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भाषण : कलकत्तेकी सभामें

बल लगाया और वे अन्योंके साथ बराबरीकी जिम्मेदारी उठानेके लिए तैयार हो गये। जब लड़ाई शुरू हुई, तब अपनी इस रायका खयाल किये बिना ही कि युद्ध उचित है या अनुचित (उनका खयाल था कि उसके लिए सम्राट् और केवल सम्राट् ही उत्तरदायी हैं), उन्होंने सरकारको अपनी सेवाएँ मुफ्त देना स्वीकार किया और इसी विचारसे उन्होंने सरकारको एक प्रार्थनापत्र दिया । किन्तु उनकी प्रार्थना स्वीकार नहीं की गई। परन्तु इसके तुरन्त बाद ही कर्नल गालवेने, जिसे कोलेंजोकी लड़ाईका कुछ पूर्वाभास मिल गया था, एक प्रमुख भारतीय[१] को एक आहत-सहायक दल संगठित करनेके लिए लिखा और वह दल बनाया गया, जिसमें ३६ भारतीय नायकोंके रूपमें और १,२०० भारतीय आहत-वाहकोंके रूपमें शामिल हुए। भारतीयोंने देश की कैसी सेवा की, यह वे सभी जानते हैं और उसकी प्रशंसा उन उग्रपंथी उपनिवेशियोंको भी करनी पड़ी, जिन्होंने उस समय पहली बार भारतीयोंमें अच्छे संस्कारोंकी झांकी देखी।

श्री गांधीने आगे कहा कि उपनिवेशियोंमें भारतीयोंके विरुद्ध जो घृणा भाव उत्पन्न हुआ उसके लिए एक अर्थमें स्वयं भारतीय ही दोषी हैं। यदि भारतीय प्रवासियोंके पीछे कुछ अधिक अच्छे वर्गके भारतीय भी गये होते, जो जीवनके प्रत्येक क्षेत्रमें उपनिवेशियोंकी बराबरी कर सकते, तो इतना मनोमालिन्य उत्पन्न न हुआ होता । किन्तु अब भावनाएँ सुधर रही हैं। वे यहाँतक सुधर गई हैं कि भारतके पिछले अकालमें सहायता देनेके लिए कुछ भारतीयोंने एक राष्ट्रीय अकाल-कोश खोलकर जो ५,००० पौंड इकट्ठे किये थे, उनमें से ३,३०० पौंड उपनिवेशियोंने दिये थे ।

वक्ताने अपना कथन समाप्त करते हुए कहा कि इस सभामें मेरा उद्देश्य केवल इतना था कि दोनों समुदायोंकी अच्छाइयोंको प्रकाशमें लाया जाये। वैसे कड़वाहट भी है, किन्तु अच्छाइयोंका खयाल करना ज्यादा अच्छा है। भारतीय आहत सहायक दल उसी भावनासे संगठित किया गया था। यदि भारतीय लोग ब्रिटिश प्रजाके अधिकार माँगते हैं तो उन्हें उस स्थितिके दायित्वोंको भी स्वीकार करना चाहिए। जिस आहत सहायक दलमें भारतीय मजदूरोंने मजदूरी लिये बिना काम किया था उसके कामका उल्लेख जनरल बुलरके खरीतोंमें विशेष रूपसे किया गया है ।

[ अंग्रेजीसे ]

इंग्लिशमैन, २०-१-१९०२

अमृत बाजार पत्रिका, २१-१-१९०२
  1. यह गांधीजी स्वयं थे। देखिए " पत्र : फर्नल गालवेको", जनवरी ७, १९०० ।