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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हो । सज्जनो, आज मैं जिन सुयोग्य पुरुषोंको अपने सामने देख रहा हूँ इनमें से अगर कुछ भी इस भावनासे दक्षिण आफ्रिका चले जायें तो हमारी सारी शिकायतोंका अन्त हो सकता है।

[ अंग्रेजीसे ]

अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी, कलकत्ता द्वारा प्रकाशित "सेवन्टीन्थ इंडियन नेशनल कांग्रेस" (१९०२) से ।

१६५. भाषण : कलकत्तेकी सभामें[१]

कलकत्ता
जनवरी १९, १९०२

श्री गांधीने आम तौरसे दक्षिण आफ्रिकाकी चर्चा करते हुए उस महाखण्डके निवासी ब्रिटिश भारतीयोंकी स्थितिपर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि नेटालमें प्रवासी-प्रतिबन्धक-अधिनियम, परवानोंसे सम्बन्धित कानून और सरकार द्वारा भारतीय बच्चों की शिक्षाका प्रबन्ध चिन्ताके मुख्य विषय हैं । ट्रान्सवालमें भारतीय जमीन-जायदाद नहीं रख सकते और न पृथक् बस्तियोंके सिवा कहीं अन्यत्र व्यापार कर सकते हैं। वे पैदल पटरियोंपर भी नहीं चल सकते । ऑरेंज रिवर कालोनी में तो भारतीय मजदूरोंके सिवा और किसी रूपमें घुस भी नहीं सकते। और मजदूरोंकी हैसियतसे भी खास मंजूरी लेकर ही घुस सकते हैं। उन्हें दक्षिण आफ्रिकामें भारतीयोंके साथ होनेवाले व्यवहारकी बहुत-सी बातें, जो अखबारोंमें पहले ही छप चुकी थीं, दोहरानी पड़ीं। किन्तु उन्होंने कहा कि, मैं आप लोगोंके सम्मुख स्थितिका भयानक पक्ष, जिससे कि आप आंशिक रूपसे पहले ही परिचित हैं, प्रस्तुत करने के उद्देश्यसे नहीं आया हूँ, बल्कि आया हूँ उसका उज्ज्वल, खुशनुमा पक्ष रखने के लिए। बादमें उन्होंने बताया कि किस प्रकार वे लड़ाई छिड़नेके समय से कुछ उपनिवेशियोंकी सहानुभूति प्राप्त करने में सफल हुए हैं। उनके विचारमें भारतीयोंका मामला कुछ प्रगति कर रहा है । किन्तु उन्होंने उस भारतीयविरोधी कार्रवाईकी जोरदार निन्दा की जिसका उद्देश्य ऐसे प्रत्येक भारतीयको, जो कोई भी यूरोपीय भाषा नहीं पढ़ सकता, उपनिवेशसे निकाल बाहर करना है। सभामें उपस्थित सज्जन, जो सभी कमसे-कम अंग्रेजी भाषा जानते हैं, सम्भव है, यह न समझ सके हों कि स्थिति कितनी गम्भीर है; किन्तु इसका असर उस लोक-समुदायपर घातक होगा, जिसका बहुत बड़ा भाग निरक्षर है और जो केवल भारतीय देशी भाषाएँ जानता है। बेशक उन लोगोंके प्रति उपनिवेशियोंका द्वेष तीव्र है, परन्तु, श्री गांधीने कहा, मेरा इरादा उस द्वेषको प्रेमसे जीतनेका है ।

वक्ताने श्रोताओंसे अनुरोध किया कि वे उनके इस वक्तव्यको केवल औपचारिक न समझें । दक्षिण आफ्रिकी भारतीय इस सिद्धान्तपर विश्वास करते हैं और इसपर चलनेका प्रयत्न करते हैं। पिछला युद्ध दूसरोंके लिए अवश्य ही विनाशक सिद्ध हुआ होगा, किन्तु भारतीयोंके लिए वह वरदान बनकर आया, क्योंकि उसमें उन्हें अपनी क्षमता दिखाने का अवसर मिला ।लड़ाईसे पहले उपनिवेशी उन्हें ताना मारा करते थे कि जब खतरेका वक्त आयेगा, भारतीय गीदड़ोंकी भाँति दुम दबा कर भाग जायेंगे; और ये ही लोग हमारे समान अधिकारोंकी माँग करते हैं ! किन्तु युद्धने दिखा दिया कि भारतीय दुम दबाकर भागे नहीं। उन्होंने पहियेमें अपने कन्धोंका

  1. गांधीजीने अल्बर्ट हाल, कलकत्तामें हुई एक सार्वजनिक सभामें भाषण दिया था, यह उसी भाषणका पत्रोंमें प्रकाशित संक्षिप्त विवरण है ।