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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

साफ-साफ कह दिया कि "हम अपने होटलों में कुलियोंको नहीं ठहराते ।” सज्जनो, इसी प्रकार एक बार अदनके स्व० कावसजी दिनशाके सुपुत्र श्री कैकोबाद भी नेटाल गये थे । बादमें वे केपटाउन चले गये थे । केपटाउनसे वे नेटाल लौट रहे थे; परन्तु उन्हें बेहद कठिनाइयोंके बाद कहीं जमीनपर कदम रखने दिया गया। उन दिनों दक्षिण आफ्रिकामें प्लेग सम्बन्धी पाबन्दियाँ थीं। नेटाल जानेके लिए उन्होंने पहले दर्जेका टिकट तो किसी तरह पा लिया, परन्तु पहुँचनेपर उनपर क्या बीती ? प्लेग-अधिकारीने उनसे साफ कह दिया :"आप तो भारतीय जैसे दीखते हैं। मैं आपको जहाजसे नहीं उतरने दे सकता। मुझे आदेश है कि किसी भी रंगदार आदमीको उतरने न दिया जाये।" और आप विश्वास करेंगे ? नेटालके उपनिवेश-सचिवको इसके लिए तार भेजना पड़ा, तब कहीं उन्हें जमीनपर कदम रखने दिया गया । और यह सब इसलिए कि उनकी चमड़ीका रंग काला था ।

अब दूसरे वर्गकी शिकायतोंकी बात लीजिए । जहाँतक नेटालका सम्बन्ध है, मुझे भय है, वहाँ कुछ नहीं हो सकता । कानून पहले ही मंजूर हो चुका है। उसमें लिखा है कि जो भारतवासी, स्त्री या पुरुष, प्रवासी-अधिनियमके साथ जुड़े हुए फार्मको यूरोपकी किसी भाषामें नहीं भर सकता उसे नेटालमें प्रवेश नहीं मिलेगा। यह कानून बहुत बड़ी संख्यामें भारतीयों को नेटालमें जाकर रहनेसे रोकता है। नेटाल-उपनिवेशमें एक और कानून है, जिसे "विक्रेता-परवाना अधिनियम" (डीलर्स लाइसेन्सेज ऐक्ट) कहा जाता है। यह कानून परवाना अधिकारियोंके हाथोंमें निरंकुश सत्ता सौंप देता है। वे जिसे चाहें विक्रेता परवाना दे सकते हैं और जिसे न देना चाहें उसे इनकार कर सकते हैं। उनके निर्णयपर अपीलके लिए कहीं कोई गुंजाइश नहीं रखी गई है। केवल स्थानिक निकायों (लोकल बोर्डी) और निगमों (कारपोरेशनों) के -- जो कि इन अधिकारियोंको नियुक्त करते हैं –- सामने जाकर वे अपना दुखड़ा रो सकते हैं। इनमें से कुछने तो इन अधिकारियोंको स्पष्ट आदेश दे रखे हैं कि वे किसी भी भारतीयके नाम विक्रेता-परवाने जारी न करें। शुभाशा अन्तरीप (केप ऑफ गुड होप) उपनिवेशमें बहुत अधिक भारतीय-विरोधी कानून नहीं हैं। परन्तु जहाँतक ट्रान्सवाल और ऑरेंज रिवर उपनिवेशकी बात है, वहाँ तो, हमारे दुर्भाग्यवश, पुराने कानून ही अब भी बरते जा रहे हैं। ट्रान्सवालमें तो भारतीयोंको पृथक् बस्तियोंमें ही रहना और व्यापार करना पड़ता है। वे पैदल-पटरियोंपर नहीं चल सकते | पृथक् बस्तियोंसे बाहर कहीं भी वे जमीन-जायदाद नहीं खरीद सकते। ऑरेंज रिवर उपनिवेशमें तो हम केवल मजदूरोंकी हैसियतसे ही प्रवेश कर सकते हैं। अब, बम्बई प्रदेशके बिना मुकुटके राजा[१] के प्रति उचित आदर प्रकट करते हुए, मैं मानता हूँ कि ट्रान्सवाल और ऑरेंज रिवर उपनिवेशमें हमारी हालत इतनी खराब इसलिए है कि ब्रिटिश प्रजाजनोंके नाते हमारे अधिकारोंकी रक्षा करनेके लिए उचित कदम नहीं उठाये गये । और अगर नेटालमें कुछ न किया गया होता, तो वहाँ भी हमारी हालत आजकी अपेक्षा बेहद खराब होती । समस्त दक्षिण आफ्रिकामें यही स्थिति है ।

अब सवाल यह है कि इस विषय में कांग्रेस क्या कर सकती है ? जहाँ तक ट्रान्सवालका प्रश्न है, श्री चेम्बरलेनके दिलमें अबतक हमारे प्रति बहुत सहानुभूति रही है। पिछली हुकूमत के दिनोंमें उन्होंने हमारे दुखड़ोंके प्रति सहानुभूति प्रकट की थी। परन्तु उस समय वे प्रत्यक्ष कुछ नहीं कर सके थे, क्योंकि वे लाचार थे । अब ऐसी स्थिति नहीं है। वे सर्वेसर्वा हैं। उन्होंने लॉर्ड मिलनरसे सलाह-मशविरा करने का वादा किया है कि पुराने कानूनको किस प्रकार बदला जा सकता है। इसलिए हम दक्षिण आफ्रिकावालोंके लिए अगर कुछ हो सकता है तो

  1. फीरोजशाह मेहता ।