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१६६. पत्र : छगनलाल गांधीको

इंडिया क्लब[१]
[ कलकत्ता ]
जनवरी २३, १९०२

चि० छगनलाल,

तुम्हारी चिट्ठी मिली। पढ़कर खुश हुआ हूँ।तुम अंग्रेजीमें ही लिखते रहना ।मेहताजी[२] को वेतन चुका देना। पैसा अपनी काकीसे ले लेना।

चि० गोकलदास[३] और हरिलाल[४]को तुम कहानी सुनाते हो तो काव्यदोहन[५] में से पढ़कर सुनाना ज्यादा अच्छा है। काव्यदोहनके सारे भाग मेरी किताबोंमें हैं । उनमें से सुदामाचरित्र, नलाख्यान, अंगदविष्टि [ अंगदका दौत्य ] आदि जो कथाएँ हैं, वे अर्थसहित सुनाओ तो बहुत अच्छा । हरिश्चंद्रकी कथा जबानी या किताबमें से पढ़कर सुनाओ। अंग्रेजी कवियोंके नाटक अभी सुनाना जरूरी नहीं है। उनमें रस भी बहुत नहीं मिलेगा। इसके अलावा, हमारी प्राचीन कथाओं में जितना सार ग्रहण करनेको है उतना अंग्रेजी कवियोंकी रचनाओंमें नहीं मिल सकता ।

कक्षामें बच्चोंका बरताव ठीक रहे, इसका खयाल रखना। तुम और किनको पढ़ाने जाते हो और क्या मिलता है सो लिखना ।

चि० मणिलालका क्या हाल है यह भी लिखना। बच्चोंको बिलकुल कुटेव न लगे इसका ध्यान रखना। जिससे हमेशा सत्यके प्रति अतिप्रेम रहे ऐसा झुकाव रखाना । पढ़ाने के साथ कसरत भी माकूल कराते रहना । मुरब्बी खुशालभाई तथा देवभाभीको दण्डवत् ।

शुभचिन्तक,
मोहनदासके आशीर्वाद

मूल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० २९३७) से ।

  1. कलकत्ता आकर पहले गांधीजी क्लबमें रुके; बादमें श्री गोखलेके पास चले गये ।
  2. गांधीजीके मुंशी ।
  3. गांधीजीके भानजे
  4. गांधीजी के सबसे बड़े पुत्र ।
  5. महाभारत, भागवत आदिकी कथाओंपर आधारित गुजराती काव्य-कथाओंका संग्रह