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१६३. अपील : वाइसरायकी सेवामें शिष्टमण्डल भेजनेके लिए

गांधीजी दिसम्बरके मध्यमें भारत पहुँचे। यह दक्षिण आफ्रिकी भारतीयोंके प्रश्नपर उनका पहला सार्वजनिक वक्तव्य था ।

बम्बई
दिसम्बर १९, १९०१

सेवामें

सम्पादक
टाइम्स ऑफ़ इंडिया,

बम्बई

महोदय,

दक्षिण आफ्रिकाके भारतीय बड़ी उत्सुकतासे प्रतीक्षा कर रहे हैं कि वे उस उपमहाद्वीपमें जीवित रहनेके लिए भयंकर विषमताओंके विरुद्ध जो संघर्ष कर रहे हैं उसमें भारतीय जनता उनकी सहायता किस प्रकार करेगी। आपको ज्ञात ही है कि पूर्व भारत संघ (ईस्ट इंडिया असोसिएशन) ने लॉर्ड जॉर्ज हैमिल्टनको जोरदार शब्दोंमें एक प्रार्थनापत्र भेजा है । सर मंचरजी भावनगरी पीड़ितों की अत्यन्त लाभदायक सेवा कर रहे हैं । वे, मौका हो या न हो, ब्रिटिश लोकसभाके भीतर और बाहर, अपनी वाणी और लेखनीसे हमारी शिकायतोंको दूर कराने का प्रयत्न करते रहते हैं । और उन्हें सफलता भी मिली है। आपने, श्रीमन्, हमारी सहायता निरन्तर की है। भारतीय और आंग्ल-भारतीय जनता भी सदा हमारी सहायक रही है। कांग्रेस[१] भी हमारे प्रति सहानुभूतिके प्रस्ताव प्रतिवर्ष पास करती रहती है । परन्तु मेरी नम्र सम्मति है कि इससे कुछ अधिक करने की जरूरत है। दक्षिण आफ्रिकाके प्रमुख भारतीयोंने मुझे यह सुझानेको कहा है कि कुछ वर्ष पूर्व, स्वर्गीय सर विलियम विल्सन इंटरकी प्रेरणासे, जैसा एक शिष्टमण्डल श्री चेम्बरलेनकी सेवामें गया था, हमारे प्रतिनिधियोंका वैसा ही शिष्टमंडल वाइसरायकी सेवामें जाये । यह तो स्पष्ट ही है कि भारतमें वाइसराय और इंग्लैंडमें हमारे कार्यकर्त्ताओंका बल बढ़ाने की आवश्यकता है । यहाँके और डाउनिंग स्ट्रीट [ लंदन ] के अधिकारी सहानुभूति-रहित नहीं हैं -- वे वैसे हो नहीं सकते ।

दक्षिण आफ्रिकाके यूरोपीय उपनिवेश-कार्यालयपर दबाव डालनेका भरसक प्रयत्न कर रहे हैं। वे चाहते हैं कि उन्हें ब्रिटिश भारतीयोंके विरुद्ध मनमाने कानून बनानेका अबाध अधिकार मिल जाये। इसलिए यदि एक शिष्टमण्डल भेज दिया जाये और सम्भव हो तो, उसका समर्थन सभाओं द्वारा भी कर दिया जाये, तो उसका फल अवश्य निकलेगा । वस्तुस्थितिको समझ लेने में हमें भूल नहीं करनी चाहिए। हम आशा करें कि श्री चेम्बरलेनने सदाके लिए घोषणा कर दी है कि, भारतीयोंपर विशेष प्रतिबन्ध लगाने के रूपमें, वे सम्राट्के करोड़ों प्रजाजनोंका अपमान किया जाना सहन नहीं करेंगे । इसीलिए नेटालवाले अपना मतलब प्रवासी-प्रतिबन्धक और विक्रेता परवाना-अधिनियमों[२] जैसे अप्रत्यक्ष उपायों द्वारा हल करनेका प्रयत्न कर रहे हैं । कहनेको तो ये कानून सबपर लागू होते हैं, परन्तु अमलमें इनका प्रयोग केवल भारतसे आनेवालोंपर किया जाता है ।

  1. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस|
  2. देखिए खण्ड २, पृ० ३७९ से ३८६ ।