उपनियमको रद करा दिया जाये, बल्कि यह था कि उसका अमल ऐसे ढंगसे कराया जाये, जिससे कि भारतीय लोग रिक्शोंके उपयोगसे सर्वथा वंचित न हो।'

परन्तु नगर-परिषदने वह प्रार्थना मंजूर करनेसे इनकार कर दिया है।

प्राथियोंका निवेदन है कि उक्त उपनियम १८७२ के कानून के खण्ड ७५ के अनुसार अवैध है, क्योंकि वह ब्रिटिश संविधान और उपनिवेशके कानूनोंकी सामान्य भावनाके खिलाफ है।


१. देखिए "पत्र : टाउन क्लार्कको," सितम्बर २४, १९०० ।


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