पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 3.pdf/२३४

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१९४ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय था। और अगर पदका उल्लेख कोई महत्त्व न रखता हो और मैं अपना कर्तव्य पालन करने के लिए किसी श्रेयका पात्र माना गया होऊँ, तो उसके अधिकारी बहुतांशमें डॉ० बूथ. --अब, सेंट जॉन्सके डीन ·और श्री शायर हैं। दलको जो सफलता मिली उसतक उसे पहुँचानेमें उन्होंने कोई प्रयत्न उठा नहीं रखा । यदि मैं उनके कामका अन्दाजा लगाने लगूं तो यह कहना उनके प्रति मेरा कर्तव्य होगा कि डॉ० बूथकी सेवाएँ - खास तौरसे चिकित्सा अधिकारीके और आम तौरसे सलाहकार तथा मार्गदर्शकके रूप में - अतुलनीय थीं। और, खास तौरसे अन्दरूनी व्यवस्था -- - तथा अनुशासनके सम्बन्धमें, श्री शायरकी सेवाएँ भी वैसी ही थीं। क्या मैं निवेदन कर सकता हूँ कि आप इस पत्रकी बातें सैनिक अधिकारियोंकी' दृष्टिमें ला दें ? [ अंग्रेजीसे ] पीटरमैरित्सबर्ग आर्काइन्ज, सी० एस० ओ० १९०१/२८८८। १२५. तार : परवानोंके बारेमें सेवामें (१) इनकाज़ (२) पूर्व भारतीय संघ (ईस्ट इंडिया असोसिएशन) (३) सर मंचरजी भावनगरी लन्दन [ अंग्रेजीसे ] आपका आज्ञाकारी सेवक, मो० क० गांधी ट्रान्सवाल वापस सैकड़ों यूरोपीय स्त्री-पुरुष नागरिकोंको दे दी गई है। भारतीय दुकानोंके अधिकारियोंने एक मास पूर्व हजारों भारतीय अलावा जाने की अनुमति और सभी दूकानें खुली हैं। शरणार्थियोंके लिए दो परवाने देनेका वादा किया था। अभी तक एक भी दिया नहीं गया। भारी हानि उठा रहे हैं । कृपया भारतीय समिति'को सहायता दें । साबरमती संग्रहालय, एस० एन० ३८१० । [ डर्बन ] अप्रैल १६, १९०१ गांधी १. नेटालके कमांडिंग आफिसरने, मुल्य उपसचिवके नाम एक पत्रमें इसपर निम्नलिखित टिप्पणी की थी: “मैं सोचता हूँ कि इसका उद्देश्य श्री गांधी के स्वराष्ट्रिकोंकी प्रशंसा करना था, जिनसे यह आाहत सहायक दल बना था। इसमें सन्देह नहीं कि अन्य सज्जनोंके काम भी उतने ही मूल्यवान थे, परन्तु सब नामोंको सम्मिलित करना सम्भव नहीं है ।" उपनिवेश-सचिवका १६ अप्रैलका उत्तर जिसकी प्राप्ति गांधीजीने अपने १८ अप्रैलके पत्र (देखिए, अगला पृष्ठ) में स्वीकार की है, प्राप्य नहीं है । २. इस तारकी सम्पादित नकलें बादमें १९-४-१९०१ के इंडिया तथा कुछ ब्रिटिश पत्रों में भी प्रकाशित हुई थीं । ३. भारतीय शरणार्थी-समिति । Gandhi Heritage Portal