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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

केप कालोनीके विधि-निर्माता भी अपने यहाँ नेटाल जैसे प्रतिबन्ध लागू करना चाहते हैं ।

ट्रान्सवाल और ऑरेंज रिवर कालोनीमें बहुत कठोर भारतीय-विरोधी कानून पहलेसे लागू हैं। ट्रान्सवालमें भारतीय लोग जमीनके मालिक नहीं हो सकते, उन्हें केवल बस्तियोंमें रहना और व्यापार करना पड़ता है, और वे पटरियोंपर नहीं चल सकते, इत्यादि । ऑरेंज रिवर कालोमीमें तो वे, विशेष अनुमति प्राप्त किये बिना, प्रविष्ट भी नहीं हो सकते; और प्रविष्ट होनेकी अनुमति भी केवल घरोंके नौकरों या मजदूरोंको मिलती है। पुराने दोनों उपनिवेशोंको पूर्ण स्वशासनके अधिकार प्राप्त हैं। नवीन अधिकृत प्रदेशोंको ये अधिकार प्राप्त नहीं हैं। उनपर सीधा उपनिवेश-कार्यालयका नियन्त्रण है, और वहाँ ही समस्या सबसे ज्यादा जोरदार है। सर मंचरजीके पूछनेपर श्री चेम्बरलेनने जो जवाब दिया है वह, भाषा मित्रतापूर्ण होनेपर भी, सन्तोषजनक बिलकुल नहीं है। स्पष्ट है कि वे पुराने गणराज्यों के कानूनोंपर कलम फेरना नहीं चाहते। लॉर्ड मिलनरसे कहा गया है कि वे विचार करके बतलायें कि उन कानूनोंमें क्या परिवर्तन करना चाहिए और क्या नहीं। इसलिए भारतको इसी समय, यह बतलाकर कि वह ब्रिटिश साम्राज्यका अभिन्न अंग है, दक्षिण आफ्रिकामें अपने देशवासियोंके लिए ब्रिटिश नागरिकोंके पूरे अधिकारोंका दावा करना चाहिए। निश्चय ही यह प्रश्न साम्राज्य-व्यापी महत्त्वका है । स्वर्गीय सर विलियम विल्सन हंटरके शब्दों में प्रश्न यह है कि भारत से बाहर निकलते ही, ब्रिटिश भारतीयोंको ब्रिटिश प्रजाकी स्थितिका पूरा-पूरा लाभ उठानेका अधिकार है या नहीं ? इस प्रश्नका उत्तर बहुत दूरतक उस कार्रवाईपर निर्भर करेगा जो कि भारतकी जनता अपने देशमें करेगी। यह समय विशेष है, क्योंकि ब्रिटिश साम्राज्यके एक कोने से दूसरे कोनेतक इस समय साम्राज्य-भावनाकी लहर फैल रही है। इसलिए इस समय भारतकी जनता दृढ़, संयत और सर्वसम्मत स्वरसे जिस लोकमतका स्थिरतापूर्वक प्रकाशन करेगी उसकी उपेक्षा उपनिवेश भी नहीं कर सकेंगे ।

इसलिए मैं दक्षिण आफ्रिकामें बसे हुए भारतीयोंकी ओरसे, आपसे और आपके सहयोगियोंसे अपील करता हूँ कि आप हमारी अभीष्ट सहायता कीजिए। मैं आपके सहयोगियोंसे प्रार्थना करता हूँ कि यदि सम्भव हो तो वे भी इस पत्रको उद्धृत करें ।

मो० क० गांधी

[ अंग्रेजीसे ]
टाइम्स ऑफ़ इंडिया, २०-१२-१९०१