१६४. भाषण : कलकत्ता कांग्रेसमें
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसके कलकत्ते में हुए १७ वें अधिवेशनमें दक्षिण आफ्रिकावासी भारतीयों की मान-मर्यादाके सम्बन्ध में प्रस्ताव पेश करते हुए गांधीजीने निम्नलिखित भाषण दिया था ।
[ कलकत्ता
दिसम्बर २७, १९०१ ]
सभापतिजी और प्रतिनिधि भाइयो,
मैं जो प्रस्ताव आपके विचारार्थ पेश करना चाहता हूँ वह इस प्रकार है :
यह महासभा दक्षिण आफ्रिकामें बसे भारतीयोंके साथ उनके अस्तित्व-सम्बन्धी संघर्षमें, सहानुभूति प्रकट करती है और वहाँके भारतीय-विरोधी कानूनोंकी ओर परमश्रेष्ठ वाइसरॉयका ध्यान आदरपूर्वक आकर्षित करते हुए भरोसा करती है कि ट्रान्सवाल और ऑरेंज रिवर उपनिवेशमें बसे ब्रिटिश भारतीयोंकी मान-मर्यादाका प्रश्न जब अभी माननीय उपनिवेश-मन्त्रीके विचाराधीन ही है, परमश्रेष्ठ उसका न्यायपूर्ण और योग्य निबटारा करा देनेकी कृपा करेंगे।
सज्जनो, मैं आपकी सेवामें एक प्रतिनिधिकी हैसियतसे नहीं, बल्कि अधिक तो दक्षिण आफ्रिकामें बसे एक लाख भारतीयोंकी तरफसे, और शायद उन भावी प्रवासी भारतीयोंकी तरफसे भी, जो, हम चाहते हैं, विदेशोंमें जायें और ब्रिटिश प्रजाजनों की मान-मर्यादाके साथ जायें, एक अर्जदारके रूपमें उपस्थित हुआ हूँ । सज्जनो, आप जानते हैं कि दक्षिण आफ्रिका लगभग भारत जितना ही बड़ा देश है और वहाँ लगभग एक लाख ब्रिटिश भारतीय रहते हैं। इनमें से पचास हजार केवल नेटाल उपनिवेशमें बसे हुए हैं। दक्षिण आफ्रिकामें वही एक ऐसा उपनिवेश है जो बाहरसे गिरमिटिया मजदूरोंको लाता है। और जहाँतक दक्षिण आफ्रिकाका सम्बन्ध है, इन मजदूरोंका प्रश्न एक बहुत बड़ी समस्या बन गया है। सज्जनो, समस्त दक्षिण आफ्रिकामें हमारी शिकायतें दो प्रकारकी हैं। पहले वर्गकी शिकायतें तो यूरोपीय उपनिवेशियोंके भारतीय-विरोधी रुखसे पैदा होती हैं । और दूसरे प्रकार की शिकायतें उस भारतीय-विरोधी भावनासे उत्पन्न होती हैं जो दक्षिण आफ्रिकाके चारों उपनिवेशोंके कानूनों में उतारी गई है। पहले वर्गकी शिकायतोंका एक उदाहरण यह है कि तमाम भारतीय -- फिर वे कोई भी क्यों न हों -- वहाँ कुलियोंकी जमात में शामिल किये जाते हैं। अगर हमारे सुयोग्य सभापतिजी[१] भी दक्षिण आफ्रिका जायें तो वे भी, मुझे डर है, कुली -- एशियाकी अर्ध-सभ्य जातियोंके एक व्यक्ति -- माने जायेंगे। सज्जनो, मैं आपके सामने केवल दो उदाहरण पेश करूँगा, जिनसे आपको मालूम हो जायेगा कि इस कुली शब्दके प्रयोगने सारे दक्षिण आफ्रिकामें कितना उपद्रव किया है । कुछ दिन पहले, मेरा खयाल है पिछले वर्ष, बम्बईके महान् आदमजी पीरभाईके सुपुत्र, जो खुद भी बम्बई निगम ( कारपोरेशन) के सदस्य हैं, नेटाल आये । वहाँ उनके कोई मित्र नहीं थे । जान-पहचान भी नहीं थी। उन्होंने कई होटलोंमें जगह पानेकी कोशिश की। कुछ होटल मालिकोंने, जो शिष्ट थे, कहा कि हमारे पास जगह खाली नहीं है। किन्तु दूसरे होटल मालिकोंने
- ↑ दिनशा ईदुलजी वाछा । देखिए खण्ड २, पृष्ठ ४२१ ।