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सम्पूर्ण गांधी वाड्मय

क्या हम परमश्रेष्ठका ध्यान नये उपनिवेशोंमें ब्रिटिश भारतीयोंकी दशाके प्रश्नकी ओर खींच सकते हैं? इसे परमश्रेष्ठके हाथों ही हल होना है। हमें विश्वास है कि इस बारे में किसी निर्णयपर पहुँचते समय परमश्रेष्ठ हमारे जन्मके देशकी परम्पराओं, राजगद्दी के प्रति हमारी अटल और प्रामाणिक राजभक्ति और हमारी मानी हुई नियम पालनकी प्रकृतिका ध्यान रखेंगे । परमश्रेष्ठकी व्यापक सहानुभूति, उदार स्वभाव और सम्राट्के विशाल साम्राज्यके विविध भागोंके निकट परिचयको जानते हुए हमें दृढ़ विश्वास है कि नये उपनिवेशों में बसनेवाले भारतीयोंका प्रश्न सम्भवतः परमश्रेष्ठसे ज्यादा अच्छे हाथोंमें नहीं हो सकता ।

हम सैकड़ों ब्रिटिश भारतीय शरणार्थियोंकी ओरसे परमश्रेष्ठसे सादर प्रार्थना करते हैं कि यदि सम्भव हो तो उनकी वापसीके लिए जल्दी की जाये, और खास कर इस बातको ध्यान में रखते हुए जल्दी की जाये, कि, सामान्य सहायता-कोशसे उन्होंने लाभ नहीं उठाया ।

अन्तमें हम परमश्रेष्ठसे अनुरोध करते हैं कि राजगद्दी के प्रति हमारी श्रद्धा-भक्तिका महामहिम सम्राट्की सेवामें निवेदन करें।

परमश्रेष्ठ के अत्यन्त नम्र और आज्ञाकारी
सेवक,

[ अंग्रेजीसे ]

पीटरमैरित्सबर्ग आर्काइन्ज, सी० एस० ओ० ९०३८/१९०१ ।


१६२. भाषण : मॉरिशसमें

दक्षिण आफ्रिकासे भारत आते हुए गांधीजी मॉरिशसके पोर्ट लुई नगर में रुके थे। वहाँ के भारतीय समाजने उनका स्वागत किया था। इस अवसरपर गांधीजीने जो भाषण दिया उसका स्थानिक पत्रोंकी रिपोर्टों के आधारपर तैयार किया गया ब्योरा नीचे दिया जाता है ।

नवम्बर १३, १९०१

श्री गांधीने समारोहमें उपस्थित मेहमानों और खास तौरपर मेजबानको धन्यवाद दिया । उन्होंने कहा कि द्वीपके चीनी उद्योगको जो अभूतपूर्व सफलता मिली है उसका श्रेय प्रवासी भारतीयों को है। उन्होंने जोर दिया कि भारतीयों को अपनी मातृभूमिमें होनेवाली घटनाओंका परिचय रखना अपना कर्तव्य मानना चाहिए तथा राजनीतिमें भी दिलचस्पी लेते रहना चाहिए। उन्होंने बच्चोंकी शिक्षापर तुरन्त ध्यान देनेकी आवश्यकतापर बहुत ही जोर दिया।

[ अंग्रेजीसे ]

स्टैंडर्ड, १५-११-१९०१

ल रोडिकल, १५-११-१९०१